जबलपुर। कोरोना वायरस (Corona Virus) के संकट काल के दौरान बहुत से लोगों की नौकरियां छूट गईं. बड़ी तादाद में लोग दाने-दाने को तरस गए. जब कोरोना वायरस की पहली लहर आई थी, तब प्रशासन समाज राजनीतिक पार्टियां (MP Political Parties) लगभग सभी लोग भोजन बांट रहे थे, क्योंकि बहुत सारे गरीबों को काम नहीं मिल रहा था. लोगों को राशन के लाले पड़े हुए थे. उस दौरान शुरू हुआ सिलसिला कुछ दिनों तक चला और फिर बंद हो गया, लेकिन इसी संकट काल (Corona Pandemic) में राहत रोटी नाम से कुछ स्टॉल शहर में नजर आए. सभी को ऐसा लग रहा था कि एक-एक करके जब फ्री भोजन (Free Food to poor) देने वाले कार्यक्रम बंद हो गए तो यह राहत रोटी (Rahat roti providing cheapest bread) भी बंद हो जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. आज भी राहत रोटी लोगों को राहत दे रही है.
दो रिटायर्ड कर्मचारियों की पहल
विजयनगर इलाके में रहने वाले दो रिटायर्ड कर्मचारियों (Retired Employee) ने कोरोना वायरस के संकट काल के दौरान लोगों की मदद करने के उद्देश्य से एक विचार बनाया कि वह एक किचन शुरू करेंगे, जिसमें ऐसी महिलाएं जिन का काम कोरोना वायरस की वजह से छूट गया है, उन्हें रोटी बनाने का काम सौंपा जाएगा. इसके लिए कुछ मशीनें (Roti making machine) भी तैयार की गईं और किचन तैयार हो गया. फिर इन बनी हुई रोटियों को बेचने के लिए सड़क पर स्टॉल लगाए गए. इसमें कुछ बेरोजगार (Unemployment in mp) लोगों को काम पर रखा गया.
रोटी से रोजगार
शुरुआत में कुछ पैसा इन रिटायर्ड कर्मचारियों ने लगाया इसके बाद इन लोगों ने इस पूरे सिस्टम को बिना किसी लाभ के शुरू किया. इस पूरे सिस्टम में रोटी का दाम लगभग दो रुपये तय किया. इससे काम करने वाली महिलाएं और रोटी बेचने वाले लड़कों को लगभग 5000 रुपये प्रति माह की बचत होने लगी. इसमें रोटी बनाने के दौरान आटा रसोई गैस जैसी लागत भी निकल रही है. फिलहाल राहत रोटी के दो काउंटर से लगभग 1000 रोटियां बिक जाती हैं.