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हाल-ए-अस्पतालः डेड उपकरणों के सहारे बुझाएंगे आग, मरीजों की सुरक्षा का नहीं रखते ध्यान

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Published : Apr 18, 2022, 1:36 PM IST

झारखंड के दो सबसे बड़े अस्पताल रिम्स और रांची सदर अस्पताल आग से निपटने के लिए तैयार नहीं है. रिम्स में फायर फाइटिंग के लिए जरूरी सेंट्रलाइज फायर फाइटिंग सिस्टम का काम पूरा नहीं हुआ है तो रांची सदर अस्पताल में फायर फाइटिंग सिस्टम के एडवाइजरी और एनओसी के लिए अप्लाई तक नही किया गया है. ऐसे में किसी बड़े हादसे के समय मरीजों की जान कैसे बचेगी पर इस पर सवाल उठाए जा रहे हैं.

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रिम्स में खराब फायर फाइटिंग सिस्टम

रांची: हादसा किसी मुहूर्त और खास समय का इंतजार नहीं करती है. वो कभी भी और कहीं भी आकर तबाही मचा सकती है. इस स्थिति में सुरक्षित रहने के लिए जरूरी होता है, सावधानी, सतर्कता और जरूरी तैयारी की. ऐसे में जब भीषण गर्मी की वजह से झारखंड में आगलगी की घटना आम हो चुकी है. तब ये जानना जरूरी हो जाता है कि राज्य के अस्पतालों में फायर फाइटिंग से लड़ने की कितनी तैयारी है. ये स्थान इसलिए ज्यादा खतरनाक हैं क्योंकि यहां वैसे मरीज भर्ती होते हैं जो आपात स्थिति में भी अपना बचाव नहीं कर सकते हैं. ईटीवी भारत की टीम ने राज्य के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स और सदर अस्पताल में आग से निपटने की तैयारी की पड़ताल की है.

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पुरातन व्यवस्था के भरोसे रिम्स:एक आंकड़े के अनुसार राज्य के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स में हर दिन 3000 से ज्यादा मरीज ओपीडी में और 1500 से ज्यादा मरीज वार्ड में भर्ती रहते हैं. पर आपको जानकारी हैरानी होगी की रिम्स का ओल्ड भवन अभी आग से निपटने के लिए कई दशकों पुराने सिस्टम पर निर्भर है. मतलब अगर रिम्स में आग लगी तो फायर एक्सटिंग्विशर के भरोसे ही मरीजों की जान बचाई जा सकेगी. अस्पताल में अब भी सेंट्रलाइज फायर फाइटिंग सिस्टम का काम पूरा नहीं हुआ है. वहीं नए बने रिम्स के कार्डियो ,ओंको,चाइल्ड सर्जरी,न्यूरोलॉजी भवन में फायर फाइटिंग सिस्टम तो लगाया गया लेकिन आज के दिन में वहां फायर फाइटिंग सिस्टम का अवशेष ही दिखाई देता है. न बॉक्स में पाइप है और न ही नोजल. ऐसे में अग्निशमन विभाग की ओर से इसका एनओसी रिन्यूल नहीं हुआ है. अब समझा जा सकता है कि राज्य के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल में लापरवाही का ये आलम है तो दूसरे अस्पतालों में क्या हाल होगा. अब हम आपको रांची के सदर अस्पताल ले चलते हैं जहां का हाल और भी बुरा है.

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रांची सदर अस्पताल को नहीं मिला है एनओसी:रांची सदर अस्पताल,राज्य का सबसे बड़ा जिला अस्पताल है जहां मरीजों के लिए 250 बेड की व्यवस्था है. कई मंजिलों में चल रहे इस अस्पताल में आग बुझाने की कोई मुकम्मल व्यवस्था नहीं है. इतना ही नहीं फायर फाइटिंग के एनओसी के लिए अग्निशमन विभाग में आवेदन तक नहीं दिया गया है. अग्नि शमन अधिकारी गोपाल यादव कहते हैं कि नगर निगम से अस्पताल भवन का नक्शा पास नहीं होने की वजह से सदर अस्पताल की ओर से अभी तक फायर फाइटिंग सिस्टम के एडवाइजरी और एनओसी के लिए अप्लाई तक नही किया गया है. ऐसे में आग लगने की घटना के बाद वहां भर्ती मरीजों और अस्पताल कर्मियों की जान कैसे बचेगी इसका जवाब किसी के पास नहीं है. झासा के प्रदेश सचिव और मेडिकल अफसर डॉ बिमलेश कहते हैं कि यह सही है कि सदर अस्पताल में जो भी डॉक्टर्स दिन रात सेवा देते हैं उन्हें इस बात का डर सताते रहता है कि गर्मी के दिनों में कहीं अगलगी की घटना हो गयी तो क्या होगा.

खराब पड़ा फायर फाइटिंग सिस्टम

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ऑटोमेटिक सेंट्रलाइज्ड फायर फाइटिंग सिस्टम की जरूरत: रांची के फायर अफसर गोपाल यादव कहते हैं कि अस्पताल में ज्यादातर वैसे लोग ही भर्ती रहते हैं जो आपात स्थिति में भी खुद का भी बचाव नहीं कर सकते हैं ऐसे में बड़े सरकारी अस्पतालों में ऑटोमैटिक फायर फाइटिंग सिस्टम होना चाहिए , वहां पर फायर एक्सटिंग्विशर ( अग्नि शमन टैंक) का होना पर्याप्त नहीं है वहीं स्वास्थ्य विभाग के मेडिकल अफसर तथा रांची नगर निगम में हेल्थ अफसर के पद पर सेवा देने वाले डॉ ए के झा कहते हैं कि अस्पतालों में अग्निशमन की पर्याप्त व्यवस्था नहीं होना अपराध है.

अस्पताल में भर्ती मरीज
अस्पताल में पीएसए प्लांट्स लगने के बाद बढ़ गई है जरूरत: कोरोनाकाल के दूसरे दौर मे ऑक्सीजन की कमी से उपजे हालात के बाद अस्पतालों में पीएसएस और लिक्विड ऑक्सीजन प्लांट लगाए गए हैं और ज्यादातर बेड ऑक्सीजन सपोर्टेड बनाये गए है, ऐसे में आग से बचाव की ज्यादा ठोस व्यवस्था की जरूरत है पर राजधानी के ही दो बड़े अस्पतालों में फायर फाइटिंग की बदहाल व्यवस्था इस ओर इशारा कर रही है कि मरीजों और उनका इलाज करने वाले डॉक्टरों,नर्सो की सुरक्षा के प्रति भी स्वास्थ्य विभाग और उसका तंत्र गंभीर नहीं है.

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