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मेरा दर्द, कोई तो महसूस करो...डॉक्टरों ने रॉड-पत्थर से बांधा काम चलाऊ प्लास्टर, मरीज ऑपरेशन के लिए परेशान

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Published : Jun 22, 2021, 5:32 PM IST

दमोह में एक 50 वर्षीय मरीज अपने पैर के ऑपरेशन के लिए ढाई महीने से परेशान है. जिला अस्पताल में डेढ़ महीने तक भर्ती होने के बाद भी उसका ऑपरेशन नहीं हो सका. अब वह इलाज के लिए दर-दर भटक रहा है. पीड़ित ने मामले की शिकायत कलेकटर से भी की है.

patient troubled by the district hospital
रॉड-पत्थर से बांधा काम चलाऊ प्लास्टर

दमोह।कलेक्टर की जनसुनवाई में उस समय हर कोई हैरान रह गया जब एक मजबूर व्यक्ति को उन्होंने जमीन पर बैठकर आवेदन लिखते देखा. दरअसल 50 वर्षीय विनोद अहिरवार अपने पैर के ऑपरेशन को लेकर परेशान है. उसका कहना है कि, पिछले ढाई महीने से वह ऑपरेशन के लिए दर-दर भटक रहा है, लेकिन उसकी सुनने वाला कोई नहीं. 4 अप्रैल को विनोद का एक्सीडेंट हो गया था, जिसके बाद से वह अपना इलाज कराने के लिए लगातार जिला अस्पताल के चक्कर काट रहा है. कुछ दिन वह अस्पताल में भर्ती भी रहा, पर लॉकडाउन के कारण उसका ऑपरेशन नहीं हो सका. वहीं अब जब भी वह जिला अस्पताल जाता है, तो 10 या 15 दिन बाद का कहकर उसे वापस भेज दिया जाता है. आखिर में थक-हारकर वो अपनी शिकायत लेकर कलेक्टर के पास पहुंचा.

रॉड-पत्थर से बांधा काम चलाऊ प्लास्टर

रॉड-पत्थर से बांध दिया काम चलाऊ प्लास्टर

दमोह के मल्लपुरा क्षेत्र का रहने वाला 50 वर्षीय विनोद अहिरवार 4 अप्रैल को हादसे का शिकार हो गया था. उसका रिक्शा एक वाहन स टकरा कर पलट गया था. हादसे में उसके पैर की हड्डी टूट गई. जांच के बाद डॉक्टर ने बताया कि उसके पैर का ऑपरेशन होना है. लेकिन जिला अस्पताल में 19 अप्रेल तक उसका ऑपरेशन नहीं हो सका. वहीं 19 अप्रैल से दमोह में लॉकडाउन लग गया. दूसरी तरफ कोरोना मरीजों की संख्या बढ़ने के कारण डॉक्टरों ने विनोद का ऑपरेशन करने से मना कर दिया.

डेढ़ महीने तक अस्पताल में भर्ती रहने के बाद भी उसका ऑपरेशन नहीं हो सका. अब लॉकडाउन खत्म हो गया है, लेकिन विनोद का आरोप है कि उसके पैर का डॉक्टर ऑपरेशन नहीं कर रहे हैं. पीड़ित का कहना है कि वह बार-बार अस्पताल गया, लेकिन इलाज नहीं मिल सका. हालांकि इस दौरान ड्यूटी पर मौजूद एक डॉक्टर ने उसके पैर में एक रॉड जरूर लगा दी थी ताकि पैर हिले डुले नहीं.

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घर में कमाने वाला अकेला व्यक्ति है विनोद

पीड़ित विनोद की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है. उसके घर में 80 साल की बुजुर्ग मां के अलावा कोई नहीं है. ऐसे में पैर की हड्डी टूट जाने से अब उनके सामने रोजी-रोटी तक का संकट होने लगा है. पहले रिक्शा चलाकर वह भरण पोषण करता था. लेकिन पैर टूट जाने के बाद से सब बंद है. पीड़ित के भांजे का कहना है कि, जब भी अस्पताल जाओ तो डॉक्टर कहते हैं 10 दिन बाद आना लेकिन कई दिन बीत जाने के बाद भी उपचार नहीं हो पा रहा है. इतना पैसा भी नहीं है कि निजी अस्पताल में इलाज करा सकें.

मामले में सिविल सर्जन का तर्क

मामले में सिविल सर्जन डॉक्टर ममता तिमोरी का कहना है कि कोविड के कारण करीब 2 महीने तक रूटीन के सभी काम बंद थे. बगैर जांच के कोई भी ऑपरेशन या उपचार नहीं हो रहे थे. लेकिन अब कोविड के उतने केस नहीं आ रहे हैं तथा रूटीन की जांच और ऑपरेशन भी शुरू हो गए हैं.

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