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Palash Flower in Jharkhand: प्राकृतिक सुंदरता का प्रतीक पलाश का फूल, जानिए आदिवासी संस्कृति में इसका क्या है महत्व

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Published : Mar 6, 2023, 12:10 PM IST

झारखंड का राजकीय फूल पलाश, यहां की आदि संस्कृति में रची बसी है. आदिवासी संस्कृति में पलाश फूल का महत्व काफी है. इसके अलावा धार्मिक अनुष्ठान में पलाश के पौधे और फूल का इस्तेमाल किया जाता है. बसंत के आगमन के साथ ही झारखंड के जंगली इलाकों में पलाश के फूल फूटने लगते हैं. होली में पलाश के फूल से रंगों का निर्माण कर उससे ये उत्सव मनाया जा है. ईटीवी भारत की इस रिपोर्ट से जानिए, क्या है पलाश फूल का महत्व.

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जामताड़ा: वसंत ऋतु आने के साथ ही प्रकृति अंगड़ाई लेती है और पेड़ों, फूल पत्तियों में रौनक छाने लगती है. पेड़-पौधों में नई-नई कोपलें फूटने लगती है. फूलों के चटक रंगों के साथ प्रकृति एक नई आभा में खुद को समाहित कर लेती है. इसी में सबसे खास है प्राकृतिक सुंदरता का प्रतीक पलाश का फूल, जिसने झारखंड की आदि संस्कृति को बांधे रखा है.

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जामताड़ा समेत पूरे संथाल परगना में पलाश के फूलों से वातावरण खिल रहा है. पलाश के फूल अपनी महक और सुंदरता से प्राकृतिक सुंदरता में चार चांद लगा रहे हैं. यहां स्थित जंगलों में चारों तरफ पलाश के फूल काफी आकर्षक बने हुए हैं. पलाश के फूल अपनी खुशबू और चटक लाल रंग से प्रकृति की सुंदरता को और निखार रहे हैं. वसंत ऋतु के आगमन के साथ ही पलाश के पौधे पर फूल उग आते हैं. पलाश के फूलों से होली का रंग बनाने की भी परंपरा है. आदि संस्कृति में इन्हों का इस्तेमाल कर होली खेली जाती है.

झारखंड की आदिवासी संस्कृति में पलाश का फूल महत्वः पलाश का फूल झारखंड का राजकीय फूल भी है. पलाश के फूल और पौधे आदिवासी और झारखंड की संस्कृति से जुड़ा हुआ है और इसकी अलग पहचान है. आदिवासी परंपरा रीति रिवाज और धार्मिक दृष्टिकोण से पलाश के फूल और पौधे का काफी महत्व है. आदिवासी समाज में इसके फूल पत्ते पारंपरिक रीति रिवाज धार्मिक अनुष्ठान में उपयोग किया जाता है. आदिवासी साहित्यकार सुनील बास्की बताते हैं कि पलाश के फूल और पौधे आदिवासी और धार्मिक संस्कृति से जुड़ा हुआ है और पर्यावरण के लिए भी काफी महत्वपूर्ण है.

ग्रामीण इलाकों के लिए रोजगार का साधनः जामताड़ा वन विभाग के अधिकारी पलाश के पौधे और फूल को झारखंड के लिये काफी महत्वपुर्ण और गुणकारी पौधा बताया है. वन विभाग के पदाधिकारी बताते हैं इसके पेड़ और पौधे में लाह की खेती होती है. जिससे ग्रामीण इलाकों के लिये रोजगार का साधन भी है. इसके अलावा इन पत्तों का इस्तेमाल पत्तल बनाने और कई इलाकों में बीड़ी पत्ते के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है. जिसकी वजह से पलाश के पेड़ ग्रामीणों को रोगजार भी प्रदान करता है. बहरहाल पलाश के फूल न सिर्फ एक राजकीय फूल है बल्कि यह झारखंड की आदिवासी संस्कृति से जुड़ा हुआ है जो धार्मिक और पर्यावरण की दृष्टिकोण से काफी महत्वपूर्ण है.

भारतीय संस्कृति में पलाश का महत्वः एक निर्जन भूखंड को चमक से जोड़ते हुए, पलाश के फूल सतपुड़ा के समृद्ध काल को चिह्नित करते हैं. यह फूलों की भाषा के सबसे शक्तिशाली रूपों में से एक है, जिसकी व्याख्या पलाश पुष्पक्रम के माध्यम से की जाती है, जो होली का प्रतीक होने के नाते, रंगों का त्योहार, खुशी और उत्सव से जुड़ा हुआ है. पलाश जिसे पलास, छूल, परसा, ढाक, टेसू, किंशुक, केसू भी कहा जाता है. इस वृक्ष के फूल काफी आकर्षक होते हैं. इसके आकर्षक रंगों में समाहित फूलों के लाल रंग की वजह से इसे जंगल की आग भी कहलाता है. ऐसा कहा जाता है कि वृक्ष, अग्नि और युद्ध के देवता अग्नि का यह एक रूप है. दक्षिण के राज्य तेलंगाना में शिवरात्रि के अवसर पर भगवान शिव की पूजा में इन फूलों का विशेष रूप से उपयोग किया जाता है. पलाश वृक्ष की लकड़ी की कोई खास महत्व नहीं होता लेकिन आदिवासी कन्याओं के जूड़े में सजने वाला पलाश फूल की गरिमा खास है.

फाल्गुन मास में आदिवासियों का बाहा पर्वः बसंत के आते ही पलाश के पेड़ों पर चटक नारंगी रंग के फूल खिलने लगे हैं. आदिवासी समाज फाल्गुन में ही होली खेलते हैं, जिसे बाहा पर्व कहा जाता है. इसकी खासियत है कि होली में बाजार के रंगों का इस्तेमाल नहीं किया जाता है. जनजातीय समुदाय के लोग बाहा में सादा पानी ही एक-दूसरे पर डाल कर होली मनाते हैं. इस पानी में रातभर पलाश के फूलों को डूबाकर रखा जाता है और पानी के इन्हीं रंगों से होली खेली जाती है. आदिवासी समाज की महिलाएं पलाश फूलों से श्रृंगार करती हैं. बसंत की शुरुआत में पलाश फूल खिलने के बाद जब तक उससे जाहेर थान में पूजा नहीं हो जाए तब तक महिलाओं को इस फूल को जूड़े में लगाने की मनाही होती है.

औषधीय गुणों वाला पलाशः पलाश के फूल औषधीय गुणों से भरे हुए हैं, इसके अलावा इसकी पत्ती, छाल और बीज का इस्तेमाल भी विभिन्न दवाइयों के रूप में किया जाता है. औषधीय गुणों के कारण इससे त्रिदोष में वात और कफ के लिए दवाई बनाई जाती है. इसके अलावा पलाश में और भी कई तरह के गुण होते हैं. आयुर्वेद में पलाश के बीज का काफी महत्व है, इसके बीज को पीसकर पेट के कीड़ों को नष्ट किया जाता है. पलाश के फूल एंटी इंफ्लेमेटरी गुणों से भरा है, इसका उपयोग शरीर में सूजन और मोच में भी किया जाता है. पलाश के फूलों का पेस्ट बनाकर लगाने से तेजी से रिकवर भी होता है. इसके अलावा पलाश के फूल शरीर की हाई ब्लड प्रेशर और शुगर को कंट्रोल करने में मदद करता है.

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