रांची/देवघर: ऐसा लगता है जैसे कल की ही बात हो, तारीख थी 10 अप्रैल, रामवनमी का दिन था. देवघर में बाबा भोलेनाथ की पूजा के बाद बड़ी संख्या में लोग त्रिकुट पर्वत पर रोपवे का लुत्फ उठाने पहुंचे थे. शाम होते ही खबर आई की देवघर के त्रिकुट पर्वत की तलहटी से चोटी तक पर्यटकों को पहुंचाने और लाने वाली रेपवे ट्रॉलियां आपस में टकरा गई हैं (Deoghar Trikut Ropeway accident). हादसे में पांच लोग जख्मी हुए हैं, जिनमें एक बुजुर्ग महिला की हालत गंभीर बनी हुई है. उनका डेढ़ साल का पोता आनंद भी बुरी तरह जख्मी हुआ है, लेकिन दुर्भाग्यवश ऐसे गंभीर मामले में भी किसी नतीजे तक पहुंचने में देवघर जिला प्रशासन की तत्परता नहीं दिखी. शुक्र है उन गाइड्स और स्थानीय दुकानदारों का, जिन्होंने अपनी जान जोखिम में डालकर तलहटी के पास झूल रही कई ट्रॉलियों से पर्यटकों को रेस्क्यू किया. घायलों को अस्पताल पहुंचाया.
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स्थानीयों ने ड्रोन की मदद से पहुंचाई पानी और बिस्किट: प्रशासन के लोग जबतक पहुंचते तबतक रात हो चुकी थी. उस दौरान स्थानीय लोग ड्रोन की मदद से कुछ ट्रॉलियों में फंसे पर्यटकों तक पानी की बोतल और बिस्किट पहुंचाने में सफल रहे. रात के वक्त जैसे ही यह बात सामने आई कि अलग-अलग ट्रॉलियों में दर्जनों लोग फंसे हुए हैं, तब जिला प्रशासन की नींद खुली. केंद्र से मदद मांगी गई. अगली सुबह यानी 11 अप्रैल को इंफैंट्री ने जमीनी स्तर पर और वायु सेना के हेलिकॉप्टर से रेस्क्यू शुरू कर दिया.
को-ऑर्डिनेशन का था घोर अभाव:11 अप्रैल को वायु सेना के रेस्क्यू ऑपरेशन से पहले ईटीवी भारत के दुमका संवाददाता मनोज कुमार केसरी मौका-ए-वारदात पर पहुंच चुके थे. ईटीवी भारत की एक टीम रांची से भी रवाना हो चुकी थी. देवघर पहुंचने से पहले खबर आई कि तेजी से पर्यटकों को ट्रॉली से निकाला जा रहा है. एक बार लगा कि त्रिकुट पहुंचते-पहुंचते ऑपरेशन पूरा हो जाएगा. इसी बीच सहयोगी मनोज ने खबर दी कि एयरलिफ्ट के दौरान एक शख्स की गिरने से मौत हो गई है. मौत का यह वीडियो वायरल हो चुका था. ईटीवी भारत की टीम ने अपनी गाड़ी की रफ्तार और तेज कर दी, लेकिन घटनास्थल पर पहुंचते तब तक अंधेरा हो चुका था. ऑपरेशन बंद कर दिया गया था. हमारी टीम सबसे पहले यह जानना चाहती थी कि कितने लोगों का रेस्क्यू हुआ है और कितने फंसे हुए हैं. घटनास्थल पर देवघर डीसी मंजूनाथ भजंत्री से यही सवाल पूछा गया. उनका जवाब था कि मुझे नहीं मालूम. वायु सेना वाले बताएंगे. इस जवाब ने हमे झकझोर दिया. बहुत निराशा हुई. तब हमने तल्ख लहजे में डीसी से कहा कि तब आप यहां क्या करने आए हैं. जनता के सवालों का जवाब कौन देगा. आपने दिनभर यहां क्या किया. इस सवाल का असर हुआ, उन्होंने अपडेट लिया और करीब आधे घंटे बाद बताया कि 11 अप्रैल की सुबह जम्मू एंड कश्मीर लाइट इन्फैंट्री की टीम ने एनडीआरएफ की टीम के साथ मिलकर 11 लोगों की जान बचाई. सभी को हार्नेस की मदद से घाटी के बीच उतारा गया. इनमें एक ही परिवार के 5 बच्चे समेत सात लोग भी शामिल थे. ऊंचाई पर मौजूद ट्रॉलियों में फंसे लोगों को निकालने के लिए एयर फोर्स की टीम ने MI-17 चॉपर की मदद से ऑपरेशन शुरू किया. 11 अप्रैल को कठिन भौगोलिक हालात के बावजूद एयरफोर्स की टीम ने 21 लोगों की जान बचाई, लेकिन शाम होने से ठीक पहले एक शख्स को लिफ्ट करने के दौरान हादसा हो गया और शख्स खाई में जा गिरा, जिससे उसकी मौत हो गई.
