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जमशेदपुर: अपनी ईमानदारी के लिए जाने जाते हैं 'हो' आदिवासी, मुफलिसी में गुजरती है जिंदगी

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Published : Aug 29, 2019, 6:42 PM IST

भारत की आजादी के 70 साल के बाद भी झारखंड के हो आदिवासी मूलभूत सुविधाओं के लिए संघर्ष कर रहे हैं. राज्य में इनकी आबादी संथाल, उरांव और मुंडा आदिवासियों के बाद सर्वाधिक है. इनका अपना रीति-रिवाज है. ये प्रकृति की पूजा करते हैं.

प्रकृति की पूजा करते हैं हो आदिवासी

जमशेदपुर: शहर से 20 किलोमीटर की दूरी पर मिर्जाडीह गांव बसा है. इस गांव में 'हो' आदिवासी समुदाय के लोग रहते हैं. राज्य में इनकी आबादी संथाली, उरांव और मुंडा आदिवासियों के बाद सबसे ज्यादा है. ये अपनी ईमानदारी के लिए जाने जाते हैं. हो आदिवासियों को लड़ाकू योद्धाओें के रूप में भी जाना जाता है.

बदहाली की स्थिति में हैं हो आदिवासी

क्या होता है "हो" का अर्थ?
हो का अर्थ मनुष्य होता है. यह जनजाति लुकु बूढू को अपना पूर्वज मानती है. हो आदिवासियों के रीति-रिवाज अपनी संस्कृति और पौराणिक मान्यताओं के आधार पर हैं. ये पहाड़ों और जंगलों के बीच अपना घर बनाते हैं. जीविकोपार्जन के लिए यहां की महिलाएं झाड़ू, चटाई बना कर बाजार में बेचती हैं.

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छुड़ाए थे अंग्रेजों के पसीने
इतिहास गवाह है कि हो आदिवासियों ने अंग्रेजों को कभी अपने सामने टिकने नहीं दिया था. हो आदिवासियों पर नियंत्रण हासिल करने के लिए अंग्रजों ने एक सामरिक योजना बनाई थी. लेकिन, अंग्रेजों की मंशा कभी सफल नहीं हुई और उन्हें लगातार हो आदिवासियों के आक्रमणों का सामना करना पड़ा.

प्रकृति की करते हैं पूजा
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार हो समुदाय की अपनी संस्कृति और रीति-रिवाज है. ये मूर्ति पूजा नहीं करते हैं. बल्कि, ये पहाड़ों और प्रकृति की पूजा करते हैं. नाच-गाना हो समुदाय की पहली पसंद है. ये उत्सव के मौके पर बंशी और ढोल आदि बजाते हैं.

जिंदगी गुजरती है निराशाओं के बीच
आज हो आदिवासियों की स्थिति बेहद ही दयनीय है. देश की आजादी के सात दशक के बाद भी ये मूलभूत सुविधाओं के लिए जूझ रहे हैं. हो समुदाय के ज्यादातर परिवारों का जीवन जंगलों और पहाड़ों पर गुजरता है. सरकार को इनकी मदद के लिए आगे आने की जरूरत है.

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