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बांसवाड़ा में नहीं है कोई खरीद केंद्र, मक्का किसानों को झेलना पड़ रहा नुकसान

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Published : May 8, 2020, 7:34 PM IST

प्रदेशभर में सबसे ज्यादा मक्का की पैदावार बांसवाड़ा में होती है. इसके बावजूद सरकार की ओर से शहर में कोई खरीद केंद्र नहीं खोला गया है. जिसके चलते किसानों को प्रति क्विंटल 500 रुपए तक नुकसान हो रहा है.

मक्का किसान खबर, Maize farmers news
बांसवाड़ा में खरीद केंद्र नहीं

बांसवाड़ा. रबी सीजन में प्रदेश में सबसे अधिक मक्का की पैदावार बांसवाड़ा में होती है. यहां इस बार भी हजारों हेक्टेयर में मक्का की बुवाई की गई. हैरानी की बात यह है कि जी तोड़ मेहनत के बावजूद किसानों को मक्का का वाजिब दाम नहीं मिल रहा है.

हालांकि सरकार ने मक्का का समर्थन मूल्य घोषित कर रखा है. लेकिन बांसवाड़ा में कोई खरीद केंद्र नहीं खोला गया. नतीजतन व्यापारी मनमानी कीमतों पर मक्का की खरीद कर रहे हैं और किसानों को उनकी मेहनत का वाजिब दाम नहीं मिल पा रहा है. यहां तक कि किसानों को प्रति क्विंटल 500 रुपए तक नुकसान हो रहा है.

खरीद केंद्र न होने से मक्का किसानों को झेलना पड़ रहा नुकसान

किसान संघ ने सरकार की इस नीति के प्रति नाराजगी जताते हुए खरीद केंद्र की मांग को लेकर सांसद और जिला कलेक्टर तक अपनी मांग बुलंद की है. विकास के मामले में आदिवासी बहुल्य बांसवाड़ा को पिछड़ा माना जाता रहा है. लेकिन उदयपुर संभाग के सबसे बड़े माही बांध के बदौलत जिले का अधिकांश हिस्सा सरसब्ज कहा जा सकता है. दीपावली के बाद बांध की नहरों को खोल दिया जाता है और मार्च तक लगातार पानी चलता रहता है. भरपूर पानी के साथ किसान अपनी मेहनत से खेती किसानी के मामले में इस जिले को प्रदेश के मानचित्र पर उभारने में सफल रहे.

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रबी सीजन में प्रदेश के अधिकांश हिस्सों में गेहूं आदि की बुवाई की जाती है. लेकिन बांसवाड़ा में गेहूं के साथ-साथ बड़े पैमाने पर मक्का की फसल भी बोई जाती है. यह मक्का, पॉपकॉर्न, स्टार्च आदि खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों की ओर से सीधे ही खरीदी जाती है. कृषि विभाग के आंकड़े बताते हैं कि पिछले 10 साल से यहां खरीद के साथ-साथ रबी सीजन में भी हाइब्रिड मक्का की बुवाई का चलन हुआ.

जो आज 20000 हेक्टेयर तक पहुंच गया है. हैदराबाद के मामले में भी यहां की जमीन अच्छी मानी गई है और प्रति हेक्टेयर 60 क्विंटल तक उपज बैठ जाती है. विभाग के उत्पादन के आंकड़ों को देखें तो करीब एक करोड़ क्विंटल से अधिक मक्का की पैदावार मानी जा सकती है. इसे दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है कि इतने बड़े पैमाने पर पैदावार के बावजूद यहां पर सरकार की ओर से समर्थन मूल्य पर मक्का की खरीद का केंद्र मंजूर नहीं किया गया है. साथ ही किसानों को पूरी तरह से व्यापारियों के भरोसे छोड़ दिया गया है.

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इसका व्यापारी भी जमकर फायदा उठा रहे हैं और मनमाने मोल पर मक्का की खरीदारी कर रहे हैं. सरकार की ओर से मक्का का समर्थन मूल्य 1725 रुपए घोषित किया गया है. परंतु यहां पर व्यापारी 1225 रुपए से लेकर 1300 रुपए प्रति क्विंटल खरीदारी कर रहे हैं. किसानों को प्रति क्विंटल 500 रुपए तक का नुकसान हो रहा है.

भारतीय किसान संघ के संभागीय अध्यक्ष रणछोड़ पाटीदार के अनुसार जब यहां सर्वाधिक मक्का की पैदावार होती है, तो समर्थन मूल्य पर खरीद केंद्र भी खोला जाना चाहिए. इसके अभाव में किसान व्यापारियों के हाथों लुटने को मजबूर है. संगठन की इस मांग को देखते हुए जिला कलेक्टर कैलाश बेरवा कृषि अधिकारियों से मक्का के उत्पादन का डाटा तैयार करवा कर सरकार को प्रस्ताव भेजने की तैयारी में है.

वहीं डूंगरपुर- बांसवाड़ा सांसद कनक मल कटारा ने इस संबंध में प्रदेश के सहकारिता मंत्री उदयलाल आंजना को पत्र भेजा है. अब देखने वाली बात यह होगी कि आखिर सरकारी औपचारिकताओं के पूरा होने के साथ किसानों को कब तक अपनी उपज का वाजिब मूल्य मिल पाता है.

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