रांचीः राजधानी के डंगराटोली पुल के समीप दो दिव्यांग युवा जो बोल और सुन नहीं सकते हैं, इन दिनों चर्चा के विषय बने हुए हैं. इन दोनों ने स्वरोजगार की शुरुआत की और अब वो सफल भी हो रहे हैं. दोनों बचपन के दोस्त हैं. स्कूल-कॉलेज की पढ़ाई भी साथ की है और आज रोजगार भी एक साथ मिलकर कर रहे हैं.
अगल हौसले बुलंद हो तमाम चीजें छोटी पड़ जाती है. कुछ ऐसे ही हौसले से लबरेज हैं रांची के संदीप और नितेश. ये समाज को सीख भी दे रहे हैं. ये दोनों खुद अपने हाथों अपनी तकदीर लिख रहे हैं. संदीप और नितेश बोल, सुन नहीं सकते हैं. लेकिन इस कमी को इन्होंने अपने हुनर से छोटा कर दिया. संदीप ग्रेजुएट हैं और नितेश ने ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी नहीं की है. भले ही ये बोल सुन नहीं सकते लेकिन इशारों ही इशारों में संदीप बताते हैं कि नितेश उसका बेस्ट फ्रेंड है. मोबाइल में लिख कर इन्हें हमने कुछ सवाल दिया और उसके बदले में उन्होंने भी मोबाइल में लिखकर ही उसका जवाब दिया. पता चला कि प्ले स्कूल से वे दोनों साथ-साथ पढ़ाई करते आ रहे हैं.
आर्थिक परेशानियों को देखते हुए दोनों ने सड़क पर ठेला लगाने का फैसला लिया और इनका यह फैसला आज सही साबित हुआ. आज दोनों आर्थिक रूप से सशक्त हो रहे हैं. परिवार की परेशानियों को भी दूर कर रहे हैं. रांची के डंगराटोली पुल के ठीक सामने हर रोज शाम 5 बजे से लेकर रात के 9 बजे तक ठेला लगाने पहुंचते हैं. यहां और भी कई ठेले खोमचे लगते हैं. लेकिन इनका ठेला दूसरों से काफी अलग है. सबसे बड़ी बात ग्राहकों को यह लोग इशारों से समझाते हैं और जो ग्राहक नहीं समझ पाते हैं, उनके लिए बकायदा ठेले पर ही पोस्टर पम्प्पलेट के जरिए कई स्लोगन लिखकर उन्हें रेट और विभिन्न जानकारियां उपलब्ध कराई जा रही है. नगद के अलावे ठेले में ऑनलाइन पेमेंट भी ली जाती है. साफ सफाई का पूरा ख्याल रखा जाता है. बेहतर तरीके से ठेले का संचालन भी होता है. सामान्य ठेलों से इनका ठेला हर तरह से अलग सा लगता है.