भिंड। किसी भी शादी में बारात के साथ घोड़ी पर बैठकर ढोल नगाड़े के साथ दुल्हन को लेने जाने का अरमान हर दूल्हे का होता है. दुल्हन भी घोड़ी पर बैठकर उसे लेने आते राजकुमार का सपना देखती है. यही कारण है कि शादियों में बारात के लिए घोड़ी की मांग हर सीजन में होती है. बीते दो साल में कोरोना (no booking to mare owner) का कहर घोड़ी मालिकों के व्यवसाय पर भी बरसा है. अब शादियां बारात के साथ दोबारा शुरू हुई हैं. ऐसे में इन घोड़ी वालों की क्या स्थिति है, पहले की अपेक्षा इस बार कितनी बुकिंग हो रही हैं और क्या मुश्किलें सामने आ रही हैं. जानिए इस खास रिपोर्ट के जरिए.
घोड़ियों की नहीं आ रही पहले जैसी मांग
कोरोना काल में न शादियां (marriage in corona pandemic) हुईं न बारातें निकलीं. शादियों का पूरा सीजन मानो खराब हो गया. 6 महीने बाद शादियों को छूट तो मिली लेकिन कभी 50 तो कभी 100 लोगों के शामिल होने की अनुमति के साथ. ऐसे में लोगों ने सिर्फ सीमित करीबियों के साथ शादी समारोह (marriage function in bhind) आयोजित किए. बैंड बाजे बारात के साथ ही दूल्हे की घोड़ी की भी किसी ने पूछ नहीं की. कोरोना की वजह से घोड़ी मालिकों की आय पर भी गहरा असर पड़ा. भिंड जिले में कुछ गरीब परिवार रोजी रोटी के लिए घोड़ी पालन करते हैं. शादियों में वे इन घोड़ियों को किराए पर देकर अपना जीवन यापन करते हैं.
पहले के मुकाबले 20 फीसदी रह गई कमाई
साल में नवम्बर से जून महीने तक करीब 8 महीने शादी समारोह आयोजित होते हैं. ऐसे में बारात के लिए घोड़ी की मांग होती है. जिले में करीब तीन दर्जन परिवार ऐसे हैं, जो घोड़ा पालन (how to take care of horse) करते हैं. शहर में तो सिर्फ 6-8 परिवार ही ऐसे हैं, जहां आज भी घोड़ी मालिक उनका पालन कर अपनी जीविका चला रहे हैं. घोड़ी मालिक रानू सिंह ने बताया कि शादियां मुहूर्त के हिसाब से होती हैं. कोरोना के पहले सीजन में कई बार घोड़ी दो शादियों में भी चली जाती थीं. ऐसे में 20 से 25 शादियों की बुकिंग हर महीने आ जाती थी. इन दो सालों में कोई बुकिंग नहीं मिली है. घर में खाने तक के लाले हो गए थे. अब सीजन तो दोबारा शुरू हुआ है, लेकिन बुकिंग उतनी नहीं मिल रही है. अब तक महज 4 से 5 शादियों में ही घोड़ी जा पायी है.
बुकिंग के लिए बैंड पर होना पड़ रहा निर्भर
रमेश ने बताया कि शादियों के सीजन से होने वाली कमाई उनकी आय का मुख्य स्रोत है. पहले लोग शादियों में ज्यादा तामझाम नहीं रखते थे. शादियां घरों से होती थी, तो बारात में सिर्फ लाइट वाला घोड़ी और बैंड वाले अलग-अलग बुकिंग लेते थे. अब लोग बैंड वालों से ही बुकिंग करते हैं. इसकी वजह से हमें भी उनके हिसाब से चलना पड़ता है. सीधा आने वालों से बुकिंग के लिए तीन हजार रुपय तक चार्ज करते हैं, लेकिन बैंड वालों से सिर्फ एक हजार रुपये ही मिलते हैं. इस वजह से अब पहले जैसी कमाई नहीं हो पाती है.
घोड़ी की देखभाल का खर्च उठाना आसान नहीं
घोड़ी पालन भी आसान काम नहीं है. इनकी देखभाल में भी काफी खर्च आता है. शादियों में चलने वाले घोड़ों की सेहत का ख्याल रखना बेहद जरूरी होता है. इसके लिए उन्हें भरपूर चारा पानी देना आवश्यक है. अमूमन एक घोड़ा एक दिन में अपने वजन का 1 प्रतिशत चारा खा सकता है. इस हिसाब से एक सेहतमंद घोड़ा का वजन करीब 400 से 600 किलो तक हो सकता है. बाजार में घोड़ी के लिए मिलने वाली हरी घास या दूब- 400 रुपये क्विंटल आती है, ज्वार- 20-25 रुपये किलो, भूसा- 600 रुपये क्विंटल और चना- 90 रुपये किलो आता है. घोड़ी के कई बार बीमार होने की वजह से दवाएं भी लेनी पड़ती हैं. घोड़ी की देखभाल पर महीने में करीब करीब 10 हजार रुपये तक खर्च आता है.