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होशंगाबाद 2021: मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की घोषणा के 10 माह बाद भी नहीं हुआ नर्मदापुरम का 'सवेरा'

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Published : Dec 28, 2021, 7:14 AM IST

Updated : Dec 28, 2021, 7:20 AM IST

खट्टी-मीठी यादों के साथ साल 2021 दुनिया को अलविदा कहने को तैयार है, वहीं 2022 के आगमन की जोर-शोर से तैयारी भी चल रही है. कहीं कुछ बदला तो कहीं बहुत कुछ बदला. पर होशंगाबाद साल 2021 में भी नर्मदापुरम (Hoshangabad name not changed to Narmadapuram) नहीं हो पाया, जबकि 10 माह पहले मुख्यमंत्री ने खुद ही नर्मदा जयंती पर (CM Shivraj Singh announced on Narmada Jayanti 2021) नाम बदलने का आश्वासन दिया था. होशंगाबाद कमिश्नर का ऑफिशियल ट्विटर नर्मदापुरम के नाम से है.

alvida 2021
अलविदा 2021

होशंगाबाद। पिछले कुछ सालों से नाम के लिए नाम बदलने की होड़ लगी है. यूपी में कई शहरों के नाम बदले जा चुके हैं. एमपी में भी कई नामों को बदला जा चुका है और कई नाम बदलने की तैयारी भी है, कुछ नाम ऐसे भी हैं, जिन्हें बदलने की मांग लंबे समय से हो रही है. पिछले महीने जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भोपाल दौरे पर आए थे, तब कई नाम बदले गए और कई नामों को बदलने की मांग ने तूल पकड़ लिया है. पर इस साल भी होशंगाबाद को नर्मदापुरम (Hoshangabad name not changed to Narmadapuram) बनते देखने की आस बाकी ही रह गई. हालांकि, होशंगाबाद कमिश्नर का ऑफिशियल ट्विटर नर्मदापुरम (Narmadapuram Commissioner) के नाम से है.

होशंगाबाद का नाम नर्मदापुरम करने की मांग

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10 माह से धूल फांक रही मुख्यमंत्री शिवराज की घोषणा

सतपुड़ा टाइगर रिजर्व का नाम राजा भभूत सिंह टाइगर रिजर्व करने के लिए कई संगठनों ने हस्ताक्षर अभियान चलाया. इसी साल 19 फरवरी को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने नर्मदा जयंती महोत्सव पर मंच से होशंगाबाद का नाम बदल कर नर्मदापुरम करने की घोषणा की थी, नाम परिवर्तन की अधिसूचना विधानसभा से पास कराकर केंद्र के पास भेज दी गई है, जोकि अभी तक पेंडिंग है. 10 माह पहले जलमंच (CM Shivraj Singh announced on Narmada Jayanti 2021) से की गई सीएम की घोषणा अब तक धूल फांक रही है, जबकि हबीबगंज का नाम बदलने का प्रस्ताव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भोपाल दौरे से करीब 24 घंटे पहले ही पास कर दिया गया.

मोक्षदायिनी मां नर्मदा का तट

राज्य सरकार तक नहीं पहुंचा नगर पालिका का प्रस्ताव

पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष व प्रदेश संयोजक झुग्गी झोपड़ी प्रकोष्ठ अखिलेश खंडेलवाल ने बताया कि पुरातात्विक महत्व और नर्मदा तट के चलते इसका नाम नर्मदापुरम होना चाहिए. साल 1994 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने जन जागरण कर कलेक्टर को ज्ञापन सौंपा था, उस समय व्यापारी, विद्यार्थी और समाज के लोगों ने जन जागरण किया था, ताकि होशंगाबाद को एक आक्रांता और गुलामी की पहचान से मुक्ति दिलाई जा सके. इसीलिए इसका नाम मां नर्मदा के नाम पर होना चाहिए. आंदोलन के बाद 2006 में इसका प्रस्ताव नगर पालिका ने पास किया था, लेकिन राज्य शासन तक ये प्रस्ताव नहीं पहुंच सका.