राजनीति का अखाड़ा बन गया त्रिकुट: 11 अप्रैल को रात करीब 10 बजे हमारी टीम देवघर लौटी. अगले सुबह साढ़े छह बजे टीम त्रिकुट पहुंच चुकी थी. उसी वक्त सेना का एयरलिफ्ट ऑपरेशन भी शुरू हुआ था. ऑपरेशन के नजदीक से कैमरे में कैद करने के लिए टीम चट्टानों से होते हुए पहाड़ी पर काफी ऊपर तक चली गयी. थोड़ी देर बाद वहां गोड्डा सांसद निशिकांत दुबे नजर आए. वह मीडिया से बात कर रहे थे. पेड़ की छांव में एक गमछा बिछाकर सिस्टम को कोस रहे थे. दूसरी तरफ पहाड़ की तलहटी में पेड़ की छांव में डीसी मंजूनाथ भजंत्री और एडीजी आरके मलिक आराम फरमा रहे थे. वहां पर्यटन निदेशक राहुल सिन्हा (वर्तमान में रांची डीसी) फोन पर अपडेट ले रहे थे. वही एकमात्र शख्स थे जो मीडिया से जानकारी साझा कर रहे थे.
हीरो बनकर उभरे पन्नालाल: 12 अप्रैल को एयरफोर्स के रेस्क्यू के दौरान हमने उस पन्नालाल नाम के शख्स को ढूंढा जिन्होंने हादसे की शाम कई लोगों की जान बचाई थी. उन्होंने पूरी घटना की जानकारी दी. हमने उन ग्रामीणों से बात की जिन्होंने अपने पैसे खर्च कर ड्रोन से ट्रॉली तक पानी की बोतले पहुंचाई थी. सभी ने कहा कि उन्हें जिला प्रशासन से कोई मदद नहीं मिली. बाद में सीएम की ओर से उन्हें नकद पुरस्कार दिया गया.
एक बेटी ने सिस्टम और नेता जी को सुनाई खरी खोटी: 12 अप्रैल को एयरलिफ्ट के दौरान तेज हवा चल रही थी. ऑपरेशन में दिक्कत आ रही थी. कई बार गरूड़ कमांडो को ट्रॉलियों में प्रवेश के दौरान रोप से टकराते देखा. फिर भी सब ठीक-ठाक चल रहा था. इसी बीच एक महिला की सेफ्टी वायर रोपवे से उलझ गयी. पायलट ने जर्क देकर उसे सुलझाने की कोशिश की. इसी बीच सेफ्टी वायर टूट गयी और महिला पत्थरों के बीच खाई में जा गिरी. उस दौरान 10 अप्रैल की शाम से अपनी मां की आस में बैठी उनकी बेटी को पता नहीं चला कि अब वह नहीं रही. उन्हें समझाया गया कि उनकी मां को इलाज के लिए अस्पताल ले जाया गया है. जाते वक्त मां की मौत से अनजान बेटी ने सिस्टम और स्थानीय नेता जी को जमकर खरी खोटी सुनाई.
