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MP में OBC को 27 फीसदी आरक्षण के मामले में सुनवाई, जानिए- क्या कहा हाईकोर्ट ने

By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Dec 16, 2023, 2:22 PM IST

मध्यप्रदेश के जबलपुर हाई कोर्ट में ओबीसी आरक्षण 27 प्रतिशत किये जाने से संबंधित याचिकाओं की सुनवाई हुई. मुख्य याचिका के साथ संबंधित अन्य याचिका को निर्धारित तिथि पर लिस्टिंग नहीं किये जाने के आरोप लगाते हुए अवमानना याचिका दायर की गयी. युगलपीठ ने 25 हजार रुपये की कॉस्ट लगाते हुए उक्त याचिका को खारिज कर दिया.

MP high Court Hearing 27 percent reservation for OBC
एमपी में ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण के मामले में सुनवाई

जबलपुर।हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रवि विजय कुमार मलिमठ तथा जस्टिस विशाल मिश्रा की युगलपीठ द्वारा मध्यप्रदेश में ओबीसी आरक्षण 27 प्रतिशत किये जाने से संबंधित याचिकाओं की सुनवाई की गई. 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण किये जाने के खिलाफ व पक्ष में 64 याचिकाएं दायर की गयी थीं. मुख्य याचिका के साथ लिंक अन्य याचिकाओं को नियत तिथि में सूचीबद्ध नहीं किये जाने के खिलाफ अधिवक्ता बृजेश कुमार सहवाल ने अवमानना याचिका दायर की. अवमानना याचिका में हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल राम कुमार चौबे, रजिस्टार हेमंत जोशी तथा रजिस्टार संदीप शर्मा को अनावेदक बनाया गया था.

याचिकाओं की संयक्त रूप से सुनवाई :युगलपीठ द्वारा याचिकाओं की सुनवाई संयुक्त रूप से की गयी. याचिकाओं की सुनवाई के बाद युगलपीठ ने 25 हजार रुपये की कॉस्ट लगाते हुए अवमानना याचिका को खारिज कर दिया गया. युगलपीठ ने उक्त राशि सिंगरौली निवासी याचिकाकर्ता अधिवक्ता को जमा करने के निर्देश दिये हैं. युगलपीठ ने मुख्य याचिका सुनवाई के लिए गठित विशेष बेंच के समक्ष प्रस्तुत करने के निर्देश दिये हैं. विस्तृत आदेश फिलहाल प्रतीक्षित है. मुख्य याचिकाकर्ता की तरफ से अधिवक्ता आदत्य संघी तथा अवमानना याचिका में अधिवक्ता रामेश्वर सिंह तथा विनायक शाह ने पैरवी की.

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सिविल जज परीक्षा मामले में शुद्धि पत्र :मध्यप्रदेश हाई कोर्ट ने सिविल जज परीक्षा के लिए नियम 7 (जी) को शिथिल जारी किया है. इस संबंध में हाईकोर्ट प्रशासन की तरफ से शुद्धि पत्र आदेश जारी किया गया है. सिविल जज परीक्षा में आवेदन करने के लिए यह नियम बाधक नहीं होगा. गौरतलब है कि सिविल जज परीक्षा के लिए आवेदन के नियम 7 जी के अनुसार अभ्यर्थियों को एलएलबी परीक्षा में 70 प्रतिशत अंक आवश्यक थे. एटीकेटी से परीक्षा पास करने वाले आवेदन नहीं कर सकते थे. इसके अलावा तीन साल तक प्रतिवर्ष कोर्ट में 6 पेशियों में उपस्थिति का सबूत भी प्रस्तुत करना था. वकालत के तीन साल का अनुभव सहित अन्य शर्तें थीं, जिसके खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी.

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