भवानी प्रसाद मिश्र की लिखी कविता

10 माह से केंद्र के पास पड़ी है नर्मदापुरम की फाइल

इसी साल नर्मदा जयंती पर मुख्यमंत्री ने इस मांग को स्वीकार किया था, मंच से होशंगाबाद का नाम नर्मदापुरम करने की घोषणा भी कर दी थी. नाम बदलने का प्रस्ताव भी विधानसभा में पास हो गया और केंद्र के पास अनुमति के लिए भेज दिया गया, लेकिन अभी तक अप्रूवल नहीं मिल पाया है. एक तरह से राज्य ने इस मुद्दे को केंद्र के पाले में डाल दिया है. ये सवाल इसलिए भी उठ रहा है क्योंकि हबीबगंज का नाम बदलकर रानी कमलापति रेलवे स्टेशन करने में राज्य से केंद्र तक ने 24 घंटे का भी समय नहीं लिया, फिर ये 10 माह से होशंगाबाद (history of Hoshangabad) क्यों ये कलंक ढो रहा है.

नर्मदापुरम कमिश्नर का ट्विटर का वालपेपर

होशंगाबाद का नाम बदलने की बीजेपी की नीयत ही नहीं

जिला कांग्रेस प्रवक्ता शिवराज सिंह चंद्र ने बताया कि कुछ समय पहले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने होशंगाबाद का नाम बदलकर नर्मदा पुरम करने की घोषणा की थी, वह नहीं हो पाएगी. भारतीय जनता पार्टी की नीयत और नीति सिर्फ राजनीति से प्रेरित रही है. भाजपा का एजेंडा ही है कि हिंदू के नाम पर मुस्लिम को और मुस्लिम के नाम पर हिंदू को लड़ाओ. सरदार बल्लभ भाई पटेल स्टेडियम को मोदी स्टेडियम बना दे. स्टेशन को किसी दूसरे के नाम पर कर दे. जब जन भावना और आस्था की बात आती है तो बीजेपी मौन रहती है क्योंकि यह चुनावी विषय नहीं है. इसीलिए होशंगाबाद का नाम मां नर्मदा के नाम पर करने की भाजपा की नीयत ही नहीं है.

होशंगाबाद रेलवे स्टेशन का प्लेटफॉर्म

होशंग शाह ने नर्मदापुरम का नाम किया था होशंगाबाद

इतिहास में होशंगाबाद का नाम एक प्रागैतिहासिक राज्य के रूप में दर्ज है, जहां अनेक राजवंशों के साम्राज्य का पतन होता है. 11वीं शताब्दी में परमार राजा उदय वर्मा के भोपाल से मिले ताम्रपत्रों में उल्लेख है कि इसे नर्मदापुरम के नाम से जाना जाता था, होशंगाबाद के गुनौर ग्राम का उल्लेख उस अभिलेख में मिलता है, 15वीं शताब्दी में होशंग शाह जो मालवा का सुल्तान था, जो विशेष रूप से मांडू का सुल्तान था. साम्राज्य को बढ़ाते हुए वह भोपाल मंडीदीप भोपाल के बड़े तालाब को नुकसान पहुंचाते हुए होशंगाबाद की सीमाओं में प्रवेश किया, अपने नाम की पहचान के लिए इसका नाम होशंगाबाद रखता है, इसकी पुष्टि उस समय के साहित्यिक संदर्भ से होती है. मध्यकालीन इतिहास के पन्नों को जब खोलते हैं तो इसकी पहचान होशंगाबाद से होती है.

नर्मदा नदी पर बना घाट

मांडू के पतन के बाद मुगल साम्राज्य में मिल गया मालवा

सुल्तान होशंग शाह घोरी के नाम पर होशंगाबाद नाम पड़ा है, नर्मदापुर इसका तत्कालीन नाम था. 1405 ईसवी में सुल्तान होशंगशाह घोरी के शासनकाल में ऐतिहासिक अभिलेखों में इसका नाम पहली बार सामने आया था, जिन्होंने होशंगाबाद में दो अन्य लोगों के साथ हंडिया और जोगा में एक छोटा किला बनाया था. बैतूल के पास खेरला के गोंड राजा के खिलाफ अपने अभियानों में उन्होंने हमेशा हरदा और होशंगाबाद के माध्यम से मार्ग लिया. 1567 में मांडू के पतन के बाद मालवा को मुगल साम्राज्य के एक रियासत के रूप में विलोपित किया गया था. नर्मदा नदी के पार होशंगाबाद के उत्तर-पश्चिम में गिन्रूगढ़ का किला गढ़ा-मंडला के गोंड साम्राज्य के अधीन रहा.

Last Updated :Dec 28, 2021, 7:20 AM IST

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