भोपाल। साल 1956 था. मध्यप्रदेश का पुनर्गठन के बाद चुनाव हुए थे. 01 नवंबर 1956 को देश के इस नवनिर्मित प्रदेश को पहला मुख्यमंत्री मिला, जिनका नाम पं. रविशंकर शुक्ला था. उन्हीं के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी ने प्रदेश की पहली सरकार का गठन किया. उनका कार्यकाल 01 नवंबर 1956 से 31 दिसंबर 1956 तक रहा. इस दौरान उनका सीएम रहते देहांत हो गया था.
प्रदेश को मिला 30 दिन का सीएम: पं रविशंकर शुक्ला की मौत के बाद सत्ता का शीर्ष भगवंतराव मंडलोई को सौंपा गया. उन्होंने 1 जनवरी 1957 को प्रदेश की कमान संभाली, उनका कार्यकाल 30 जनवरी 1957 तक ही चल सका. इसके बाद सीएम पद की जिम्मेदारी कांग्रेस ने कैलाश नाथ काटजू को दी. उन्होंने 31 जनवरी को प्रदेश की कमान संभाली, लेकिन इनका कार्यकाल भी 14 मार्च 1957 तक चल सका. यानी डेढ़ महीने.
इसके बाद फिर 14 मार्च 1957 वे प्रदेश के मुखिया बनें, और अगले पांच साल तक प्रदेश की कमान अपने हाथ रखी. ये कार्यकाल 11 मार्च से 1962 तक ही चला. इसके बाद सीएम का चेहरा बदल दिया गया. भगवंतराव मंडलोई को 12 मार्च 1962 को मुख्यमंत्री बनाया गया. उनका कार्यकाल अगले साल सितंबर 1963 तक रहा.
इसके बाद द्वारका प्रसाद मिश्रा कांग्रेस की तरफ से लगातार दो बार मुख्यमंत्री बने. उन्होंने सबसे पहले सितंबर 1963 और 09 मार्च 1967 को दोबारा सीएम पद की शपथ ली. इसके बाद गोविंद नारायण सिंह (1967), राजा नरेशचंद्र सिंह (1969), श्यामा चरण शुक्ला (1969), प्रकाश चंद्र सेठी (1972,1975), श्यामा चरण शुक्ला (1975) में मुख्यमंत्री बने. इन सभी ने कांग्रेस पार्टी सरकार का नेतृत्व प्रदेश में किया.
प्रदेश में लगा पहली बार राष्ट्रपति शासन: इसके बाद अप्रैल 1977 से जून 1977 के बीच प्रदेश में पहली बार राष्ट्रपति शासन लगा. ये देशभर में लगी इमरजेंसी का दौर था. इसके बाद अगले तीन बार तक जनता पार्टी की सरकार प्रदेश में रही. इसमें कैलाश चंद्र जोशी (1977), वीरेंद्र कुमार सक्लेचा (1978), सुंदरलाल पटवा (1980) को जनता पार्टी की तरफ से विधायक बने. इसके बाद प्रदेश में अगले चार महीने के लिए राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया. अगले 6 कार्यकाल तक कांग्रेस के सीएम ने प्रदेश की कुर्सी संभाली. इसमें अर्जुन सिंह (1980,1985) मुख्यमंत्री बनें, लेकिन 1985 में एक दिन बाद मुख्यमंत्री बदल दिया गया और मोतीलाल वोरा (1985) को मुख्यमंत्री बनाया गया.