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प्रकृति पर्व सरहुल: पाहन ने की पवित्र सरना स्थल में पूजा, घड़ा का पानी देखकर अच्छे मानसून की भविष्यवाणी

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Published : Apr 4, 2022, 2:22 PM IST

सरहुल महापर्व के मौके पर आदिवासी समाज के लोग अपने पवित्र सरना स्थल पर प्रकृति की पूजा कर रहे हैं. इस दौरान हातमा सरना स्थल पर जगलाल पाहन ने पूरे विधि-विधान के साथ पूजा कर अच्छी बारिश, अच्छी खेती-बाड़ी और कोरोना मुक्त राज्य की कामना की है.

SARHUL FESTIVAL IN RANCHI
प्रकृति पर्व सरहुल

रांची: झारखंड में प्रकृति पर्व सरहुल को धूमधाम से मनाया जा रहा है. आज सभी सरना धर्मावलंबी प्रकृति की पूजा करते हैं. इस मौके पर हातमा के सरना स्थल में जगलाल पाहन ने पूरे विधि विधान के साथ पूजा कर अच्छी बारिश, अच्छी खेती-बाड़ी और कोरोना मुक्त राज्य की कामना की. इसके साथ ही पाहन ने मि्टटी के घड़े में रखे जल के स्तर को देखकर इस बार अच्चे मानसून की भी भविष्यवाणी की है.

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उत्तर दिशा से बारिश की संभावना:पाहन ने मिट्टी के घड़े में रखें जल स्तर को देखकर बताया कि इस बार उत्तर दिशा से होने की संभावना है उन्होंने कहा कि सिंगबोंगा से राज्य में खुशहाली हो हर कोई निरोग रहे ऐसी कामना पूजा के माध्यम से की गई है. आज के बाद तमाम शुभ कार्य आदिवासी समाज में शुरू कर दिया जाएंगे इस बार बारिश अच्छी होगी तो फसल भी क्षेत्रों में अच्छी होगी.

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पूजन की विधिःबता दें कि चैत्र शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाया जाने वाला प्रकृति पर्व सरहुल की मुख्य पूजा आदिवासियों के धर्मगुरु जो पाहन कहलाते हैं, वे अखरा में विधि-विधान पूर्वक अपने आदिदेव सिंगबोंगा की पूजा अनुष्ठान करते हैं. दो दिन के इस अनुष्ठान में कई तरह की रस्म निभाकर विधि-विधान से पूजा संपन्न की जाती है. इस दौरान सुख समृद्धि के लिए मुर्गा की बलि देने की परंपरा निभाई जाती है. ग्राम देवता के लिए रंगवा मुर्गा अर्पित किया जाता है. पहान देवता से बुरी आत्मा को गांव से दूर भगाने की कामना करते हैं. पूजा के पहले दिन शाम में दो घड़े का पानी देखकर वार्षिक वर्षा की भविष्यवाणी करते हैं. पाहन लोगों को बताते हैं कि इस वर्ष कैसी बारिश होगी.

सरना स्थल पर पूजा

आदिवासियों का सबसे बड़ा पर्व:सरहुल को आदिवासियों का सबसे बड़ा पर्व माना जाता है. सरहुल पर्व के साथ ही कई तरह की नई शुरुआत भी की जाती है,प्रकृति के महापर्व सरहुल की शुरुआत चैत माह के आगमन से होती है. इस समय साल के वृक्षों में फूल लग जाते हैं. जिसे आदिवासी प्रतीकात्मक रूप से नए साल का सूचक मानते हैं और पर्व को बड़े ही धूमधाम से मनाते हैं.

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