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Counselor Mohib Ahmed: हर बंदिश से आगे पहुंची एक मुस्लिम लड़की की कहानी, पिता ने कहा था- बुनाई नहीं, बिटिया बंदूक चलाना सीखेगी

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Published : Aug 1, 2023, 9:04 PM IST

Updated : Aug 1, 2023, 11:01 PM IST

आज ETV Bharat आपको बताने जा रहा है एक ऐसी मुस्लिम लड़की की कहानी, जो हर बंदिश से आगे है. हम बात कर रहे हैं काउंसलर मोहिब अहमद की, जिनके पिता ने कहा था- बुनाई नहीं, बिटिया बंदूक चलाना सिखेगी. आइए जानते हैं उन्हीं की मुंह जुबानी-

Counselor Mohib Ahmed
काउंसलर मोहिब अहमद

बंदिश से आगे पहुंची एक मुस्लिम लड़की की कहानी

भोपाल। पिता ने तैराकी सिखाने उसे उफनती चंबल में डाल दिया था, 6 बरस की जिस उम्र में बच्चियां मां की गोद से नहीं छोड़ती. बिन मां की वो बेटी हॉस्टल पहुंच गई थी और फ्रेंच, ब्रिटिश, जर्मन टीचर्स के साथ इल्म की नई दुनिया में कदम रख रही थी, पर्दे की बंदिशें ना देखीं ना रखीं कभी... लेकिन घर की मर्यादा का ख्याल हर वक्त रखा. पूरी दुनिया घूमने के साथ कंबोडिया मंगोलिया जैसे देशों में काउंसलिग करती रही, मोहिब अहमद ने 1999 में काउंसलिंग की शुरुआत की और अब तक इसके जरिए 2000 से ज्यादा परिवारों के रिश्ते टूटने से बचा चुकी हैं.

मोहिब कहती हैं "दुनिया के किसी हिस्से में चले जाइए, रिश्तों का एक ही सच है. हर जगह घरेलू हिंसा शिकार केवल औरत है. अब फसाद की जड़ सोशल मीडिया है, जिसके आने के बाद रिश्ते व्हाट्सअप स्टेटस की तरह बदल रहे हैं. 60-70 के दशक में जब बेटियों के लिए देहरी के बाद ही रास्ते बंद हो जाते थे, उस दौर में मोहिब अहमद दुनिया के कई दशों में पर्वतारोहण के करने के साथ हर उस सपने को पूरा कर रही थी उस दौर में जो सिर्फ लड़कों के हिस्से आते थे.

6 बरस की छोटी उम्र से हॉस्टल लाइफ:पिताजी पुलिस में थे लिहाजा घर में अनुशासन का माहौल रहा. 6 बरस की उम्र में मां को खो दिया, फिर उसी उम्र ने अच्छी पढ़ाई लिखाई के लिए मोहिब को हॉस्टल भेज देया. 12 साल तक हॉस्टल में रही जर्मन फ्रेंच और ब्रिटिश टीचर्स से पढ़ीं, घर आई तो उदू पढ़ाने मौलवी साहब और संसकृत हिंदी पढ़ाने पंडित जी घर आते थे. वे बताती हैं "मेरे पिता ने एक बेटी की तरह मुझे नहीं पाला, मुस्लिम परिवार में अमुमन ऐसा नहीं होता लेकिन हमारा परिवार आर्मी और पुलिस बैकग्राउण्ड का था. मुझे याद है कि मुझे पिता ने तैराकी सिखाने चंबल नदी में फेंक दिया था, यही तरीका था उनका कि बोल्डनेस के साथ जीवन की हर मुश्किल से जीतना सीखो. खाना बनाना, सिलाई कढ़ाई तो कभी भी आती रहेगी. उन्होंने मुझे घुड़सवारी के साथ बंदूक चलाना सिखाया. आज भी कई लड़कियों की इस तरह से परवरिश नहीं हुई होगी पर मेरी हुई थी."

शादी के बाद जब पहुंची डाकुओँ के बीच:शादी भी पुलिस अधिकारी से हुई है. लिहाजा मोहिब अहमद के लिए जिंदगी बहुत बदली नहीं बल्कि और एडवेंचरस हो गई. वे बताती हैं "मेरे पति के पास जेल की जवाबदारी थी और उस समय जयप्रकाश नायारण के प्रयासो से खुली जेल का प्रयोग शुरु हुआ था. मुंगावली में ये खुली जेल बनी और हम पति पत्नि वहां टेंट में डाकूओं के बीच रहे. जबकि पुलिस अधिकारी भी वहां जाने से डर रहे थे, डरना मैने सीखा नहीं था इसलिए मैं डटी रही, बल्कि अपने हसबैंड को मै ये हिम्मत देती रही कि हमें डाकुओं के बीच भी पूरे भरोसे से रहना चाहिए. इसी दौरान मैने बच्चों को लेकर देश दुनिया के कई हिस्सों में ट्रैकिंग भी की, जिसमें इंडोनेशिया, स्वीटजरलैण्ड गई."

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पति की मौत के बाद जुटाई हिम्मत आबूधाबी पहुंची:मोहिब अहमद ने टीचिंग अपने शौहर के जीवित रहते ही शुरु कर दी थी, इसी दरमियान उनके निधन के बाद जिंदगी में दुबारा खड़ा होने की जो मन में ठानी तो आबूधाबी पहुंच गई. 3 महीन के लिए गई वहां भी टीचिंग का ही जॉब था, लेकिन जब पता चला कि वे यहां अपने बच्चों को नहीं ला सकती तो लौंट आईं. इसी के बाद उन्होंने काउंसलिग का रुख किया. मोहिब कहती हैं "अपने से बड़े दुख देखना चाहती थी, इसी कोशिश में कम्बोडिया से मंगोलिया तक पहुंची और वहां का तजुर्बा भी यही रहा कि महिलाओं की हालत दुनिया किसी भी हिस्से में सेंकेड सिटीजन की ही है."

23 साल में भरोसे की चिड़िया उड़ गई जैसे:1999 से लगातार पारिवारिक काउंसलिंग दे रही मोहिब अहमद कहती है "मैं अब तक 2000 से ज्यादा रिश्ते बचा पाई इस बात की तसल्ली है, लेकिन रिश्तों में स्थिति बदतर हो गई है. 1999 में तो फिर भी एवरग्रीन सास-बहू वाले मामले ही आते थे, लेकिन अब पति-पत्नि के रिश्ते में सबसे बड़ा दुश्मन सोशल मीडिया है. भरोसे की दरार और गहरी हो गई है, फिर कोविड पीरियड में तो ये हुआ कि पति-पत्नि घर पर रहे तो ये मामले और तेजी से बढ़े. हैरत की बात है कि रिश्तेदारियों में जात-पात अब तेजी से बढ़ी है. हम रिवर्स जा रहे हैं."

Last Updated :Aug 1, 2023, 11:01 PM IST

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