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राजस्थान का पहला पीडियाट्रिक लिवर ट्रांसप्लांट, 12 साल की मासूम की बची जिंदगी

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Sep 12, 2023, 5:56 PM IST

राजस्थान में पहली बार पीडियाट्रिक लिवर ट्रांसप्लांट किया गया है. महज 12 साल की बच्ची को उसकी मां ने अपना लीवर का हिस्सा दिया और महात्मा गांधी अस्पताल के डॉक्टर्स ने सफल इलाज करते हुए बच्ची को नया जीवनदान दिया.

Rajasthan First Pediatric Liver Transplant
राजस्थान का पहला पीडियाट्रिक लिवर ट्रांसप्लांट

जयपुर. जिस उम्र में बच्चे स्कूल में पढ़ाई करते हुए अपने भविष्य की नींव रखते हैं, उस वक्त जयपुर की कोटखावदा निवासी साक्षी एक्यूट लिवर फैलियर की वजह से अस्पताल में जिंदगी और मौत के बीच जंग लड़ रही थी. बीते 6 साल से पीलिया, पेट में पानी, लिवर सिरोसिस जैसी गंभीर बीमारियों से जूझ रही थी. उसका बिलरूबिन लेवल 17 तक पहुंच गया था. साक्षी की लिवर बायोप्सी में पता लगा कि उसे लिवर की जेनेटिक बीमारी थी. पहले उसकी 9 साल की बहन भी इसी वजह से काल का ग्रास बनी. हालांकि, जयपुर के महात्मा गांधी अस्पताल के लिवर ट्रांसप्लांट सर्जन डॉ. नैमिष मेहता उनके लिए फरिश्ता बनकर आए.

साक्षी के पिता जगदीश मीणा ने बताया कि 2017 में बड़ी बेटी के पीलिया, ब्लड की कमी, भूख नहीं लगने और शरीर में सूजन आने की शिकायत आई थी. उसका काफी इलाज भी कराया, लेकिन वो बच नहीं पाई. ऐसे में डॉक्टर्स ने छोटी बेटी की जांच करने का सुझाव दिया. जिसमें छोटी बेटी के भी कुछ सिम्टम्स सामने आए, तभी से साक्षी का इलाज चल रहा है. उन्होंने अपनी बच्ची को लेकर कई अस्पतालों के चक्कर काटे, आयुर्वेदिक और यूनानी दवाई तक ली.

6 साल तक इधर-उधर भटकने के बाद इसी साल जून में जब तबीयत ज्यादा खराब हुई, तब महात्मा गांधी अस्पताल में एडमिट कराया. कई यूनिट ब्लड भी चढ़ा और आखिर में डॉ. नैमिष मेहता ने बच्ची का लिवर ट्रांसप्लांट का सुझाव दिया. चूंकि वो पहले एक बच्ची को खो चुके थे, दूसरी बच्ची को नहीं खोना चाहते थे, इसलिए परिजनों से राय मशवरा कर लिवर ट्रांसप्लांट का फैसला लिया. बच्ची की मां ने ही उसे अपना लिवर डोनेट किया और ये पूरा ऑपरेशन राज्य सरकार की चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत हुआ.

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वहीं, पीडियाट्रिक क्रिटिकल केयर विशेषज्ञ डॉ. रूप शर्मा ने बताया कि बच्ची के पीएफआईसी का टाइप-3 वेरिएंट था, जिसमें बच्चों के 9-10 साल की उम्र से ही तबीयत ज्यादा बिगड़ना शुरू हो जाती है. उसके बाद ट्रांसप्लांट की जरूरत पड़ती है. इस तरह के केस में दवाइयां कुछ समय तक ही असर करती हैं. साक्षी के पिता अपनी बच्ची को बचाने के लिए काफी मोटिवेटेड थे और फिर महात्मा गांधी अस्पताल के प्रयास की वजह से आज बच्ची सकुशल है. उन्होंने बताया कि बच्ची को अब इम्यून सिस्टम बढ़ाने जैसी दवाइयां दी जा रही हैं और इंफेक्शन से बचाव करना होगा. एक समय के बाद बच्ची स्कूल भी जा सकेगी और खेलकूद भी सकेगी.

वहीं, महात्मा गांधी मेडिकल यूनिवर्सिटी के चेयरपर्सन डॉ. विकास चंद्र स्वर्णकार ने बताया कि बच्ची को जेनेटिक लीवर डिजीज थी. तब ट्रांसप्लांट ही उपाय निकला. गनीमत ये रही की लिवर डोनर के लिए भटकना नहीं पड़ा. बच्ची की मां का ब्लड ग्रुप मैच हुआ तो उन्हीं का लीवर का एक हिस्सा साक्षी को लगाया गया. वहीं, अब अस्पताल प्रशासन की ओर से ये फैसला लिया गया है कि साक्षी जिस भी तरह की शिक्षा ग्रहण करना चाहेगी उसका पूरा खर्चा अस्पताल प्रशासन की ओर से उठाया जाएगा, साथ ही पोस्ट ऑपरेटिव खर्चा भी अस्पताल ही वहन करेगा.

बहरहाल, इस लिवर ट्रांसप्लांट में साक्षी की मां कैलाशी देवी के लिवर का 35 फीसदी हिस्सा लिया गया है. चूंकि लिवर एक ऐसा अंग है जो सेल्फ ग्रो होता है. ऐसे में कैलाशी देवी का लिवर अगले तीन से चार महीने में जबकि साक्षी का लीवर 6 से 9 महीने में 90% डेवलप हो जाएगा और फिर जगदीश मीणा का परिवार एक सामान्य जिंदगी गुजर बसर कर सकेगा.

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