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अरज सुनो 'सरकार' : हमारी 'माटी' हमें लौटा दो

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Published : Jan 28, 2021, 4:24 PM IST

Updated : Jan 28, 2021, 5:11 PM IST

मैहर विधायक नारायण त्रिपाठी के बयान के बाद विंध्य क्षेत्र को फिर से प्रदेश बनाए जाने की मांग तेजी के साथ उठ रही है. ये जानना भी जरूरी है कि विंध्य प्रदेश की मांग आखिर क्यों हो रही है. जब यह 'विंध्य' प्रदेश था, तो इसका स्वरूप कैसा था.

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विंध्य प्रदेश हमें लौटा दो!

रीवा । 1947 में देश को नई-नई आजादी मिली थी. आजाद भारत के पहले गृहमंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल रियासतोंं को मिलाकर एक राज्य बनाने की मुहिम चलाए हुए थे. 10 मार्च 1948 को विंध्य प्रदेश के लिए रीवा रियासत के महाराजा मार्तण्ड सिंह जूदेव और पन्ना महाराजा ने सरदार पटेल के फैसले का समर्थन किया था. 4 अप्रैल 1948 को देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु ने विंध्य प्रदेश का उद्घाटन किया . जिसमें बुंदेलखंड और विंध्य क्षेत्र की सीमा को जोड़ते हुए तकरीबन 11 लोकसभा क्षेत्र और 65 विधानसभा क्षेत्र बनाए गए. रीवा रियासत के महाराजा मार्तण्ड सिंह जूदेव को राज्यपाल बनाया गया. पन्ना के महाराजा को उप राज्यपाल बनाया गया.

1952 में कांग्रेस की हार ने रखी विभाजन की नींव

1948 में अवधेश प्रताप सिंह को विंध्य प्रदेश का पहला मुख्यमंत्री बनाया गया. 1952 में हुए चुनाव में सीधी जिले की तमाम विधानसभा सीटों पर कांग्रेस की करारी हार हुई थी. कांग्रेस की इसी शिकस्त से ही विंध्य प्रदेश के विभाजन की राह निकली. 1952 में विंध्य प्रदेश में पहली बार चुनाव हुआ था. पंडित शंभूनाथ शुक्ला को विंध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया था. तब रीवा के वर्तमान एसपी आवास को मुख्यमंत्री निवास बनाया गया था. चुनाव के बाद धीरे-धीरे राजनीतिक साजिश के तहत विंध्य प्रदेश का अस्तित्व खत्म करने की कोशिश शुरू हो गई.

'विंध्य' की मांग अभी जिंदा है

60 हजार वर्ग किलोमीटर में फैला था विंध्य प्रदेश

विंध्य प्रदेश का क्षेत्रफल लगभग 60 हजार वर्ग किलोमीटर था. उस समय विंध्य प्रदेश की जनसंख्या 35 लाख 75 हजार थी. तब विंध्य प्रदेश में 8 जिले हुआ करते थे. जिसमें रीवा, सतना, सीधी, शहडोल, पन्ना, छतरपुर, दतिया और टीकमगढ़ शामिल थे.

1956 में मध्य प्रदेश में हो गया विलय

लगभग 8 सालोंं तक चली विंध्य की सत्ता के बाद 1956 में एक नया प्रदेश बनाया गया . जिसे अब मध्य प्रदेश कहा जाता है. इसी मध्यप्रदेश में विंध्य प्रदेश का विलय कर दिया गया. इससे विंध्य की जनता खुद को ठगा हुआ महसूस करने लगी. अपना प्रदेश वापस लेने के लिए काफी प्रदर्शन हुए, कई आंदोलन हुए. यहां तक कि कई दंगे भी हुए. जिसमें कुछ लोगों की जान भी चली गई.

सन् 2000 में फिर उठी मांग

इतिहासकारों की मानें तो विंध्य क्षेत्र के कद्दावर नेता यमुना प्रसाद शास्त्री, जगदीश चंद्र जोशी और पंडित श्रीनिवास तिवारी ने पृथक विंध्य प्रदेश बनाए जाने की मांग को लेकर कई लड़ाइयां लड़ी थी. विधायक शिव मोहन सिंह ने विंध्य प्रदेश बनाने का प्रस्ताव रखा . पूर्व विधानसभा अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी ने विंध्य प्रदेश बनाए जाने को लेकर सर्वसम्मति से विधानसभा में प्रस्ताव पारित कराया . उसी प्रस्ताव को सन् 2000 में केंद्र सरकार को भेजा गया. तब रीवा से कांग्रेस सांसद सुंदरलाल तिवारी ने केंद्रीय सदन में विंध्य क्षेत्र की मांग उठाई थी. लेकिन मामला फिर ठंडे बस्ते में चला गया.

'विंध्य' की मांग अभी जिंदा है

मध्यप्रदेश के एक हिस्से को अलग कर छत्तीसगढ़ प्रदेश बना दिया गया. लेकिन इसके बाद भी विंध्य की जनता ने प्रथक विंध्य प्रदेश बनाए जाने की मांग नहीं छोड़ी. अब मैहर विधानसभा क्षेत्र से भाजपा विधायक नारायण त्रिपाठी की विंध्य प्रदेश की मांग से अब एक बार फिर इस मुद्दे ने बड़ा रूप ले लिया है.

Last Updated :Jan 28, 2021, 5:11 PM IST

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