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Special : रोडवेज महिला कर्मियों का दर्द, 'कैसे करें बच्चों का पालन-पोषण, सरकार हमें भी दे CCL का लाभ'

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Published : Apr 20, 2021, 12:43 PM IST

राजस्थान सरकार ने रोडवेज महिला गर्भवती परिचालकों के लिए कुल 6 माह की मैटरनिटी लीव तय की हुई है. लेकिन अन्य विभागों की महिला कर्मचारियों को 6 माह की मैटरनिटी लीव सहित दो साल की CCL (चाल्ड केयर लीव) भी मिलती है. जिसके चलते रोडवेज में कार्यरत गर्भवती महिला परिचालकों को खासा परेशानियों का सामना करना पड़ता है. देखिये हनुमानगढ़ से ये खास रिपोर्ट...

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सरकार दिखाए संवेदनशीलता तो मिले राहत...

हनुमानगढ़.रोडवेज में कार्यरत गर्भवती महिला परिचालकों सीसीएल नहीं मिलने के कारण मश्किल हालातों का सामना करना पड़ता है. ऐसी ही परेशानी है हनुमानगढ़ के रोडवेज डिपो में कार्यरत शकुंतला सहारण सहित अन्य महिला परिचालकों की. शकुंतला सहारण ने अपना दर्द ईटीवी भारत से साझा करते हुए कहा कि हमें छोटे बच्चों की देखभाल के लिए चाइल्ड केयर लीव नहीं मिलती. इस कारण हमें काफी दिक्कतें होती हैं.

सरकार दिखाए संवेदनशीलता तो मिले राहत...

सरकार का सौतेला व्यवहार...

चुनावों व महिला दिवस जैसे खास दिनों पर आधी आबादी को चौका-चूल्हा छोड़ कामकाजी बनाने की बातें तो बहुत होती हैं, लेकिन जब वह मर्दों के साथ कदम ताल करने लगती हैं तो धरातल पर कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है. प्रसव और उसके बाद के गंभीर हालातों में भी उनसे उम्मीद की जाती है कि वह मर्दों की तरह ही दौड़-भाग करें. रोडवेज के हनुमानगढ डिपो में कार्यरत महिलाएं सरकार की इसी सोच का शिकार हो रही हैं. अब पत्राचार से बात बनती नहीं देख रोडवेज महिला परिचलिकों ने ईटीवी भारत के जरिये सरकार तक अपनी समस्या पहुंचाने का प्रयास किया है.

सरकार का सौतेला व्यवहार...

6 माह की छुट्टी में भी पेच...

मेडिकल साइंस के अनुसार आम तौर पर महिला 9 माह तक गर्भवती रहती हैं व सरकार की तरफ से गर्भवती रोडवेज महिला परिचालकों को कुल 6 माह की मैटरनिटी घोषित की हुई है. अगर कोई रोडवेज परिचालक प्रसूता डिलीवरी से 3 माह पूर्व व 3 माह डिलीवरी बाद छुट्टी लेती है तो 6 माह का गर्भ लेकर बसों में ड्यूटी देनी होगी. डिलीवरी से 6 माह पहले छुट्टी लेती है तो बच्चा होने के तुरंत बाद ड्यूटी पर आना पड़ेगा. ऐसे में महिला कर्मचारी या तो दुधमुंहे बच्चे को बसों में ड्यूटी पर साथ लेकर चलें, अगर साथ नहीं लेकर नहीं चलें तो बिन मां के मासूम का पालन-पोषण कैसे संभव हो.

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कुल मिलाकर ये 6 माह की छुट्टी भी कुछ खास काम नहीं आती है. राजस्थान रोडवेज के हनुमानगढ डिपो में परिचालक के पद पर कार्यरत शकुंतला सहारण ने हाल ही में बच्चे को जन्म दिया है. कहती हैं कि बसों में परिचालक की ड्यूटी देना बहुत मुश्किल है. चिकित्सक भी ऐसे गर्भवस्था में रेस्ट करने का सलाह देते हैं, ये सब जानते हैं. ऐसे में सरकार व विभाग, उन्हें अन्य विभागों की गर्भवती महिला कर्मचारियों को मिलने वाली 2 वर्ष की चाइल्ड केयर लीव (CCL) की तरह उन्हें भी CCL दे, ताकि वे अपने नौनिहालों का पालन-पोषण अच्छे से व समुचित तरीके से कर सकें.

6 माह की छुट्टी में भी पेच...

सरकार दिखाए संवेदनशीलता तो मिले राहत...

सबसे अधिक समस्या उन माता-पिता को आती है जो दोनों नौकरी पेशा हैं व परिवार में अन्य कोई सदस्य भी नहीं है. ऐसे ही विपरीत परिस्थितियों से गुजर रही हैं रोडवेज परिचालिका शकुंतला सहारण. हलांकि, इस बाबत महिला कर्मचारियों द्वारा सरकार से लिखित में पत्र लिखकर सीसीएल लीव (CCL LEAVE) की मांग भी की गई है, लेकिन आजतक इस पर कोई गौर नहीं किया गया है. जबक हनुमानगढ़ रोडवेज डिपो प्रबंधक रणधीर पूनिया महिलाओं को प्रसव काल व बाद में आने वाली समस्याओं को मानते तो हैं, लेकिन उनका कहना है कि ये सरकार के स्तर का मामला है. फिलहाल, CCL को लेकर कोई आदेश नहीं है.

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गौरतलब है कि कोरोना काल में शकुंतला ने अपने खर्चे व मेहनत और निडरता से जन-जन को जागरूक करने के अथक प्रयास किये थे. जिसके लिए शकुंतला को विभाग द्वारा सम्मानित भी किया गया था और शकुंतला मीडिया की सुर्खियों में भी रही थीं. एक तरफ सरकारें जच्चा-बच्चा सुरक्षित व स्वास्थ्य रहें, इसके लिए करोड़ों खर्च कर बहुतेरी योजनाएं चलाती है. दूसरी तरफ सरकार की अनदेखी के चलते रोडवेज में कार्यरत्त महिला परिचालकों को जिस समय में सबसे सचेत व सावधानी रखने की आवश्यकता होती है, उस गर्भावस्था के नाजुक समय मे भी बसों के हिचकोले खाने को व शोर शराबे के बीच वायु प्रदूषण की मार झेलने को मजबूर होना पड़ता है.

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