राजस्थान

rajasthan

Rajasthan Election 2023 : क्या कांग्रेस तोड़ पाएगी अजमेर में भाजपा का तिलिस्म? यहां जानिए सीटवार सियासी समीकरण

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Oct 17, 2023, 10:52 AM IST

आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी पार्टियों की तैयारियां जोरों पर हैं. भाजपा ने तो अपनी पहली लिस्ट भी जारी कर दी है, जिसमें अजमेर की कई सीटों के प्रत्याशियों के नाम भी घोषित हो गए हैं. कांग्रेस की सूची आनी बाकी है. अजमेर जिले की 8 विधानसभा क्षेत्रों में किस प्रकार के सियासी समीकरण बन रहे हैं, जानिए इस खबर में...

Political equations of eight assembly seats of Ajmer
अजमेर की आठों विधानसभा सीटों के सियासी समीकरण

अजमेर. आगामी विधानसभा चुनाव 2023 को लेकर राजनीति की बिसात पर मोहरों को आना बाकी है, लेकिन उससे पहले ही सियासी गलियारों में प्रत्याशियों की हार-जीत को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म है. अजमेर की आठ विधानसभा सीटों की बात करें तो यहां कांग्रेस बीते दो दशक से कमजोर ही रही है. खासकर अजमेर शहर के उत्तर और दक्षिण क्षेत्र में भाजपा के तिलिस्म को कांग्रेस 20 वर्षों से नहीं तोड़ पाई. इसी तरह जिले में भाजपा की वोटर्स पर पकड़ पहले से ज्यादा मजबूत नजर आ रही है. वहीं, कांग्रेस के सामने आठों सीटों को जीतना बड़ी चुनौती है.

राजस्थान के हृदय के नाम से प्रसिद्ध अजमेर मुगल और अंग्रेजों के जमाने में अपना विशेष महत्व रखता था. मुगल, मराठा और अंग्रेजों ने अजमेर को काफी पसंद किया और यहीं से राजपुताना पर नजरें जमाकर रखी. आजादी के बाद अजमेर का ही विलय राजस्थान में सबके बाद हुआ. आजादी के बाद भी राजस्थान में जब लोकतंत्र प्रणाली से सरकार बनी, अजमेर में भी लोकतंत्र प्रणाली से अलग सरकार बनी थी. अजमेर के पहले मुख्यमंत्री हरिभाऊ उपाध्याय थे. बाकायदा टीटी कॉलेज में यहां विधानसभा लगा करती थी.

अजमेर का सियासी समीकरण

सशर्त अजमेर का राजस्थान में विलय हुआ. राजस्थान का हिस्सा बनने के बाद राजनीति में अजमेर हमेशा चर्चा में ही रहा. सन 1992 से पहले तक अजमेर में कांग्रेस का प्रभाव रहा, लेकिन राम मंदिर का मुद्दा जब देश में हावी हुआ तब अजमेर में भी भाजपा के मतों में बढ़ोतरी हुई. हालांकि 2003 के बाद तो कांग्रेस जिले में सिमटती चली गई. हालात यह है कि अजमेर शहर में कांग्रेस इतनी कमजोर हो गई थी कि अभी तक उठ नही पाई. इस दौरान चार बार विधानसभा चुनाव हुए और चारों चुनाव में कांग्रेस को शिकस्त खानी पड़ी.

