जोधपुर.शहर में कई कच्ची बस्तियां हैं, जो शाम होते ही अंधेरे में डूब जाती है. ऐसी ही एक गुजराती बस्ती है, जहां पिछले 40 साल से लोग अंधेरे में जीने को मजबूर थे. बिजली घर से सटी इस बस्ती में एक स्ट्रीट लाइट भी नहीं है लेकिन एक दिन एक बच्ची यहां से गुजरी तो 100 परिवारों की जिंदगी रौशन कर गई.
बिना रोशनी के जिंदगी की कल्पना करना हमारे लिए मुश्किल है. शाम होते ही हम घरों में लाइट जला लेते हैं. दो मिनट लाइट चली जाए तो लगता है, जिंदगी थम गई. कल्पना कीजिए उस बस्ती का जहां के लोग 40 साल से बिना बिजली के जिंदगी गुजारने पर मजबूर थे. चुनाव आते ही बस्तियों वालों को सुविधाओं के सब्जबाग दिखाकर नेता वोट बंटोरकर चले जाते थे. ऐसे में यहां के लोगों की जिंदगी भी अंधेरे के गर्त में थी. बच्चे रात को पढ़ाई तक नहीं कर पाते. महिलाएं शाम से पहले ही खाना बना लेती थी. पिछले 40 साल से बस्ती में जीवन शाम के बाद मानो थम सा जाता था लेकिन एक शाम उनकी बस्ती से 10 साल की बच्ची गुजरी और बस्ती गुलजार कर गई.
बच्ची ने पकड़ी जिद तो घर हुए रौशन
कुछ दिनों पहले शहर की अफजा अली अपने पिता गुलजार अली के साथ रात को यहां से निकल रही थी. अचानक गाड़ी की रोशनी देख बड़ी संख्या में बच्चे सामने आ गए. अफजा ने अपने पिता से पूछा यह कौन है क्यों आए? गुलजार अली ने कहा कि शायद कुछ मिलने की उम्मीद में आए थे. बेटी ने फिर पूछा कि यहां लाइट क्यों नहीं है? बिना लाईट यह कैसे पढ़ते होंगे. पिता ने कुछ जवाब नहीं दिया और घर चले गए लेकिन अफजा के मन में यह बात चलती रही. वह लगातार कहती रही कि पापा वहां लाईट लगवा दो. उन बच्चों की पढ़ाई हो सकेगी.
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अफजा ने यहां तक कहा कि उसके जन्मदिन पर गिफ्ट खरीदने के बजाय यहां लाईट लगवा दो. बेटी की जिद के चलते आखिरकार गुलजार अली को लगा कि अब मानना ही पड़ेगा. उन्होंने बस्ती का सर्वे किया और यहां काम शुरू करवा दिया. सौ से ज्यादा झोपड़ियों के लिए सौलर पैनल उन्होंने लगावाया.