झारखंड

jharkhand

52वां शक्तिपीठ है गोड्डा का मां योगिनी मंदिर, एक हजार साल पुराना है इतिहास

By

Published : Oct 2, 2022, 7:12 PM IST

Updated : Oct 2, 2022, 8:31 PM IST

गोड्डा का मां योगिनी मंदिर 52वां शक्तिपीठ (Maa Yogini Temple 52 Shaktipeeth) के रूप में जाना जाता है. इस मंदिर का इतिहास 1 हजार साल पुराना है. महाभारत में भी इस मंदिर का वर्णन है. बहुत कम लोग ही इस मंदिर की खासियत जानते हैं. आज के इस स्पेशल रिपोर्ट में हम आपको योगिनी मंदिर से जुड़ी सारी बाते बताएंगे.

Maa Yogini Temple 52 Shaktipeeth
Maa Yogini Temple 52 Shaktipeeth

गोड्डा: नवरात्रि के अवसर पर 52वां शक्तिपीठ मां योगिनी मंदिर (Maa Yogini Temple 52 Shaktipeeth) में आस्था का सैलाब उमड़ता है. गोड्डा जिला मुख्यालय से 15 किमी दूर एनएच 133 गोड्डा पीरपैंती मार्ग पर मां योगिनी का मंदिर है (52 Shaktipeeth in Godda Jharkhand). माता का गर्भ गृह गुफा मंदिर धरातल से 1000 मीटर ऊंचाई पर है. मां योगिनी के बारे में मान्यता है कि यह 52वां शक्तिपीठ है, जिसे गुप्त शक्तिपीठ कहा जाता है. आमतौर पर पुराणों के अनुसार 51 शक्तिपीठ माने जाते हैं लेकिन, अन्य ग्रंथों में 52 शक्तिपीठ का भी वर्णन है.

इसे भी पढ़ें:Shardiya Navratri 2022 Day 7: नवरात्र के सातवें दिन होती है माता कालरात्रि की पूजा, जानिए कैसे करें पूजा

योगिनी मंदिर का इतिहास:योगिनी मंदिर का इतिहास 1 हजार साल पुराना है. कहा जाता है कि इस मंदिर में पूजा की शुरुआत नट राजाओं ने की थी. हालांकि, यह भी कहा जाता है कि नट राजा विधि विधान में विघ्न भी उत्पन्न करते थे. उसी से क्रोधित होकर ब्रह्म राजाओं ने उन्हें खदेड़ कर भगा दिया. जिसके बाद योगिनी स्थान में ब्रह्म राजाओं द्वारा पूजा पाठ कराया जाने लगा. बाद में जमींदारी प्रथा शुरू हुई तो ये कार्य खेतोरी जमींदार के हिस्से गया. आज भी प्रधान पुजारी इसी खेतोरी जमींदार परिवार के प्रोफेसर आशुतोष सिंह हैं. साथ ही इनके परिवार के लोग ही मंदिर की देख रेख करते है. वहीं ब्रह्म राजाओं के वंशज भी इसी क्षेत्र में निवास करते हैं. धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, यह द्वापरयुग का मंदिर है. इस मंदिर की चर्चा महाभारत में भी है. कहा जाता है कि अज्ञातवास के दौरान पांडव यहां भी रुके थे.

देखे स्पेशल रिपोर्ट

क्यों कहा जाता है शक्तिपीठ: धार्मिक साहित्य के आधार पर सतयुग में जब दक्ष प्रजापति ने वृहस्पति नाम का यज्ञ प्रारम्भ किया था. तब प्रजापति ने शिव को छोड़कर सभी देवी देवताओं को निमंत्रण दिया. पिता के घर यज्ञ सुनकर माता सती ने जाने की इच्छा जाहिर की. भगवान शंकर इसके लिए राजी नहीं हुए लेकिन, हट करके माता सती पिता के घर चली गई. जब माता सती वहां पहुंची तो पिता के मुख से पति का अनादर सुन यज्ञ कुंड में कूद गयी. उसके बाद हाहाकार मच गया. क्रोधित शिव वीरभद्र का रूप लेकर वहां पहुंचे और उन्होंने राजा दक्ष का सिर काट दिया. उसके बाद क्रोधित भगवान शिव माता सती के शव लेकर तांडव करने लगे थे. उस समय संसार को विध्वंस होने से रोकने के लिए भगवान विष्णु ने अपने चक्र से सती के शव के अनेक टुकड़े कर दिए. इस दौरान जहां जहां माता सती के अंग गिरे वह शक्तपीठ बन गया. कहा जाता है माता सती की बायीं जांघ यहां गिरी थी. यही कारण है कि मां योगिनी मंदिर को 52वां शक्तिपीठ माना जाता है.

क्या कहते हैं मंदिर के प्रधान पुजारी: मां योगिनी मंदिर के प्रधान पुजारी के रूप में खेतोरी जमींदार घराने से जुड़े प्रोफेसर आशुतोष सिंह बताते हैं कि यह मंदिर काफी जीर्ण-शीर्ण था. इसी दौरान उन्हें मां का स्वप्न आया और एक शक्ति प्रदान की तब से वे मंदिर को संवारने में जुट गए. उन्होंने बताया कि मान्यताओं के अनुसार 51 शक्तिपीठ है और योगिनी स्थान 52वां पीठ है जो गुप्त था. प्रधान पुजारी प्रोफेसर आशुतोष बाबा ने बताया कि योगिनी स्थान के स्थल के बारे में कहानी है कि यहां कभी नर बलि की परंपरा थी. जिसे अंग्रेजों ने बंद करवाया था और इसके लिए एक राजा को फांसी की सजा भी दी गयी थी.

मंदिर की विशेषता: इस मंदिर की एक विशेषता यह भी है कि इसका निर्माण शैली आसाम के कमरू कामाख्या मंदिर से मिलती जुलती है और यहां भी कमरू कामाख्या मंदिर की तरह तंत्र मंत्र के माध्यम से रोग व्याधि का इलाज किया जाता है. इस मंदिर में सालों भर मंगलवार और शनिवार को धाम लगता है. जहां लोगों को रोग व्याधि से मुक्ति मिलती है. हालांकि, नवरात्र भर झाड़-फूंक बंद रहता है. यहां बिहार, बंगाल, ओडिशा, झारखंड समेत कई राज्यों से लोग आते हैं. दिनों दिन इस मंदिर की ख्याति बढ़ती जा रही है.

Last Updated : Oct 2, 2022, 8:31 PM IST

ABOUT THE AUTHOR

...view details