झारखंड

jharkhand

Snowfall In Ramgarh: बेमौसम बारिश और बर्फबारी से किसानों को भारी नुकसान, फसल बर्बाद

By

Published : Jan 17, 2022, 10:12 AM IST

रामगढ़ का मौसम इन दिनों किसानों की परीक्षा ले रहा है. चार दिनों से रामगढ़ के विभिन्न इलाकों में बारिश हो रही है. कई जगहों पर बर्फबारी भी हुई है. इससे किसानों को भारी नुकसान हुआ है.

potato farming in ramgarh
बेमौसम बारिश और बर्फबारी से किसानों को भारी नुकसान, फसल बर्बाद

रामगढ़ःरामगढ़ में मौसम ने किसानों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है. बेमौसम बारिश और बर्फबारी से खड़ी फसल बर्बाद हो गई है. ओलावृष्टि ने आलू, सरसों, पालक, गोभी, मिर्च सहित सभी हरी सब्जी उत्पादकों को नुकसान पहुंचाया है. अब किसानों की नजर सरकार पर टिकी है कि वो ऐसे कदम उठाए कि उनके नुकसान की भरपाई हो सके. फिलहाल भारी नुकसान से किसानों की उम्मीदों को काफी झटका लगा है.

ये भी पढ़ें-फसल को पाला से बचाने के लिए खेतों में रखें नमी, कृषि विशेषज्ञ की सलाह

बता दें कि 4 दिनों से कृषि बहुल क्षेत्र गोला, दुलमी, चितरपुर, रामगढ़ ,मांडू, पतरातू में बारिश के साथ बर्फबारी हो रही है. जिसका असर फसलों पर दिखने लगा है. इस पूरे मामले में किसानों का कहना था कि लगातार हुई बारिश और कोहरे से आलू की फसल में झुलसा रोग लग गया है, जिसके कारण आलू की फसल बर्बाद हो गई है. यही नहीं बर्फबारी के कारण प्याज के बीज टमाटर सरसों मिर्चा सहित गोभी की फसल को भी काफी नुकसान हुआ है. यहां तक कि खेतों में पानी ज्यादा लगने के कारण फसल की जड़ तक प्रभावित हुई है.

आलू में दो तरह का झुलसा रोगःपछेता अंगमारीफाइटोपथोरा कवक के कारण फैलता है. यह पांच दिन में पौधों की हरी पत्तियों को नष्ट कर देता है. पहले पत्तियों की निचली सतहों पर सफेद रंग के गोले बन जाते हैं, बाद में ये भूरे और काले हो जाते हैं. आलू की पत्तियों के बीमार होने से आलू के कंदों का आकार छोटा हो जाता है और उत्पादन में कमी आ जाती है. इससे बचाव के लिए बोड्रेक्स मिश्रण या फ्लोटन का छिड़काव करना चाहिए. इसके अलावा आलू की फसल में कवकनाशी मैंकोजेब (75 फीसदी) का 0.2 फीसदी या क्लोरोथलोनील 0.2 फीसदी या मेटालेक्सिल 0.25 फिसदी या प्रपोनेब 70 फीसदी या डाइथेन जेड 78, डाइथेन एम् 45 0.2 फीसदी या बलिटोक्स 0.25 फीसदी क्या डिफोलटान और केप्टन 0.2 फीसदी के 4 से 5 छिड़काव प्रति हेक्टेयर की दर से करने चाहिए.

बेमौसम बारिश और बर्फबारी से किसानों को भारी नुकसान, फसल बर्बाद

वहीं अगेती अंगमारी आल्टनेरिय सोलेनाई कवक के कारण होता है. यह पछेता अंगमारी से पहले यानी फसल बोने के 3-4 हफ्ते बाद लगता है. इसमें पौधों की निचली पत्तियों पर छोटे-छोटे, दूर दूर बिखरे हुए कोणीय आकार के चकत्ते या धब्बे बनने लगते हैं, जो बाद में कवक की गहरी हरीनली वृद्धि से ढंक जाते हैं. धब्बे तेजी से बढ़ते हैं, शुरू में बिन्दु के आकार के धब्बे शीघ्र ही तिकोने, गोल या अंडाकार हो जाते हैं. इनका रंग भी बदल जाता है और ये भूरे व काले रंग के हो जाते हैं. सूखे मौसम में धब्बे कड़े हो जाते हैं और नम मौसम में फैल कर आपस में मिल जाते हैं, जिस से बड़े क्षेत्र बन जाते हैं. रोग का जबरदस्त प्रकोप होने पर पत्तियां जमीन पर गिरने लगती हैं. पौधों के तनों पर भूरे काले निशान भी बन जाते हैं. रोग के कारण आलू के कंद छोटे रह जाते हैं.

अगेती अंगमारी या झुलसा रोग से बचाव के लिए आलू की खुदाई के बाद खेत में छूटे रोगी पौधों के कचरे को इकट्ठा कर के जला देना चाहिए. फसल में बीमारी का प्रकोप दिखाई देने पर यूरिया 1 फीसदी व मैंकोजेब (75 फीसदी) 0.2 फीसदी का छिड़काव प्रति हेक्टेयर की दर से करना चाहिए.

ABOUT THE AUTHOR

...view details