रीवा । 1947 में देश को नई-नई आजादी मिली थी. आजाद भारत के पहले गृहमंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल रियासतोंं को मिलाकर एक राज्य बनाने की मुहिम चलाए हुए थे. 10 मार्च 1948 को विंध्य प्रदेश के लिए रीवा रियासत के महाराजा मार्तण्ड सिंह जूदेव और पन्ना महाराजा ने सरदार पटेल के फैसले का समर्थन किया था. 4 अप्रैल 1948 को देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु ने विंध्य प्रदेश का उद्घाटन किया . जिसमें बुंदेलखंड और विंध्य क्षेत्र की सीमा को जोड़ते हुए तकरीबन 11 लोकसभा क्षेत्र और 65 विधानसभा क्षेत्र बनाए गए. रीवा रियासत के महाराजा मार्तण्ड सिंह जूदेव को राज्यपाल बनाया गया. पन्ना के महाराजा को उप राज्यपाल बनाया गया.
1952 में कांग्रेस की हार ने रखी विभाजन की नींव
1948 में अवधेश प्रताप सिंह को विंध्य प्रदेश का पहला मुख्यमंत्री बनाया गया. 1952 में हुए चुनाव में सीधी जिले की तमाम विधानसभा सीटों पर कांग्रेस की करारी हार हुई थी. कांग्रेस की इसी शिकस्त से ही विंध्य प्रदेश के विभाजन की राह निकली. 1952 में विंध्य प्रदेश में पहली बार चुनाव हुआ था. पंडित शंभूनाथ शुक्ला को विंध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया था. तब रीवा के वर्तमान एसपी आवास को मुख्यमंत्री निवास बनाया गया था. चुनाव के बाद धीरे-धीरे राजनीतिक साजिश के तहत विंध्य प्रदेश का अस्तित्व खत्म करने की कोशिश शुरू हो गई.
60 हजार वर्ग किलोमीटर में फैला था विंध्य प्रदेश
विंध्य प्रदेश का क्षेत्रफल लगभग 60 हजार वर्ग किलोमीटर था. उस समय विंध्य प्रदेश की जनसंख्या 35 लाख 75 हजार थी. तब विंध्य प्रदेश में 8 जिले हुआ करते थे. जिसमें रीवा, सतना, सीधी, शहडोल, पन्ना, छतरपुर, दतिया और टीकमगढ़ शामिल थे.