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डीग जल महलों में है 450 वर्ष पुरानी हनुमान जी की प्रतिमा, एक मूर्ति में होते हैं 5 प्रतिमाओं के दर्शन

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Published : Apr 30, 2021, 10:02 AM IST

भरतपुर के जलमहलों में देशी-विदेशी सैलानियों के लिए अगाध श्रद्धा के साथ आश्चर्य की प्रतीक हनुमान जी की अनूठी प्रतिमा का निर्माण लाल पत्थर से नहीं, बल्कि हल्के बादामी चमकदार हकीक पत्थर से किया गया है. यह मूर्ति कब और कैसे बनाई गई, इस बारे में किसी को कोई जानकारी नहीं है. जलमहलों में गोपाल भवन के दक्षिण हिस्से के एक छोटे से कक्ष में विराजमान इस प्रतिमा को लेकर क्षेत्र के लोगों में अनेक धारणाएं बनी हुई हैं. देखें पूरी रिपोर्ट...

Hanuman statue of Deeg Jalmahal, Hanuman statue of Jalmahal
डीग जल महलों में है 450 वर्ष पुरानी हनुमान जी की प्रतिमा

डीग (भरतपुर). खासतौर पर लाल पत्थर से बने हनुमान जी की मूर्ति का ज्यादा महत्व बताया जाता है, लेकिन भरतपुर के जलमहलों में इसके विपरीत देशी-विदेशी सैलानियों के लिए अगाध श्रद्धा के साथ आश्चर्य की प्रतीक हनुमान जी की अनूठी प्रतिमा का निर्माण लाल पत्थर से नहीं, बल्कि हल्के बादामी चमकदार हकीक पत्थर से किया गया है. यह मूर्ति कब और कैसे बनाई गई, इस बारे में किसी को कोई जानकारी नहीं है. जलमहलों में गोपाल भवन के दक्षिण हिस्से के एक छोटे से कक्ष में विराजमान इस प्रतिमा को लेकर क्षेत्र के लोगों में अनेक धारणाएं बनी हुई है.

डीग जल महलों में है 450 वर्ष पुरानी हनुमान जी की प्रतिमा

प्रतिमा में हैं एक साथ 5 प्रतिमाओं के दर्शन

अनूठी कारीगारी के साथ विशाल हकीक पत्थर से बनी यह हनुमान जी की प्रतिमा बड़ी ही आकर्षक है. प्रतिमा के निर्माण में हनुमान जी का स्वरूप उड़ान भरते हुए दर्शाया गया है. प्रतिमा के कंधे पर विराजमान राम-लक्ष्मण के साथ साथ दाएं कंधे पर गदा, बाएं हाथ पर पर्वत एवं पैर के नीचे पाताल भैरवी दर्शाई गई हैं. हनुमान की इस प्रतिमा में एक साथ 5 प्रतिमाओं के दर्शन होते हैं.

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हकीक पत्थर से बनी बेशकीमती इस प्रतिमा में सबसे बड़ा आकर्षण मूर्ति पर दिखाई देने वाली हरी नस-शिराएं हैं. जो प्रतिमा में स्पष्ट देखी जा सकती हैं. प्रतिमा के निर्माण में रामायण के एक प्रसंग का भाव भी दर्शाया गया है. जिसमें भगवान राम के भाई लक्ष्मण के मूर्छित होने जाने पर जब हनुमान जी संजीवनी ला रहे थे, तब भगवान राम के अन्य छोटे भाई भरत ने हनुमान जी को दैत्य समझकर उन पर भ्रमवश चलाया था. भ्रमवश से हनुमान जी के पैर पर हुआ घाव भी इस प्रतिमा में स्पष्ट रूप से दिखाई देता है, जैसे उसमें से आज भी रक्त की धारा प्रवाह हो रही हो.

जयपुर नरेश सवाई जयसिंह ने अपने मंदिर में स्थापित करने के लिए बनवाई थी यह प्रतिमा

जानकार बताते हैं कि यह प्रतिमा जयपुर नरेश सवाई जयसिंह ने अपने मंदिर में स्थापित करने के लिए बनवाई थी. किसी कारणवश प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा में देरी होने पर इस दौरान सवाई जयसिंह ने हरिद्वार सहित अन्य जगहों से बुलाए साधु-संत, महात्माओं से प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा के लिए एक भव्य अनुष्ठान कराया. अनुष्ठान के संपन्न होने जब साधु-संतों को दक्षिणा दी जा रही थी, तब साधु-संतों ने महाराजा सवाई जयसिंह से हनुमान जी की इस भव्य प्रतिमा को दक्षिणा स्वरूप पाने की इच्छा जाहिर की. सवाई जयसिंह ने साधु संतों की इच्छा स्वीकार कर साधु संतों के इच्छित स्थान पर प्रतिमा को पंहुचाने के लिए उसे एक बग्गी में सवार कर दिया. जब साधु संत प्रतिमा को बग्गी के सहारे अपने निर्धारित स्थान पर ले जा रहे थे, तब रास्ते में कुम्हेर के पास बग्गी के पहिए जमीन में धंस गए. बड़े प्रयासों के बाद भी बग्गी आगे नहीं जा सकी.

जिसके बाद साधु संतों ने कुम्हेर के लोगों को बुलाकर हनुमान जी की आगे नहीं जाने की इच्छा शक्ति से अवगत कराते हुए प्रतिमा को कुम्हेर में स्थापित कराए जाने की बात कही. साधु संतों के परामर्श के बाद स्थानीय लोगों ने प्रतिमा कुम्हेर के भरतपुर गेट स्थित मंदिर में स्थापित करा दी. कुछ समय बाद ही रियासत के महाराजा सवाई बृजेन्द्र सिंह ने हनुमान जी की इस भव्य प्रतिमा से आकर्षित होकर इसे डीग के महलों में लाने के लिए मन बनाया. जिसके बाद महाराजा सवाई बृजेन्द्र सिंह ने कुम्हेर के मंदिर में हनुमान जी की दूसरी प्रतिमा स्थापित करा दी और इस भव्य प्रतिमा को डीग के महलों में अपने निवास गोपाल भवन के दक्षिणी हिस्से के एक विशेष कक्ष में दक्षिण मुखी प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा करा दी.

चमेली के तेल सहित सिंदूर के साथ चढ़ता है चोला

मंदिर महंत ओमप्रकाश शर्मा ने बताया कि प्रतिमा के दर्शन करने आए सैलानी हनुमान जी के दर्शन कर स्वतः ही नतमस्तक हो जाते हैं. आज भी बडी संख्या में सुबह शाम स्थानीय लोगों के साथ बाहर से आए सैलानी इस प्रतिमा के दर्शन करते हैं. महंत ओमप्रकाश शर्मा बताते हैं कि सामान्य तौर पर मूर्ति का शृंगार सप्ताह में दो बार मंगलवार और शनिवार को होता है. पूजा के लिए मंगलवार-शनिवार को प्रतिमा पर चमेली के तेल के साथ सिंदूर का चोला चढाया जाता है. साथ ही चांदी के वर्क से गले, पर्वत, भुजा, कलाई, लंगोट आदि का श्रृंगार किया जाता है. श्रंगार के बाद प्रतिमा आर्कषक रूप में दर्शन देती हैं.

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