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हजारीबाग से रहा है जेपी का विशेष लगाव, 18 मार्च को यहीं से शुरू हुआ था जेपी आंदोलन

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Published : Mar 18, 2021, 5:24 PM IST

Updated : Mar 18, 2021, 6:54 PM IST

18 मार्च भारत के इतिहास अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता है. इस दिन 1974 को जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में पटना में छात्र आंदोलन की शुरुआत हुई थी. जो देश भर में जेपी आंदोलन के नाम से जाना जाता है. आपातकाल लगाए जाने का एक कारण इसे भी माना जाता है. यही वजह है कि भारत के इतिहास में 18 मार्च का विशेष महत्व है.

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हजारीबाग: एकीकृत बिहार में 18 मार्च को आजाद भारत के सबसे बड़े आंदोलन की नींव रखी गई थी. पटना से इस आंदोलन की शुरुआत हुई जिसने देश भर में ऐसा असर डाला कि राजनीतिक गलियारों में भूचाल ला दिया. आज के दिन हजारीबाग में जेपी आंदोलनकारियों ने लिखित पुस्तक का विमोचन भी किया, जिसमें उस समय के आंदोलन को लिपिबद्ध किया गया है.

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जेपी आंदोलन में हजारीबाग ने निभायी अग्रिम भूमिका

जेपी के अनुयायियों का कहना है कि जिला हजारीबाग ने संपूर्ण क्रांति के समय अग्रिम भूमिका निभायी है. उस वक्त जेपी को मानने वालों ने बढ़ चढ़कर इस आंदोलन को गति दी थी. हजारीबाग के लोगों का आंदोलन में जो सहयोग रहा उसे इस पुस्तक में लिपिबद्ध किया गया है. आज के समय में भी जेपी का सपना पूरा नहीं हुआ है. जरूरत है हमलोगों को एक बार फिर उनके सपनों को पूरा करने की.

जेपी ने दी थी अंग्रेजों को खुली चुनौती

हजारीबाग से लोकनायक जयप्रकाश नारायण का गहरा लगाव रहा है. हजारीबाग केंद्रीय कारा में उन्हें गुलाम भारत के समय बंदी रखा गया था. जयप्रकाश नारायण ने जेल फांद कर अंग्रेजों को खुली चुनौती दी थी. जयप्रकाश नारायण केंद्रीय कारा के अंदर आज भी वह कमरा उसी तरह है. साथ ही साथ जिस जगह से उन्होंने जेल फांद कर आजादी की लड़ाई में अंग्रेजों को खुली चुनौती दी थी उसे भी संजोकर रखा गया है. आज उस जेल का नाम भी लोकनायक जयप्रकाश नारायण केंद्रीय कारा है.

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उस वक्त हजारीबाग के कई लोगों ने अपनी अहम भूमिका निभायी. उनमें से कई इस दुनिया में नहीं रहे. ऐसे में जेपी के अनुयायियों ने उनके परिजनों को शॉल और मोमेंटो देकर सम्मानित भी किया. निसंदेह जेपी आंदोलन नहीं एक विचारधारा है, उस विचारधारा की आज के समय में भी जरूरत है.

Last Updated : Mar 18, 2021, 6:54 PM IST

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