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दुनिया में मिठास घोलेगा एमपी का शहद! पारंपरिक खेती के साथ तैयार हो रहा हनी

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Published : Feb 1, 2023, 5:04 PM IST

आम खेती के मुकाबले शहद और मधुमक्खी पालन का व्यवसाय भिंड के किसानों के लिए कमाई का बेहतर जरिया साबित हो रहा है. इससे ना सिर्फ उन्हें लाभ का धंधा मिल रहा है बल्कि कई किसान इनसे जुड़कर इस काम को अपना रहे हैं. साथ ही अन्य प्रदेशों से आए एक्सपर्ट मजदूरों को भी रोजगार मिल रहा है. देखिए रिपोर्ट...

Bhind farmers interest in Honey
दुनिया में मिठास घोलेगा एमपी का शहद

किसानों की शहद में दिलचस्पी

भिंड।शहद.. इसका नाम ही स्वाद में मिठास घोल देता है पूजा पाठ से लेकर, चाय दूध और पकवानों तक में इसका इस्तेमाल होता है. जितनी आसानी से यह बाजार से हमारे घरों में उपलब्ध हो जाता है उतना ही कठिन इसे बनाने की प्रक्रिया, लेकिन इन दिनों पारंपरिक खेती से हटकर शहद की खेती की ओर भिंड के किसानों का रुझान बढ़ रहा है जिससे किसान अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं.मध्यप्रदेश की पहचान कृषि और किसानों से होती है. किसान जो फसलें उगाता है उन्हें तैयार करता है और फिर काट कर बेचता है. इस तरह अपनी आजीविका चलाता है. अपना और दूसरों का पेट भरता है, लेकिन कई बार मेहनत के बाद भी उसे फसल उचित दाम नहीं मिल पाता है. चम्बल इलाके में किसान प्रतिवर्ष गेहूं, सरसों और बाजरा की फसल लगाते हैं कुछ किसान सब्ज़ियां उगाते हैं, लेकिन धीरे धीरे भिंड के किसान पारंपरिक किसानी से खेती के अन्य विकल्पों के बारे में सोचने लगे हैं. इन दिनों जिले में कई किसानों का रुझान शहद की खेती की और बढ़ा है. सरसों की फसल के साथ ही मधुमक्खी पालन के जरिए अच्छा खासा मुनाफा कमा रहे हैं.

भिंड के किसानों के लिए कमाई का बेहतर जरिया

किसानों की शहद में दिलचस्पी:भिंड जिले में इन दिनों अलग अलग इलाके में खेतों में इस सीजन मधुमक्खी के जरिए शहद निकालने वाले बॉक्स रखे नजर आ रहे हैं. जिसका काम करने के लिए बिहार से मजदूर बुलाए गए हैं. बिरखड़ी गांव में एक किसान के खेत में भी शहद की मिठास तैयार की जा रही है. इस खेत पर काम कर रहे विवेक कुमार से ETV भारत ने बात की तो उन्होंने बताया कि, वे बिहार से आए हैं और यहां मजदूरी कर रहे हैं. विवेक का कहना है कि, हर व्यक्ति अपनी आर्थिक परिस्थिति के हिसाब से काम करता है. उनके गांव में 80 फीसदी लोग मधुमक्खी पालन का काम करते हैं. उन्हें यह काम आता है. इसलिए वे गांव से इतनी दूर दो पैसे कमाने आए हैं. इससे किसान और मजदूर दोनों को फायदा होता है.

भिंड मधुमक्खी पालन

सर्दी के सीजन में होती है खेती:विवेक ने बताया कि, मधुमक्खी पालन तो साल के 365 दिन चलता है, लेकिन शहद की खेती सर्दी के सीजन में ही होती है. मधुमक्खियां नवम्बर से लेकर मार्च के महीने तक शहद बनाती हैं. इसके बाद ऑफ सीजन आ जाता है. जिसमें चीनी खिलाकर मधुमक्खियों को किसी तरह जिंदा रखना होता है. ये पालतू मधुमक्खियां सीजन आते ही दोबारा परागन प्रक्रिया के साथ शहद बनाना शुरू कर देती हैं.

