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अर्जुन ने मां कुंती के लिए स्वर्ग से बुलाया था ऐरावत हाथी, सुख-समृद्धि के लिए इस तरह करें महालक्ष्मी का पूजन

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Published : Sep 10, 2020, 7:44 PM IST

सुख-समृद्धि और लक्ष्मी की प्रसन्नता प्राप्ति के लिए महिलाओं के लिए महालक्ष्मी का व्रत, राधाष्टमी से पित्र पक्ष की अष्टमी तिथि तक किया जाता है. इस व्रत को करते समय हाथी पर सवार लक्ष्मी की प्रतिमा का पूजन करने का विधान है.

Worship Mahalakshmi in this way for happiness and prosperity
सुख-समृद्धि के ऐसे करें महालक्ष्मी पूजन

होशंगाबाद। परिवार की सुख-समृद्धि और स्थिर लक्ष्मी की प्राप्ति के लिए महिलाओं के लिए महालक्ष्मी का व्रत, राधाष्टमी से पित्र पक्ष की अष्टमी तिथि तक किया जाता है. इस व्रत को करते समय हाथी पर सवार लक्ष्मी की प्रतिमा का पूजन करने का विधान है. महालक्ष्मी में मिट्टी की गज हाथी की प्रतिमा को आम लोग घरों मे रखकर पूजन करते हैं. इस व्रत में गज लक्ष्मी के स्वरूप की पूजन की जाती है. श्राद्ध पक्ष की अष्टमी तिथि को महालक्ष्मी पूजन विधि विधान से करने से स्थिर लक्ष्मी की प्राप्ति होती है. इस दिन सोना खरीदने का रिवाज भी हिंदू ग्रंथों में है. इस व्रत को करने से पहले महिलाएं सुबह उठकर स्नान कर 108 दूवा से मां लक्ष्मी को जल अर्पण करती हैं. श्राद्ध पक्ष में कोई भी शुभ काम नहीं किया जाता है, लेकिन महालक्ष्मी का ही अनोखा व्रत है. जिसे श्राद्ध पक्ष के अष्टमी पर माता लक्ष्मी की पूजा के रूप में किया जाता है. जोकि एक माह तक तकरीबन 16 दिन में संपन्न होता है. आचार्य डॉ. गोपाल प्रसाद बताते हैं कि ये पूजन धन वैभव की पूजा कहलाती है. इस पूजन के करने से घर मे धन लक्ष्मी वैभव का वास होता है. हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार अश्विन मास महालक्ष्मी का माह माना गया है.

सुख-समृद्धि के ऐसे करें महालक्ष्मी पूजन

महालक्ष्मी पूजा की विधि

महालक्ष्मी की पूजा में मां वैभव लक्ष्मी की एरावत हाथी पर बैठकर स्वर्ग लोक से पृथ्वी पर आती हैं और आम लोग मिट्टी के प्रतीकात्मक प्रतिमा में मां लक्ष्मी की पूजा करते हैं. डॉ गोपाल प्रसाद बताते हैं इसमें पूरे दीपदान के साथ घरों में पकवान बनाये जाते हैं. जिसका भोग ऐरावत हाथी को लगाया जाता है. जबकि पूजा मुहूर्त में मां लक्ष्मी की प्रतिमा की स्थापना करके अक्षत, दूवा, सुपारी, नारियल, फल, मिठाई, चंदन पत्र, माला सफेद, कमल या अन्य किसी फूल से मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है. इसके साथ ही पूजन कर महालक्ष्मी की व्रत कथा सुनाई जाती है, साथ ही इस दौरान कुछ लोगों द्वारा हाथी को सजीव रूप में बुलाने की भी परंपरा है. जहां सजीव रूप से हाथी की पूजा की जाती है. हर हाथी को भगवान इंद्र के ऐरावत का ही वंशज माना गया है. ऐसे में हाथी की विशेष पूजन कर विशेष पकवान हाथी को खिलाएं जाते हैं.

महालक्ष्मी पूजन में हाथी की पूजा का विधान

पांडवों की ऐरावत को धरती पर लाने की कहानी

महालक्ष्मी के व्रत की महाभारत काल की कुंती की कथा प्रसिद्ध है. जिसमें एक समय महर्षि वेद व्यास हस्तिनापुर आए वेद व्यासजी ने माता कुंती और गंधारी ने पूछा हम ऐसा सरल व्रत पूजन बताएं, जिससे राज्य लक्ष्मी सुख-संपत्ति राज्य में समृद्ध बनी रहे. वेद व्यास ने महालक्ष्मी व्रत गज लक्ष्मी व्रत के बारे में बताया. गांधारी ने अपने 100 पुत्रों से मिट्टी मंगाकर एक विशाल हाथी बनवाया और नगर की सभी महिलाओं को बुलाया. लेकिन गंधारी ने कुंती को नहीं बुलाया, लिहाजा कुंती ने इसे अपमान समझा. जिससे वे उदास हो गयी. जब उनकी उदासी उनके पुत्रों ने देखी तो उनसे प्रश्न किया. कुंती ने कहा कि गांधारी ने मिट्टी का हाथी बनाकर पूजन के लिए नगर की महिलाओं को बुलाया है. इस पर अर्जुन ने कहा कि आप भी सभी महिलाओं को बला ले पूजा की तैयारी करें. हमारे यहां स्वर्ग इंद्र के ऐरावत हाथी की पूजा होगी. शाम होते ही अर्जुन की मांग पर इंद्र ने स्वर्ण आभूषण से सजे हुए ऐरावत हाथी को पृथ्वी लोक पर भेजा और सभी महिलाओं ने उसकी पूजा की. इस दौरान ऐरावत को देख गांधारी के महल से सभी महिलाएं कुंती के महल में आकर साक्षात ऐरावत की पूजा की.

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