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कॉमन अलर्ट प्रोटोकॉल की अनदेखी कर खतरे में डाली जा रही जिंदगी, इस मानसून सीजन में लोगों को नहीं दिया कोई अलर्ट

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Published : Aug 3, 2022, 7:44 PM IST

Updated : Aug 3, 2022, 9:41 PM IST

झारखंड में वज्रपात प्राकृतिक आपदा की सूची में शामिल है. लेकिन इस आपदा को अफसर ही गंभीरता से नहीं लेते. इसलिए इससे इंसानी नुकसान कम करने के लिए बनाए गए कॉमन अलर्ट प्रोटोकॉल को ही तवज्जो नहीं देते और साल दर साल लोगों की मौत का आंकड़ा बढ़ रहा है. पढ़ें पूरी रिपोर्ट

Common alert protocol in Jharkhand  ignored no alert to people in this monsoon session 2022
आपदा प्रबंधन विभाग कॉमन अलर्ट प्रोटोकॉल को नहीं दे रहा तवज्जो

रांचीःझारखंड में वज्रपात स्थानीय प्राकृतिक आपदा की सूची में शामिल है. यह आपदा हर साल राज्य की बेशकीमती जिंदगानी लील रही है और यह आंकड़ा साल दर साल बढ़ रहा है. लेकिन आपदा प्रबंधन विभाग उदासीन है. विभागीय अफसर यदि कॉमन अलर्ट प्रोटोकॉल को तवज्जो देते तो आपदा में लोगों की जान को होने वाले नुकसान को कम से कम किया जा सकता था.

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दरअसल, बरसात में वज्रपात से मौत और लोगों को झुलसने से बचाने के लिए आपदा प्रबंधन विभाग जागरुकता लाने के लिए पोस्टर, बैनर, प्रचार वाहन का सहारा लेता है, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण उपाय मौसम विज्ञान केंद्र की ओर से क्षेत्र विशेष के लिए वज्रपात से तीन घंटे पहले दी गई चेतावनी पर ही ध्यान नहीं देता. मौसम विज्ञान केंद्र से तीन घंटे पहले मिली सूचना को यदि समय पर क्षेत्र विशेष के ग्रामीणों, किसानों, स्कूल कॉलेज के छात्र छात्राओं और शिक्षकों तक पहुंचा दिया जाय तो लोग बारिश में जान गंवाने से बच सकते हैं.

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29 जून के बाद से नहीं मिला कोई मैसेजः बता दें कि भारत सरकार मौसम विज्ञान केंद्रों को अत्याधुनिक सैटेलाइट, रडार आदि से जोड़कर आसमान की हलचल का सटीक विश्लेषण करने में सक्षम बना रही है. नतीजतन राज्य के किस जिले और किस प्रखंड में अगले 3 घंटों के अंदर वज्रपात की प्रबल संभावना बन रही है, मौसम विज्ञान केंद्र यह तक बताने में सक्षम हैं. इसके लिए कॉमन अलर्ट प्रोटोकॉल भी बनाया गया है. इसके तहत जिस इलाके में वज्रपात होने वाला है, उस इलाके के हर मोबाइल पर चेतावनी का मैसेज भेजा जाना है ताकि हादसों में कमी लाई जा सके. लेकिन आपदा विभाग का रवैया इसके प्रति उदासीन है. हाल यह है कि 29 जून को एक बार 2 करोड़ से अधिक लोगों को तात्कालिक अलर्ट मिला था, लेकिन इसके बाद कोई मैसेज किसी के मोबाइल पर नहीं आया.

किस-किस को मौसम विभाग करता है अलर्टःबता दें कि बारिश के दिनों में मौसम विज्ञान केंद्र रांची तीन घंटे पहले वज्रपात आशंकित स्थानों के लिए तात्कालिक अलर्ट जारी करता है. यह मौस विज्ञान केंद्र यह अलर्ट आपदा प्रबंधन विभाग और सभी जिलों के डीसी व संबंधित विभागों को भेज देता है. इसके बाद टेलीकॉम कंपनी के थ्रू आपदा प्रबंधन विभाग पर इसे सर्कुलेट कराने की जिम्मदारी होती है.