पिछली बार यह था अजमेर का हाल- गत विधानसभा चुनाव में जिले की 8 सीटों में से कांग्रसे को महज दो सीटों से ही संतोष करना पड़ा. इनमें केकड़ी और मसूदा सीट है, जो कांग्रेस के हाथ लगी, जबकि नसीराबाद, ब्यावर, किशनगढ़, अजमेर शहर की उत्तर और दक्षिण के अलावा पुष्कर में भी भाजपा काबिज हुई. मार्बल नगरी किशनगढ़ में निर्दलीय ने कांग्रेस और भाजपा को पछाड़ दिया. यूं कहें कि भाजपा के लिए बेहतर और कांग्रेस की स्थिति जिले में ज्यादा अच्छी नहीं थी. यहां अजमेर उत्तर से वासुदेव देवनानी, अजमेर दक्षिण से अनीता भदेल, पुष्कर से सुरेश सिंह रावत, नसीराबाद से रामस्वरूप लांबा, ब्यावर से शंकर सिंह रावत भाजपा से विधायक बने. जबकि कांग्रेस में केकड़ी से डॉ रघु शर्मा और मसूदा से राकेश पारीक चुनाव जीते थे. वहीं, किशनगढ़ में सुरेश टांक ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़कर प्रमुख राजनीतिक पार्टियों कांग्रेस और भाजपा को धरातल दिखा दिया.

किशनगढ़ सीट का समीकरण

पढ़ें : Rajasthan Assembly Election 2023 : ज्योति मिर्धा के लिए चुनाव प्रचार करेंगे कांग्रेस नेता रिछपाल मिर्धा, कार्यकर्ताओं से मांगी इजाजत

किशनगढ़ में टांक की बात : निर्दलीय विधायक सुरेश टांक दोबारा से निर्दलीय ही चुनाव लड़ने का मूड बना चुके हैं, लेकिन कांग्रेस के टिकट से टांक के चुनाव लड़ने की भी चर्चा है. हालांकि बीते 5 वर्ष सुरेश टांक गहलोत सरकार के समर्थन में खड़े नजर आए थे. यह बात अलग है कि मानेसर प्रकरण में सचिन पायलट के समर्थन में सुरेश टांक भी थे. किशनगढ़ में भाजपा ने इस बार अजमेर सांसद भागीरथ चौधरी को टिकट दिया है. यदि कांग्रेस भी किसी जाट को टिकट देती है तो टांक को निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव में कांग्रेस और भाजपा को टक्कर देने में ज्यादा जोर नहीं आएगा. यहां जाट गैर जाट समीकरण विगत चुनाव में चला था.

पुष्कर सीट का समीकरण

पुष्कर में रोचक होंगे चुनाव : राजनीतिक दृष्टि से पुष्कर विधानसभा क्षेत्र काफी महत्वपूर्ण है. पुष्कर हिंदुओं का सबसे बड़ा तीर्थ स्थल है. इस कारण यहां हिंदुत्व कार्ड भाजपा विगत 10 वर्षों से खेलती आई है. कांग्रेस से नसीम अख्तर 10 बरस पहले विधायक और कांग्रेस सरकार में शिक्षा राज्यमंत्री रह चुकी हैं. मगर इसके बाद नसीम अख्तर को दो बार चुनाव में हार का सामना ही करना पड़ रहा है. हालांकि इस बार फिर से नसीम अख्तर पुष्कर से चुनाव लड़ने की तैयारी कर चुकी हैं. वहीं लगातार दो चुनाव जीतने वाले भाजपा से सुरेश रावत भी अपने टिकट को लेकर आशान्वित हैं. हालांकि भाजपा का टिकट लेने के लिए कई दावेदार कतार में हैं. इधर, कांग्रेस पार्टी की ओर से पुष्कर में पूर्व विधायक श्रीगोपाल बाहेती ने भी ताल ठोक दी है. भाजपा और कांग्रेस को आपस में ही नहीं बल्कि अपनों से भी चुनौती मिलेगी.

