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पुलिस वाला बनना चाहता था नक्सली महाराज प्रमाणिक, मां पर हुए हमले से आहत होकर उठा लिया हथियार

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Published : Jan 21, 2022, 9:23 PM IST

Updated : Jan 21, 2022, 10:10 PM IST

झारखंड सरकार की आत्मसमर्पण नीति अब धीरे-धीरे अपना असर दिखा रही है. झारखंड पुलिस की पहल और लगातार दबिश से नक्सली संगठन कमजोर हो रहे हैं. ऐसे में नक्सली हथियार डालने में ही अपनी भलाई समझ रहे हैं. इनामी नक्सली महाराज प्रमाणिक का आत्मसमर्पण इसी की बानगी है. भाकपा माओवादी जोनल कमांडर महाराज प्रमाणिक, जिसने हथियार क्यों उठाया और पुलिस बनने की चाहत रखने वाला महाराज प्रमाणिक आखिर कैसे बन गया भाकपा माओवादिओं का महाराज, ईटीवी भारत की रिपोर्ट से जानिए नक्सली महाराज प्रमाणिक की इनसाइड स्टोरी.

inside story of CPI Maoist Zonal Commander naxalite Maharaj Pramanik
inside story of CPI Maoist Zonal Commander naxalite Maharaj Pramanik

रांचीः झारखंड में नक्सलियों का आतंक हमेशा से रहा है. झारखंड पुलिस नक्सली गतिविधियों पर लगाम लगाने के लिए हरमुमकिन कोशिश कर रही है. लगातार कार्रवाई सख्ती की वजह से झारखंड में नक्सली संगठन कमजोर हो रहे हैं. लेकिन अब झारखंड सरकार की आत्मसमर्पण नीति उन नक्सलियों के लिए समाज की मुख्यधारा में लौटने का एक सुनहरा मौका के जैसा है. जिससे वो शांति के साथ अपनी बाकी की जिंदगी बसर कर सकते हैं. इनामी नक्सली महाराज प्रमाणिक का आत्मसमर्पण इसी कड़ी में एक मील का पत्थर साबित हो रहा है.

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साल 2006 से झारखंड पुलिस के लिए चुनौती बने हुए भाकपा माओवादी जोनल कमांडर महाराज प्रमाणिक ने आखिरकार पुलिस के सामने अपने हथियार डाल दिए. कभी पुलिस में बहाल होने की इच्छा रखने वाला महाराज प्रमाणिक उर्फ अशोक अपनी मां के ऊपर हुए अत्याचार का बदला लेने के लिए हथियार थाम लिया. एके-47 लेकर सरेंडर करने पहुंचे नक्सली महाराज प्रमाणिक ने आत्मसमर्पण करने के बाद जंगल में चल रहे वर्तमान हालात की जानकारी साझा की, जिसमें उसने अपने नक्सली बनने की कहानी भी बताई. महाराज प्रमाणिक ने स्वीकारोक्ति बयान में बताया है कि वह सरायकेला के चांडिल स्थित एसबी कॉलेज से गणित ऑनर्स की पढ़ाई कर रहा था, पुलिस में बहाल होने के लिए उसने एनसीसी का बी-सर्टिफिकेट भी लिया था ताकि उसे पुलिस बहाली में अतिरिक्त अंक मिल सके.

नक्सली महाराज प्रमाणिक की मां आंगनबाड़ी सेविका थीं, उसी दौरान उनके द्वारा गांव में एक चबूतरे का निर्माण किया जा रहा था. चबूतरे का निर्माण को लेकर हुए विवाद में गांव के कुछ लोगों ने महाराज की मां की हत्या की सुपारी दे दी. सुपारी लेकर हत्यारे उसकी मां की हत्या करने के लिए उसे घर भी पहुंचे. लेकिन उस दौरान उसकी मां घर पर नहीं थी ऐसे में उसकी जान बच गयी. लेकिन बाद में इसी विवाद में महाराज को जेल जाना पड़ा. जेल जाने की वजह से महाराज प्रमाणिक का पुलिस में बहाल होने का सपना चकनाचूर हो गया.

जेल से छूटने के बाद संगठन के संपर्क में आयाः जेल से बाहर आने के बाद भी महाराज की दुश्मनी खत्म नहीं हुई. इसके लिए कई दफे पंचायत भी बैठी लेकिन फैसला नहीं हो सका और कुछ लोग महाराज के दुश्मन बन बैठे. महाराज के अनुसार उस दौरान गांव में संगठन के लोग आकर जन अदालत लगाते थे और फैसले किया करते थे. अपने ऊपर हुए अन्याय को लेकर वह उस दौरान के भाकपा माओवादियों के एरिया कमांडर रामविलास लोहरा के संपर्क में आया. रामविलास लोहरा ने महाराज को संगठन में आकर अन्याय का बदला लेने को कहा उसके बाद उसकी मुलाकात उस समय के कुख्यात माओवादी डेविड और मार्शल टूटी से भी हुई. जिसके बाद वह उनके प्रभाव में आकर माओवादी दस्ते में शामिल हो गया.


