रांची/गुमलाः झारखंड पर प्रकृति ने दिल खोलकर कृपा बरसायी है. जल, जंगल, पहाड़ और खनिज संपदाओं की बदौलत इस राज्य को एक अलग पहचान मिली है. लेकिन एक तरफ यह राज्य के लिए आशीर्वाद हैं तो दूसरी तरफ अभिशाप. क्योंकि माइनिंग की वजह से यहां के लोगों को विस्थापन का दंश भी झेलना पड़ता है. इसके लिए आए दिन आंदोलन होते हैं. मुआवजे की मांग उठती रहती है. लेकिन ऐसा नहीं है कि माइनिंग की वजह से पर्यावरण और स्थानीय रैयतों को सिर्फ नुकसान ही झेलना पड़ता है. ऐसा दावा करने की पीछे की वजह है ईटीवी भारत की ग्राउंड रिपोर्ट.
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रांची से करीब 190 किमी दूर लातेहार जिला के नेतरहाट के पास गुमला जिला में मौजूद है बिड़ला ग्रुप के हिंडाल्को का गुरदरी और आमतीपानी बॉक्साइट माइंस. नेतरहाट की घाटी पार करने बाद जंगलों के बीच बने शानदार रास्ते से होकर जब ईटीवी भारत की टीम आमतीपानी माइंस क्षेत्र में पहुंची तो वहां की व्यवस्था देखकर भौंचक रह गई. दरअसल, इस इलाके में असुर जनजाति के लोग रहते हैं, जिनको विलुप्तप्राय जनजाति की श्रेणी में रखा गया है. कुछ वर्ष पहले तक इनका जीवन वनोत्पाद, धान और गोंदली की खेती पर निर्भर था. लेकिन अब तस्वीर बदल गई है. बॉक्साइट माइंस शुरू होने के बाद ना सिर्फ इनको घर में ही रोजगार मिल रहा है बल्कि कंपनी वाले खनन हो चुके जमीन को खेती योग्य तैयार कर वापस लौटा रहे हैं. आज की तारीख में असुर जनजाति के करीब 60 परिवार 50 हेक्टेयर खनन बाद तैयार खेत पर आलू की खेती कर रहे हैं. बंपर पैदावार हो रहा है. एक एकड़ में आलू की खेती से हर साल 60 से 70 हजार का मुनाफा कमा रहे हैं.
आमतीपानी के 190.95 हेक्टेयर में बॉक्साइट का खनन हो रहा है. इसकी शुरूआत साल 2006 में हुई थी. इस क्षेत्र के 93 हेक्टेयर में बॉक्साइट की माइनिंग पूरी हो चुकी है. इसकी तुलना में 83 हेक्टेयर खनन हो चुकी जमीन को मछली पालन और खेती योग्य जमीन में कंवर्ट कर दिया गया है. पर्यावरण संरक्षण के लिए माइनिंग क्षेत्र में मियावाकी विधि से चरणबद्ध पौधारोपण कराया जा रहा है. इस विधि से पहले दो पौधा के बीच 2 मीटर का फासला रखा जाता था. लेकिन मियावाकी विधि से एक स्कवॉयर मीटर में तीन पौधे लगाए जा रहे हैं. पर्यावरण और रैयतो के प्रति गाइडलाइन के पालन की वजह से इंडियन ब्यूरो ऑफ माइंस ने हिंडाल्को को वर्ष 2023 के लिए फाइव स्टार रेटिंग अवार्ड दिया है.
बदलाव की कहानी असुर जनजाति के लोगों की जुबानीः रमेश असुर ने कहा कि आलू लगा रहे हैं. तैयार जमीन पर आलू की खेती से अच्छा फायदा हो रहा है. समीर असुर ने बताया कि आलू लगाने के लिए खेत तैयार कर रहे हैं. कंपनी वालों ने खेत तैयार करके लौटाया है. पहले यहां गोड़ा धान, मड़ुआ और गोंदली लगाते थे. किरण असुर ने कहा कि गोरापहाड़ में रहते हैं. आलू लगाने से फायदा हो रहा है. बच्चों को पढ़ा रहे हैं.