अजमेर उत्तर में अपनों का ही खेल : अजमेर उत्तर भाजपा का मजबूत गढ़ रहा है. 2003 से लगातार भाजपा का कब्जा इस सीट पर रहा है. भाजपा के टिकट से वासुदेव देवनानी जीतते आए हैं. मगर इस बार वासुदेव देवनानी को टिकट मिलेगा अथवा नहीं इसको लेकर संशय की स्थिति बनी हुई है. दरअसल, चर्चा का कारण भाजपा की पहली सूची है, जिसमें चार बार से लगातार जीत रहे वासुदेव देवनानी का नाम नहीं है. देवनानी के चेले दावेदार बनकर उनके सामने खड़े हैं. इधर कांग्रेस में आरटीसी अध्यक्ष धर्मेंद्र सिंह राठौड़ पुष्कर और अजमेर में अपने पैर जमाने की कोशिश में लगे हैं. लेकिन वे खुद तय नहीं कर पाए हैं कि आखिर वे चुनाव कहां से लड़ेंगे.

अजमेर उत्तर सीट के समीकरण

हालांकि, दोनों ही जगह राठौड़ की स्थिति बाहरी की बन गई है. राठौड़ के अजमेर उत्तर में सक्रिय होने के पहले दिन से ही देवनानी ही नहीं, बल्कि कई कांग्रेसी कार्यकर्ता उन्हें बाहरी ही कह रहे हैं. इधर विगत चुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशी रहे महेंद्र सिंह रलावता सचिन पायलट के समर्थक हैं. रलावता ने टिकट को लेकर फिर से ताल ठोक दी है. राठौड़ और रलावता के बीच टिकट को लेकर अदावत चल रही है. एक-दूसरे के कार्यकर्ताओं के भिड़ने के अलावा थाने तक भी बात पहुंच चुकी है. ऐसे में कहा जा सकता है कि अजमेर उत्तर में भाजपा और कांग्रेस से टिकट किसी को भी मिले, इतना तय है कि पहली चुनौती अपनों से ही मिलेगी. कांग्रेस से निवर्तमान अध्यक्ष विजय जैन भी पायलट समर्थक है. जैन भी टिकट को लेकर आशान्वित नजर आ रहे हैं.

पढ़ें : Rajasthan Election 2023 : ERCP को चुनावी मुद्दा बनाएगी कांग्रेस, आज मल्लिकार्जुन खड़गे करेंगे 'अभियान' का आगाज, पायलट पर संशय

अजमेर दक्षिण का भेद पाना मुश्किल :अजमेर दक्षिण विधानसभा क्षेत्र भी भाजपा का गढ़ रहा है. 2003 से लगातार भाजपा क्षेत्र में काबिज है. अनीता भदेल लगातार चार बार क्षेत्र से विधायक हैं और पांचवीं बार भी भाजपा से प्रबल दावेदार है. मगर उनके टिकट को लेकर भी संशय की स्थिति बन गई है. लगातार चार बार चुनाव जीतने के बावजूद भी भाजपा की पहली सूची में भदेल का नाम नहीं था. इस कारण भदेल का टिकट कटने की चर्चा ने जोर पकड़ लिया.

अजमेर दक्षिण के समीकरण

दरअसल, भदेल को पूर्व सीएम वसुंधरा राजे का करीबी माना जाता है. सब जानते हैं कि राजे को पार्टी ने कैसे साइड लाइन कर रखा है. ऐसे में भदेल का टिकट कटने की चर्चा को बल मिल गया है. हालांकि लगता नहीं है कि चार बार भाजपा को जीत दिलाने वाली भदेल का टिकट काटने का रिस्क भाजपा लेगी. हालांकि भदेल के अलावा भाजपा के पूर्व शहर अध्यक्ष डॉ प्रियशील हाड़ा, उनकी पत्नी ब्रजलता हाड़ा, पूर्व जिला प्रमुख वंदना नोगिया ने भी ताल ठोक रखी है. इधर विगत दो दशक से कांग्रेस के उम्मीदवार रहे हेमंत भाटी हार झेलते आए हैं. भाटी उद्योगपति हैं और सचिन पायलट के समर्थक भी हैं. तीसरी बार भी भाटी टिकट के आशान्वित हैंं. इधर, द्रौपदी कोली समेत कई कांग्रेसी दावेदारी कर रहे हैं. इस सीट पर कांग्रेस में गुटबाजी की जड़ें इतनी मजबूत हैं कि यहां कांग्रेस टिकट किसी को थमाए, गुटबाजी से पार पाना उम्मीदवार के लिए पहली चुनौती होगी.

