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लापरवाह रिम्स प्रबंधन की शर्मनाक हरकत, एंबुलेंस में मरीजों की जगह ढोया जा रहा फर्नीचर

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Published : Feb 4, 2020, 3:20 PM IST

रिम्स में अस्पताल प्रशासन की एक शर्मनाक हरकत सामने आई है. सूबे के सबसे बड़े अस्पताल में हजारों मरीज हर दिन इलाज कराने आते हैं. यहां मरीजों की इतनी भीड़ होती है कि किसी को स्ट्रेचर नसीब होता है तो किसी को नहीं हो पाता है, लेकिन अस्पताल में कर्मचारी स्ट्रेचर पर मरीज की जगह दवाइयों के कार्टन ढो रहे हैं.

Ambulances in rims carry furniture in place of patients
लापरवाह रिम्स प्रबंधन का शर्मनाक हरकत

रांची: झारखंड के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स में कहीं स्ट्रेचर पर मरीजों की जगह दवाइयों के कार्टन ले जाए जाते हैं, तो कहीं एंबुलेंस में दफ्तरों के फर्नीचर ढोये जा रहे हैं, जो राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था पर एक बड़ा सवाल खड़ा करता है.

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एक तरफ रिम्स में आए दिन मरीजों को ट्रॉली नसीब नहीं हो पा रही है, वहीं दूसरी ओर रिम्स में दवाओं के कार्टन ट्रॉली पर ढोने का काम किया जाता है और रिम्स प्रबंधन कि ऐसे कर्मचारियों पर नजर तक नहीं रख पाता है. जिस एंबुलेंस को खरीदने के लिए सरकार करोड़ों रुपए खर्च कर रही है, उस एंबुलेंस से मालगाड़ी के तरह सामान ढोना कितना जायज है. इसका खामियाजा सरकार के साथ-साथ आम जनता को भी भुगतना पड़ रहा है.

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इस मामले को लेकर जब ईटीवी भारत के संवाददाता ने रिम्स के सबसे वरिष्ठ अधिकारी निदेशक डीके सिंह से बात की, तो उन्होंने अपने कर्मचारियों की इस हरकत पर नाराजगी जाहिर की, लेकिन कर्मचारियों पर कार्रवाई करने को लेकर बचते नजर आए

सवाल सिर्फ कुव्यवस्था का ही नहीं है. सवाल यह भी है कि राज्य में गरीब मरीजों के हक को किस तरह से मारा जा रहा है, क्योंकि सरकार बेहतर स्वास्थ्य सुविधा बहाल कराने के लिए करोड़ों रुपये खर्च कर रही है. उसके बावजूद झारखंड में गरीबों की बीमारियों का दर्द कम नहीं हो रहा है.

रिम्स कर्मचारियों की इस हास्यास्पद कार्य पर सूबे के मुख्यमंत्री ने ट्वीट कर संज्ञान लेने की बात कही है. अब देखना है कि मुख्यमंत्री के संज्ञान के बाद प्रबंधन ऐसे उदासीन और लापरवाह कर्मचारियों पर कितनी सख्त होती है.

Intro:सूबे के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स में कहीं स्ट्रेचर पर मरीजों की जगह दवाइयों के कार्टून ले जाये जाते हैं तो कही एंबुलेंस पर दफ्तरों के फर्नीचर ढोये जा रहे हैं।

रिम्स अस्पताल प्रशासन की इस हरकत को जितना भी लतारा जाये, वो कम ही होगा।Body:एक तरफ रिम्स में आए दिन मरीजों को ट्रॉली नसीब नहीं हो पा रहा है वहीं दूसरी ओर रिम्स में दवाओं का कार्टून ट्राली पर ढोने का काम किया जाता है और रिम्स प्रबंधन कि ऐसे कर्मचारियों पर नजर तक नहीं जाती।

वहीं दूसरी तस्वीर में रिम्स के कर्मचारी एंबुलेंस में फर्नीचर ढोते दिख रहे हैं, जो निश्चित रूप से राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था पर एक बड़ा सवाल खड़ा करता है।

जिस एंबुलेंस को खरीदने के लिए सरकार करोड़ों रुपए खर्च कर रही है उस एंबुलेंस से मालगाड़ी के तरह सामान ढोना कितना जायज है और इसका नुकसान सरकार के साथ-साथ आम जनता को भी भुगतना पड़ सकता है।

हालांकि हमने जब इन दोनों तस्वीरों पर रिम्स के सबसे वरिष्ठ अधिकारी निदेशक डीके सिंह से बात की तो वो अपने कर्मचारियों की इस हरकत पर नाराजगी तो जरूर जाहिर किये, लेकिन कर्मचारियों पर कार्रवाई करने को लेकर बचते नजर आए।

अब अपने इस लापरवाह और अनुशासनहीन कर्मचारियों की करनी पर भले ही रिम्स प्रबंधन कुछ कहने से बचते नजर आए लेकिन इनके इस करनी पर सूबे की स्वस्थ्य व्यवस्था पर लोग बहुत कुछ कहते नजर आ रहे हैं।

Conclusion:सवाल सिर्फ कुव्यवस्था का नहीं है सवाल है राज्य में गरीब मरीजों के हक का,क्योंकि सरकार बेहतर स्वास्थ्य सुविधा बहाल कराने के लिए करोड़ों रुपये खर्च कर रही है लेकिन उसके बावजूद भी झारखंड में गरीबों के बीमारियों का दर्द कम नहीं हो रहा है।

लाज़्मी है जिस राज्य के सबसे बड़े अस्पताल में स्ट्रेचर पर दवाइयों के कार्टून और एंबुलेंस में फर्नीचर ढोये जाएं, यह तो अपने आप में एक बड़ा प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है कि वहां की स्वास्थ व्यवस्था क्या हो सकती है।

रिम्स कर्मचारियों की इस हास्यास्पद कार्य पर सूबे के मुख्यमंत्री ने ट्वीट कर संज्ञान लेने की बात कही है अब देखना है की मुख्यमंत्री के संज्ञान के बाद प्रबंधन ऐसे उदासीन और लापरवाह कर्मचारियों पर कितना सख्त होता है।

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