29 जून को ऐसे भेजा गया था अलर्ट

तो बच जाएं लोगःयदि मौसम विज्ञान केंद्र की सूचना गांवों के किसानों, पशुपालकों, बकरी पालकों, विद्यालयों के शिक्षकों आदि तक तीन घंटे पहले पहुंच जाए तो लोग सचेत हो सकते हैं और अनजाने में किसान, पशुपालक, मछुआरे अपने खेत तालाब में काम करने नहीं जाएंगे और हादसे का शिकार होने से भी बच सकते हैं.

आपदा प्रबंधन विभाग के अधिकारी गायबःईटीवी भारत की टीम, कॉमन अलर्ट प्रोटोकॉल का पालन नहीं होने की वजह जानने के लिए आपदा प्रबंधन विभाग के मुख्यालय गई तो यहां विभागीय अधिकारी ही नहीं थे. बताया गया कि वह विधानसभा गए हैं, बाकी दूसरे कर्मचारी इस मामले पर बोलने से बचते दिखे. वहीं मौसम केंद्र राँची के प्रभारी निदेशक और मौसम वैज्ञानिक अभिषेक आनन्द में कहा कि अभी नई व्यवस्था है, धीरे-धीरे व्यवस्था में सुधार होगा.

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बैठक बुलाएंगे मंत्रीःराज्य के आपदा प्रबंधन मंत्री बन्ना गुप्ता अक्सर कहते हैं कि न सिर्फ विद्यालयों में बल्कि कैसे गांव और दूर-दराज के इलाकों में रहने वाले लोगों को भी ठनका से बचाया जा सके. इसके लिए वह जल्द ही उच्चस्तरीय बैठक बुलाएंगे. बैठक होना भी जरूरी है पर उससे ज्यादा जरूरी है कि इसकी व्यवस्था सुनिश्चित की जाए कि मौसम केंद्र चेतावनी के रूप में जो सूचना रांची में जारी करता है वह राज्य के दूरस्थ इलाकों में किसानों-मजदूरों तक कैसे पहुंचे, ताकि वह समय रहते प्राकृतिक आपदा वज्रपात से बचाव और सावधानी बरत सके.

आपदा प्रबंधन विभाग कॉमन अलर्ट प्रोटोकॉल को नहीं दे रहा तवज्जो
साल-दर साल बढ़ रही वज्रपात में मरने वालों की संख्याःबता दें कि झारखंड में वज्रपात से मरने वालों की संख्या साल दर साल बढ़ रही है. आपदा प्रबंधन विभाग से मिले आकंड़े के अनुसार वर्ष 2012 में 148, वर्ष 2013 में 159, 2014 में 144, 2015 में 210, वर्ष 2016 में 265, वर्ष 2017 में 256, वर्ष 2018 में 261, वर्ष 2019 में 283, वर्ष 2020 में 322, वर्ष 2021 में 343 और वर्ष 2022 में 27 जुलाई से पहले तक 57 लोगों की जान अलग-अलग जिलों में वज्रपात की वजह से जा चुकी है. पिछले 24 घंटे में मरने वाले 9 लोगों की संख्या इसमें जोड़ दें तो वर्ष 2022 में अब तक झारखंड में वज्रपात से मरने वालों की संख्या 66 से अधिक हो चुकी है, जबकि अभी मानसून सीजन बचा है.
आपदा प्रबंधन विभाग कॉमन अलर्ट प्रोटोकॉल को नहीं दे रहा तवज्जो

झारखंड में क्यों ज्यादा होता है वज्रपातःभूगर्भ वैज्ञानिकों के अनुसार झारखंड के गर्भ में बड़ी मात्रा में खनिज भरे हैं जो आसमान से गिरने वाली बिजली को आकर्षित करते हैं. इसके साथ-साथ पठारी क्षेत्र होने की वजह से भी पूरा झारखंड आसमानी बिजली गिरने के प्रभाव वाले क्षेत्र में आता है.

Last Updated : Aug 3, 2022, 9:41 PM IST

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