नसीराबाद में कई दावेदार : नसीराबाद सीट कांग्रेस का गढ़ रही है, लेकिन डेढ़ दशक पहले कांग्रेस के इस मजबूत गढ़ को भाजपा ने ध्वस्त कर दिया. कद्दावर जाट नेता सांवरलाल जाट ने भाजपा को यहां डेढ़ दशक पहले जीत दिलवाई थी. हालांकि उनके निधन के बाद हुए उपचुनाव में कांग्रेस ने अपने गढ़ को फिर जीत लिया. इसके बाद विगत चुनाव में यहां भाजपा ने सांवरलाल जाट के पुत्र रामस्वरूप लांबा को मैदान में उतारा था.

नसीराबाद सीट के समीकरण

रामस्वरूप लांबा भाजपा से विधायक बने और इस बार फिर भाजपा से टिकट मांग रहे हैं. सब जानते हैं कि रामस्वरूप लांबा अपने पिता की तरह ही पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के करीबी हैं. ऐसे में रामस्वरूप लांबा का टिकट कटने की भी चर्चा है. मगर रामस्वरूप लांबा की दावेदारी को हल्के में भी नहीं लिया जा सकता. रामस्वरूप लांबा के अलावा पूर्व जिला प्रमुख सरिता गैना ने भी मजबूती के साथ ताल ठोक रखी है. इनके अलावा भाजपा से और भी दावेदार हैं, जो टिकट मिलने पर जीत का दावा कर रहे हैं. इधर कांग्रेस में पूर्व उपराज्यपाल और कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे गोविंद सिंह गुर्जर के परिवार से पूर्व विधायक महेंद्र सिंह गुर्जर गहलोत गुट से आते हैं. वहीं, पूर्व विधायक रामनारायण गुर्जर सचिन पायलट समर्थक हैं. दोनों ने जमकर ताल ठोक रखी है. इनके अलावा भी कई दावेदार हैं.

मसूदा सीट के समीकरण

पढ़ें : BJP Mission Rajasthan : उदयपुर में जेपी नड्डा की अहम बैठक, वसुंधरा की मौजूदगी बनी चर्चा का विषय

मसूदा में बगावत तय : मसूदा सीट कांग्रेस का गढ़ रहा है लेकिन यहां भी विगत डेढ़ दशक में भाजपा का वोट प्रतिशत बढ़ा है. इस कारण यहां भी भाजपा और कांग्रेस में टक्कर की स्थिति रहती है. हालांकि इस सीट पर कांग्रेस को विगत डेढ़ दशक में अपनों से ही चुनौती मिलती आई है. यानी कांग्रेस टिकट किसी को भी दे, बगावत तय है. गुटबाजी के कारण कांग्रेस की सेफ सीट अब सेफ नहीं रही है. हालांकि पिछली बार कांग्रेस ने यहां चुनाव जीता था. राकेश पारीक मसूदा से विधायक बने थे. पारीक सचिन पायलट के प्रबल समर्थक है. पारीक के अलावा पूर्व विधायक ब्रह्मदेव कुमावत, अजमेर जिला दुग्ध समिति के अध्यक्ष रामचंद्र चौधरी, वाजिद खान चीता भी ताल ठोक रहे हैं. इधर, भाजपा से जिला प्रमुख एवं पूर्व विधायक सुशील कुमार पलाड़ा भी दावेदारी कर रही है. हालांकि भाजपा ने पलाड़ा को पार्टी में शामिल नहीं किया है. पलाड़ा के भाजपा से टिकट लेने के प्रयास किए जा रहे हैं. पलाड़ा के अलावा भी कई दावेदार हैं.

