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शराबबंदी के सहारे खोए वजूद को पाने की कोशिश में उमा?

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Published : Sep 18, 2021, 10:09 PM IST

मध्य प्रदेश में फिर से उमा भारती ने शराबबंदी का राग छेड़ा है. इस बार उमा ने किसी तरह की गुजारिश नहीं की है, उमा ने सीधे चेतावनी दी है कि "सरकार शराब बंदी करे वरना मैं सड़क पर उतरुंगी."

शराबबंदी के सहारे खोए वजूद को पाने की कोशिश में उमा?
शराबबंदी के सहारे खोए वजूद को पाने की कोशिश में उमा?

भोपाल। राज्यसभा कोटे से टिकट की आस लगाए बैठी उमा भारती को तगड़ा झटका लगा है. यही वजह है कि उमा भारती ने अब एमपी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. उमा भारती को उम्मीद थी कि एमपी कोटे से बीजेपी उन्हें राज्यसभा भेजेगी, लेकिन केंद्रीय मंत्री मुरुगन को बीजेपी ने मध्य प्रदेश कोटे से राज्यसभा भेजने के लिए उम्मीदवार बनाया है. उमा भारती का दर्द सामने तो आया लेकिन ये कहकर उन्होने संतोष कर लिया कि मैंने पार्टी के सामने कभी कोई बात नहीं रखी. उमा भारती ने कहा कि मुझे पार्टी की जरूरत नहीं, पार्टी को मेरी जरूरत है.

अपनी सरकार के खिलाफ क्यों खोला मोर्चा?

उमा भारती अपने मन की बात सामने लेकर आईं है, उन्होंने पार्टी को दो टूक संदेश दे दिया कि उनको पार्टी की जरुरत नहीं है, बल्कि आज भी भाजपा को उनकी जरुरत है. पिछले कार्यकालों का अनुभव साझा करते हुए उमा ने कहा कि उन्होंने कभी भी टिकिट या पद नहीं मांगा बल्कि पार्टी खुद बुलाकर उनको तवज्जो देती है. उमा कहती है कि कई बार तो वो निर्वाचन का चुनाव भरते वक्त गायब हो जाती और फिर पार्टी को कहना पड़ता कि पार्टी को उनकी जरुरत है.

उमा ने शिवराज सरकार के खिलाफ खोला मोर्चा

उमा भारती के शराबबंदी पर पहले भी दिए गए बयानों को एमपी सरकार ने तवज्जो नहीं दी, लेकिन अब उमा ने सड़कों पर उतरने का ऐलान कर सरकार में हडकंप मचा दिया है. काफी दिनों बाद उमा के चुप्पी तोड़ने को उनकी अनदेखी का असर माना जा रहा है. यही वजह है कि उमा को प्रेस कांफ्रेस कर सफाई देनी पड़ी कि उनको कभी भी पार्टी की जरुरत नहीं पड़ी, बल्कि पार्टी ने कई मौकों पर बुला बुलाकर उन्हें पद दिए.

शराबबंदी के सहारे खोए वजूद को पाने की कोशिश में उमा?

माना जा रहा है कि उमा भारती नई जिम्मेदारी की चाह में है. लेकिन उन्हें प्रदेश कार्यकारिणी में भी जगह नहीं दी गई है. इधर गुजरात का मुख्यमंत्री बदलने के बाद पुराने नेताओं को एमपी को लेकर थोड़ी उम्मीदें भी जागी है.

2003 में दिग्विजय सिंह को दी पटखनी

एक वक्त 2003 में फायर ब्रांड नेता उमा भारती को जनता का अपार समर्थन मिला, जानकारों की मानें तो उमा को जो क्रेडिट दिया जाता है, उसकी असली वजह जनता का दिग्विजय सिंह के खिलाफ गुस्सा था, जिसका फायदा उमा भारती को मिला और उसके बाद उमा को लगा कि वो जननेता हैं. यही वजह रही है कि बीजेपी से अलग होकर उन्होंने जनशक्ति पार्टी बनाई थी, लेकिन उनकी पार्टी को जनता ने औंधे मुंह चित्त कर दिया. अब उमा को लग रहा है कि जिस तरह से गुजरात में मुख्यमंत्री को बदला है, उस तरह मध्य प्रदेश में उनकी दोबारा वापसी हो जाए.

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एमपी की जनता नहीं देती तीसरे दल को तवज्जो

मध्य प्रदेश में सियासी इतिहास को देखें, तो जनता ने किसी भी तीसरे दल को तवज्जों नहीं देती है. अर्जुन सिंह और माधवराव सिंधिया ने पार्टी बनाई, तो वहीं उमा भारती ने भी जनशक्ति पार्टी बनाकर अपना वर्चस्व स्थापित करने की कोशिश की, लेकिन एमपी की जनता ने किसी भी व्यक्ति को अलग से नेता बनने का मौका नहीं दिया.

उमा ने सीएम रहते की थी कोशिश

उमा भारती ने मुख्यमंत्री रहने के दौरान शराबबंदी करने की शुरुआत भी की, उमा ने सीएम रहते हुए कई धार्मिक स्थलों के आसपास शराब बेटने पर पाबंदी लगाई. उमा भारती ने पांच सूत्र का मंत्र भी दिया था, जिसमें उनका फोकस जल, जंगल ,जमीन, जन और जानवर यानी पंच 'ज' पर था. अब एक बार फिर उमा इन्हीं मुद्दों पर सरकार से आर-पार की लड़ाई मूड में है. अब देखना होगा कि उमा का ये सियासी दांव कारगार साबित होगा या वो पटखनी खाएगी.

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