मधुमक्खी पालन का व्यवसाय

इतनी लागत से शुरू कर सकते हैं व्यापार: अब सवाल आता है कि, शहद की खेती करने में कितनी लागत आती है. तो इस बारे में सवाल करने पर किसान विवेक ने बताया कि शहद की खेती के लिए सबसे पहले मधुमक्खी पालन करना पड़ता है. जिसके लिए छत्ते वाले बॉक्स लेने पड़ते हैं एक बॉक्स की कीमत करीब 2 हजार रुपय होती है. इसके साथ ही मधुमक्खियां भी मिल जाती हैं. सिर्फ एक बॉक्स से काम शुरू कर सकते हैं, लेकिन इससे खेती नहीं की जा सकती है. मधुमक्खियां अंडे देती हैं और इन अण्डों के जरिए मधुमक्खियों की संख्या बढ़ती जाती है. इस तरह धीरे धीरे बॉक्स की संख्या भी बढ़ती है. हर बॉक्स में एक रानी मधुमक्खी होती है. इस तरह आपका फर्म तैयार हो जाता है. भिंड में जिस खेत पर वे काम कर रहे हैं. वहां लगभग 300 बॉक्स लगे हुए हैं. जिनमें शहद तैयार होता रहता है. हालांकि ये बॉक्स लंबे समय तकि उपयोग में आते रहते हैं.

पारंपरिक खेती के साथ तैयार हो रहा हनी

पालतू मधुमक्खियों से खतरा कम:विवेक से जब पूछा गया कि, मधुमक्खी के हमले का खतरा होने के बावजूद क्यों इस काम में लगे हुए है तो उन्होंने कहा कि, आम आदमी के लिए यह काम खतरनाक हो सकता है, लेकिन मधुमक्खियां धीरे धीरे पालतू हो जाती हैं. एक 2 मधुमक्खी काट भी ले तो डंक की वजह 5-10 मिनट दर्द रहता है. फिर सब सामान्य हो जाता है. वर्षों से इस काम से जुड़े होने की वजह से अब उन्हें इसकी आदत हो चुकी है.

सरसों की फसल के लिए फायदेमंद परागन प्रक्रिया:जिले में 50 से ज़्यादा किसान शब्द की खेती में जुटे हुए हैं. मधुमक्खियों के सभी फार्म सरसों की फसल के बीच ही बनाए गए हैं. इसके पीछे का लॉजिक समझाते हुए विवेक ने बताया कि सर्दियों के सीजन में सरसों की फसल में पीले फूल आते हैं जो बहुतायत में होते हैं. ऐसे में मधुमक्खी इन फूलों से परागन प्रक्रिया के जरिए शहद बनाती है. उन्होंने बताया कि इससे किसान को दोगुना लाभ होता है. पहला मधुमक्खी शहद के लिए फूल से पराग इकट्ठा कर लेती है दूसरा इस प्रक्रिया के जरिए सरसों के जिस पौधे पर फल यानी सरसों की फली नहीं आ रही होती वह भी आजाती है. तो परागन की प्रक्रिया सरसों के लिए भी उतनी फ़ायदेमंद साबित होती है.

किसानों की शहद में दिलचस्पी

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खरीदी के लिए नामी कंपनियां करती हैं सम्पर्क:अब बात आती है मेहनत के फल की यानि मुनाफे की तो विवेक ने बताया कि, पूरे सीजन में प्रति बॉक्स क़रीब 20 किलो शहद मिलता है. इस तरह 300 बॉक्स वाले एक फ़ार्म पर एक सीजन में 6 टन (6000 किलो) तक शहद बनता है. इस रॉ शहद को देश की नामी कंपनियां जैसे काश्मीर हनी, केजरीवाल, पतंजलि, डाबर इन किसानों से सम्पर्क कर 60 से 70 रुपय किलो तक की क़ीमत पर ख़रीद लेती हैं और इन्हें फिल्टर कर अलग अलग वजन में पैकेजिंग कर बाजार में आम उपभोक्ता को बेचती हैं. इस तरह कंपनी और किसान दोनों को फ़ायदा होता है. विवेक ने बताया की वे 15 वर्षों से भिंड में आरहे हैं उनके फ़ार्म पर कई किसान आते हैं जो इस खेती को करना चाहते वे लोग ट्रेनिंग लेकर ख़ुद भी अपना फ़ार्म तैयार करते हैं. धीरे धीरे कंपनियाँ उनसे भी ख़ुद व ख़ुद संपर्क कर लेती हैं.

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