एक परिवार ने बोतल में भर रखी थी पेशाब: इस हादसे में दो महिला और एक पुरुष को जान गंवानी पड़ी, लेकिन वायु सेना और इन्फैंट्री ने 45 लोगों की जान भी बचाई. मौत के मुंह से बाहर निकले कई लोग ऐसे थे, जिन्हें अस्पताल में लाकर ग्लूकोज चढ़ाना पड़ा. इन्हीं में पश्चिम बंगाल के मालदा का एक परिवार था. उस विनय कुमार दास नामक बुजुर्ग ने कहा कि हमने तो पानी के खाली बोतल में पेशाब जमा कर लिया था. ताकि पानी न मिलने पर उसे पीकर जिंदा रहा जा सके. उन्हें उम्मीद ही नहीं थी कि ऐसे कठिन हालात से उन्हें बचा लिया जाएगा. यह बोलते-बोलते वे रो पड़े.
कैसे हुआ हादसा:इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं था. रोपवे स्टेशन पर जब हमने मुआयना किया तो देखा कि एक बड़ी पुल्ली, जो रोप को घूमाती है, उसके खांचे से रोप बाहर निकला हुआ था. पहाड़ी की तलहटी और चोटी के बीच अलग-अलग टावर के सहारे मूव करने वाला रोप एक जगह झूल रहा था. दुखद बात यह रही कि हादसे के दिन 10 अप्रैल को सारठ की बुजुर्ग सुमंती देवी की मौत हो गई जबकि 11 अप्रैल को एयरलिफ्ट के दौरान हादसे में दुमका निवासी राकेश मंडल और 12 अप्रैल को देवघर निवासी शोभा देवी की जान चली गई.
जांच रिपोर्ट का अता-पता नहीं: सरकार ने 16 अप्रैल को जांच कराने की घोषणा की. 19 अप्रैल को अधिसूचना जारी कर जांच कमेटी को दो महीने में रिपोर्ट देने का समय दिया था, लेकिन कमेटी खुद 70 दिन बाद घटनास्थल पर पहुंची. लेकिन आज तक जांच रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं हुई. जांच कमेटी में अजय कुमार सिंह, प्रधान सचिव, वित्त, अमिताभ कौशल, पर्यटन सचिव, राहुल कुमार सिन्हा, पर्यटन निदेशक, रत्नाकर शुंकी, डायरेक्टर ऑफ माइंस सेफ्टी और एनसी श्रीवास्तव, एडवाइजर रोपवे नेशनल हाईवे लॉजिस्टिक मैनेजमेंट लिमिटेड शामिल हैं.
कैसे स्थापित हुआ था रोपवे सिस्टम:त्रिकूट पर्वत पर रोपवे सिस्टम की स्थापना साल 2009 में हुई थी. यह झारखंड का इकलौता और सबसे अनोखा रोपवे सिस्टम है. जमीन से पहाड़ी पर जाने के लिए 760 मीटर का सफर रोपवे के जरिए महज 5 से 10 मिनट में पूरा किया जाता है. कुल 24 ट्रॉलिया हैं. एक ट्रॉली में ज्यादा से ज्यादा 4 लोग बैठ सकते हैं. एक सीट के लिए 150 रुपए देने पड़ते हैं और एक केबिन बुक करने पर 500 रुपए लगता है. इसकी देखरेख दामोदर रोपवेज एंड इंफ्रा लिमिटेड, कोलकाता की कंपनी करती है. यही कंपनी फिलहाल वैष्णो देवी, हीराकुंड और चित्रकूट में रोपवे का संचालन कर रही है. कंपनी के जनरल मैनेजर कमर्शियल महेश मोहता ने बताया था कि कंपनी भी अपने स्तर से पूरे मामले की जांच कर रही है, लेकिन कंपनी ने भी अब तक कोई रिपोर्ट साझा नहीं की. हादसे के बाद कंपनी ने पीड़ित परिवारों को 25-25 लाख और राज्य सरकार ने 5-5 लाख की मुआवजा राशि दी थी. फिलहाल हादसे के बाद से ही रोपवे बंद पड़ा है. जांच, फाइलों में है. उस पर्यटन स्थल से सहारे गुजर-बसर करने वाले दर्जनों गाइड दुकानदार भुखमरी की कगार पर हैं.