इसके बाद एक साल तक कई युवकों को माओवादी संगठन से जोड़ा. नक्सली महाराज प्रमाणिक ने बताया है कि साल 2011 में कुंदन पाहन से मुलाकात के बाद उसे एरिया कमांडर बनाया गया था. 2011 में कोटेश्वर राव समेत बड़े माओवादियों को बंगाल तक पहुंचाने की जिम्मेदारी उसे मिली थी. उस जिम्मेदारी को निभाने के बाद उसे सबजोनल कमांडर बनाया गया. साथ ही अनल दा ने अपने साथ रख लिया, इस दौरान उसकी मुलाकात प्रशांत बोस से भी करायी गयी थी.

गरीब-आदिवासी पुलिसकर्मियों की हत्या पर रोता था महाराज प्रमाणिकः जब नक्सली महाराज प्रमाणिक से यह पूछा गया कि वह खुद अन्याय का बदला लेने के लिए संगठन में शामिल हुआ था, तब फिर वह कैसे गरीब और आदिवासी परिवार से आने वाले पुलिसकर्मियों की हत्या में शामिल रहा. इस सवाल के जबाब में महाराज प्रमाणिक ने कहा कि जब कभी भी पुलिसकर्मियों को मारने पड़ता तो एक हाथ से आंसू पोछते थे, दूसरे से हथियार चलाता था. महाराज प्रमाणिक ने बताया कि संगठन के द्वारा ट्रेनिंग दी जाती थी कि पूंजीवादी शासन व्यवस्था का अंत करना है. ट्रेनिंग में स्पष्ट किया गया था कि पहली गोली पहला दुश्मन ऐसे में अफसोस के बाद भी मारना पड़ता था.

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अर्बन नक्सल की भूमिका अहमः महाराज प्रमाणिक ने कहा कि दिल्ली, मुबई, मणिपुर, आंध प्रदेश, तेलंगाना समेत कई राज्यों से लोग आते थे. उन लोगों का छद्म नाम कैडरों को बताया जाता है. अर्बन नक्सली आकर बौद्धिक प्रशिक्षण कैडरों को देते हैं. महाराज प्रमाणिक ने बताया कि वह किसी अर्बन नक्सली का नाम नहीं बता सकता लेकिन मणिपुर से कई लोग आते थे, जो ट्रेनिंग देते थे. महाराज प्रमाणिक ने बताया कि साल में दो महीने सभी माओवादियों का प्रशिक्षण होता है, इसमें बौद्धिक और शारीरिक ट्रेनिंग दी जाती.

2015 से मोबाइल के इस्तेमाल पर प्रतिबंधः नक्सली महाराज प्रमाणिक ने बताया है कि संगठन में मोबाइल के इस्तेमाल पर पूरी तरह प्रतिबंध है. साल 2015 में वर्तमान माओवादी प्रमुख बसवाराज सारंडा आए थे, इसके बाद मोबाइल के इस्तेमाल पर पूरी तरह रोक लगा दी गयी थी. महाराज प्रमाणिक ने बताया कि संगठन में फिल्में देखने या किसी भी तरह के मनोरंजन पर पूरी तरह रोक है.

जाति और बाहरी भीतरी का विवादः महाराज प्रमाणिक ने बताया है कि भाकपा माओवादी संगठन में जाति और बाहरी भीतरी का विवाद है. गिरिडीह के माओवादियों को सारंडा में स्थानीय कैडरों के ऊपर बैठा दिया गया है. स्थानीय कैडरों और आदिवासियों को तरजीह नहीं मिलती. संगठन में बड़े नेताओं के सामने छोटे नेता अपनी बात भी नहीं रख पाते. जाति को लेकर भी संगठन में बंटवारा है, इसी वजह से नकुल यादव, बोयदा पाहन, कुंदन पाहन समेत कई नेता सरेंडर कर चुके हैं, आगे भी कई नेता सरेंडर करेंगे. महाराज प्रमाणिक ने बताया है कि प्रमोद मिश्रा को अब प्रशांत बोस की जगह जिम्मेदारी दी जा सकती है.

ट्राइजंक्शन पर कमजोर होंगे माओवादीः भाकपा माओवादी जोनल कमांडर महाराज प्रमाणिक के सरेंडर से रांची, चाईबासा, सरायकेला ट्राइजंक्शन पर माओवादी कमजोर होंगे. महाराज प्रमाणिक के मुताबिक टाइजंक्शन पर महाराज प्रमाणिक 30-35 माओवादियों के दस्ते के साथ कैंप कर रहा हैं. सारंडा में भी माओवादियों का जमावड़ा है लेकिन धीरे धीरे माओवादी कमजोर पड़ रहे हैं. महाराज प्रमाणिक ने कई घटनाओं में अपनी संलिप्तता कबूल की है. लेकिन उसने बताया है कि बड़े वारदातों में माओवादी नेता शामिल नहीं होते, बल्कि छोटे कैडरों को वारदात को अंजाम देने के लिए भेजा जाता है.

Last Updated :Jan 21, 2022, 10:10 PM IST

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