ब्यावर सीट के समीकरण

ब्यावर में कांग्रेस को बड़ी चुनौती : ब्यावर सीट पर भाजपा का कब्जा है. यहां तीन बार से शंकर सिंह रावत भाजपा के टिकट से चुनाव जीतते आए हैं. इस बार भी शंकर सिंह चुनाव लड़ने के लिए तैयार हैं. हालांकि अब उनकी पार्टी और समाज के कई लोग उनके सामने खड़े होकर भाजपा से टिकट मांग रहे हैं. इनमें प्रबल दावेदारी महेंद्र सिंह रावत की भी है. इधर, कांग्रेस के पारस पंच, मनोज चौहान समेत कई दावेदार हैं. हालांकि कांग्रेस को इस सीट पर जीत दर्ज करने की सबसे बड़ी चुनौती रहेगी. दरअसल ब्यावर रावत बाहुल्य है. ऐसे में भाजपा को रावत समाज से प्रत्याशी उतारने का फायदा मिलता रहा है.

हॉट सीट है केकड़ी :केकड़ी विधानसभा सीट हॉट सीट है. यहां कांग्रेस और भाजपा में टक्कर रहती है. सन 2003 से केकड़ी सीट पर चार बार चुनाव हुए. इनमें एक बार बीजेपी जो दूसरी बार कांग्रेस, फिर से तीसरी बार बीजेपी और चौथी बार कांग्रेस प्रत्याशियों को जीत मिली है. विगत चुनाव में कांग्रेस के डॉ रघु शर्मा ने चुनाव जीता था. डॉ शर्मा कांग्रेस के प्रबल दावेदार हैं. इधर, भाजपा ने केकड़ी में टिकट शत्रुघ्न गौतम को थमा दिया है. शत्रुघ्न गौतम केकड़ी से पूर्व विधायक रह चुके हैं. केकड़ी में 2 दशक की तरह यदि बदलाव की बयार चली तो नुकसान कांग्रेस को होगा. हालांकि गौतम के लिए भी जीत आसान नहीं है. उनकी अपनी पार्टी में ही भीतर घात का अंदेशा उनके लिए बना हुआ है. इधर कांग्रेस में डॉ शर्मा के अलावा किसी अन्य कांग्रेस नेता ने केकड़ी से दावेदारी की ही नहीं. केकड़ी में कांग्रेस और भाजपा के बीच टक्कर है.

केकड़ी सीट के समीकरण

अजमेर में पायलट का जलवा : विगत चुनाव में पूर्व पीसीसी अध्यक्ष सचिन पायलट के कहने पर जिले की सात विधानसभा क्षेत्र में टिकट दिए गए थे. इस बार भी पायलट समर्थकों को लग रहा है कि टिकट वितरण में सचिन पायलट की चलेगी. दरअसल, सचिन पायलट अजमेर से सांसद रह चुके हैं. हालांकि सांसद का दूसरा चुनाव हारने के बाद सचिन पायलट विधानसभा का चुनाव टोंक से लड़े थे. हालांकि इस बार भी सचिन पायलट के चुनाव लड़ने की चर्चा टोंक से ही नहीं बल्कि अजमेर जिले के मसूदा और नसीराबाद से भी है. पायलट यदि नसीराबाद से चुनाव लड़ते हैं तो निश्चित रूप से कांग्रेस को जिले में फायदा होगा. यदि पायलट अजमेर जिले से चुनाव नहीं लड़ते हैं तो गुर्जर मतदाताओं के पास अन्य विकल्प खुले रहेंगे. बता दे कि जिले में एससी, जाट व रावत के बाद गुर्जर सबसे बड़ी जाति है जो अजमेर ग्रामीण क्षेत्र की 6 सीटों पर निर्णायक की भूमिका में है.

ABOUT THE AUTHOR

...view details