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बेपरवाह या लापरवाह रिम्स! डेढ़ महीने से नहीं है हीमोफिलिया मरीजों के लिए लाइफ सेविंग फैक्टर 9

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Published : Jul 10, 2022, 7:53 AM IST

इसे लापरवाही कहें या कोताही की इंतेहा कि राज्य के सबसे बड़े अस्पताल रांची के रिम्स में हीमोफिलिया मरीज के लिए लाइफ सेविंग फैक्टर 9 (Life saving factor 9) नहीं मिल रहा है. एक दो दिन नहीं पूरे डेढ़ महीने से यही हाल है. आलम ऐसा है कि अपने बच्चे की जान बचाने के लिए इलाज कराने पहुंचे (factor 9 for Hemophilia patients) मरीज के परिजनों को वापस लौटाया जा रहा है.

Life saving factor 9 not available for Hemophilia patients at RIMS in Ranchi
रांची

रांचीः झारखंड सरकार अपनी योजनाओं और व्यवस्थाओं को समाज के अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति तक पहुंचाने की बात भले ही करती रहती हो. मुख्यमंत्री, स्वास्थ्य मंत्री और राज्य के आला अधिकारियों के नाक के नीचे राज्य के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल रिम्स में पिछले डेढ़ महीने से जेनेटिक डिसऑर्डर की अनुवांशिक बीमारी हीमोफिलिया के मरीज का जीवन (Hemophilia patients in Jharkhand) बचाने के लिए हर महीने पड़ने वाली फैक्टर 9 नहीं है. टेंडर और दवा खरीद के नियम कायदे का हवाला देकर हीमोफिलिया के मरीजों जिसमें ज्यादातर मासूम बच्चे होते (factor 9 for Hemophilia patients) हैं उनके जीवन से खिलवाड़ किया जा रहा है.

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गढ़वा के मझिआंव से अपने 02 साल के बेटे नीरज विश्वकर्मा के होंठ से लगातार रक्तस्राव होने पर उसके मजदूर पिता संतोष विश्वकर्मा और मां रीमा देवी किसी तरह व्ययवस्था कर रिम्स ले आयी. लेकिन यहां उसके लाल का वह इलाज नहीं हुआ जिसका वह हकदार था. डॉक्टरों ने शरीर में खून की कमी रोकने के लिए वैकल्पिक व्यवस्था के तहत होल ब्लड चढ़ाकर किसी तरह उसका जीवन तो बचा दिया. लेकिन वह इस भय के साये में जी रही है कि शरीर मे फैक्टर 9 की कमी की वजह से कहीं फिर से रक्तस्राव ना हो जाए और फिर क्या होगा. नीरज जैसे छोटे बच्चों में चोट लगने की संभावना अधिक इसलिए है क्योंकि वह भी सामान्य बच्चों की तरह खेलना कूदना चाहता है.

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सिर्फ सरकारी अस्पताल में ही फैक्टर 9 उपलब्धः राज्य के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल रिम्स में 2014 से ही हीमोफिलिया के मरीजों के लिए फैक्टर 8 और फैक्टर 9 की व्यवस्था चल रही है. लेकिन वर्तमान समय में नया टेंडर से दवा खरीद की प्रक्रिया बता पिछले डेढ़ महीने से फैक्टर 9 रिम्स में नहीं है जबकि इस मद में भारत सरकार ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत बड़ी राशि रिम्स को दे रखी है. रिम्स निदेशक को यह अधिकार भी है कि वह मरीजों के हित को देखते हुए अपने स्तर से दवा खरीद कर सकते हैं बावजूद इसके उनकी उदासीनता कई सवाल खड़ा करता है.

नीरज अकेला नहीं, उसके जैसे 60 बच्चे हैंः नीरज, राज्य का अकेला बच्चा नहीं है जो जेनेटिक डिसऑर्डर की ऐसी जन्मजात बीमारी से ग्रसित है. जिसके इलाज के लिए उसे लगातार और जीवनभर फैक्टर 9 की दरकार है. कोडरमा में फैक्टर 9 थोड़ी मात्रा में उपलब्ध रहने पर कुछ बच्चों को वहां भेजा गया. लेकिन बड़ी संख्या ऐसे बच्चों की है जो किसी समय रक्तस्त्राव होने के भय के साये में जी रहे हैं. वजह यह कि रिम्स प्रशासन से लेकर स्वास्थ्य सचिव, स्वास्थ्य मंत्री और यहां तक कि राज्य के मुखिया इसकी गंभीरता को नहीं समझ रहे, शायद इसलिए लिए कि ये बच्चे किसी वीआईपी परिवार के नहीं हैं.

हीमोफिलिया सोसाइटी ऑफ झारखंड इस बाबत निदेशक से लेकर स्वास्थ्य मंत्री तक से कई बार गुहार लगा चुका है. हर दिन पीड़ित बच्चे के माता पिता निदेशक को पत्र लिखते हैं. पीड़ित बच्चे के माता पिता के साथ साथ हीमोफिलिया सोसाइटी ऑफ झारखंड भी लगातार निदेशक से फैक्टर उपलब्ध कराने की मांग करता है पर अमानवीय रिम्स के निदेशक को इसकी परवाह नहीं. वहीं रिम्स में स्वास्थ्य मंत्री के OSD बिनोद कुमार सिंह कहते है कि उन्हें और मंत्री को इसकी जानकारी है पर जवाब वही कि टेंडर की प्रक्रिया चल रही है जबकि हीमोफीलिया सोसायटी ऑफ झारखंड के संतोष जायसवाल कहते हैं कि एसेंशियल दवाओं की सूची में फैक्टर 8 और 9 भी शामिल है. ऐसे में कोई भी सरकारी अस्पताल टेंडर या प्रक्रिया का हवाला देकर इसकी खरीद से मुंह नहीं मोड़ सकता.

क्या है आनुवंशिक बीमारी हीमोफीलियाः सामान्य भाषा में कहें तो हीमोफीलिया जीन डिसऑर्डर के चलते होने वाली एक जन्मजात बीमारी है. जिसमें शरीर के रक्त में क्लोटिंग प्रोटीन नहीं बनता जिस वजह से ऐसे मरीजों को बाहर से उसकी कमी को दूर की जाती है. इसी कमी को दूर करने के लिए ज्यादातर मरीजों में फैक्टर 8 कुछ मरीजों में फैक्टर 9 चढ़ाया जाता है ताकि शरीर के एक्सटर्नल इंटरनल पार्ट्स से रक्त स्राव ना हो. फैक्टर 9 की कमी से सामान्य चोट लगने पर भी होने वाला रक्त का बहना नहीं रुकता वहीं अगर शरीर के आंतरिक अंगों से रक्तस्त्राव हुआ तो वह भी घातक हो जाता है.

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