शिमला:एक ही मुद्दे पर बार-बार पुनर्विचार याचिकाएं दाखिल करना शिक्षा विभाग को महंगा पड़ा गया है. हिमाचल हाई कोर्ट ने ऐसा करने पर विभाग को 50 हजार जुर्माना लगाया है. अदालत ने जुर्माने की रकम सीएम आपदा राहत कोष में जमा करने के आदेश जारी किए हैं. मामला हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एमएस रामचंद्र राव और न्यायमूर्ति ज्योत्सना रिवाल दुआ की खंडपीठ के समक्ष लगा था.
क्या है पूरा मामला: मामले की सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा कि कोई वादी असंगत रुख अपनाते हुए पहले छोड़े गए मुद्दे को बार-बार उठाकर पुनर्विचार याचिका दायर करने के प्रावधान का दुरुपयोग नहीं कर सकता है. मामले के अनुसार हिमाचल हाई कोर्ट की एकल पीठ ने 4 नवंबर 2011 को एक फैसला पारित कर राज्य सरकार को आदेश दिए थे कि वह प्रार्थी चमन लाल बाली और अन्यों की सेवाओं को 14 सितंबर 2006 से कॉलेज कैडर के प्रवक्ता रूप में अपने अधीन ले. सरकार ने इसकी अपील खंडपीठ के समक्ष की. खंडपीठ ने 30 अक्टूबर 2018 को एकल पीठ के फैसले में कुछ संशोधन किए. जब सरकार फैसले से संतुष्ट नहीं हुई तो एक पुनर्विचार याचिका हाई कोर्ट में दायर की गई.
शिक्षा विभाग का तर्क: शिक्षा विभाग का कहना था कि प्रार्थी शैक्षणिक योग्यता पूरी नहीं करते हैं. ऐसे में उन कर्मचारियों की सेवाएं अपने अधीन नहीं ली जा सकती हैं. सरकार की इस पुनर्विचार याचिका को स्वीकार करते हुए खंडपीठ ने फिर एक बार सरकार की अपील को पुनर्जीवित किया. उसके बाद मामले को 17 दिसंबर 2022 को सुनवाई के लिए रखा. सरकार ने सुनवाई के दिन कोर्ट को बताया कि वास्तव में प्रार्थी शैक्षणिक योग्यता पूरी करते हैं, इसलिए शिक्षा विभाग ने इस मुद्दे को छोड़ दिया. जिसके बाद अदालत ने अपने पुराने फैसले को बरकरार रखते हुए विभाग को उसपर अमल करने के आदेश जारी किए. उस समय भी शिक्षा विभाग पर 20 हजार रुपए का हर्जाना ठोका गया था.
हाई कोर्ट की फटकार: जब फैसले पर अमल की बात आई तो शिक्षा विभाग ने फिर से प्रार्थी की शैक्षणिक योग्यता पर सवाल उठाते हुए फैसले के 207 दिनों बाद दूसरी पुनर्विचार याचिका दायर कर दी. हिमाचल हाई कोर्ट ने इस देरी को अनुचित पाते हुए पुनर्विचार याचिका को खारिज कर दिया. हाई कोर्ट ने शिक्षा विभाग के एक ही मुद्दे को कभी खोलने, कभी बंद करने और फिर दोबारा खोलने को गैर जिम्मेदाराना हरकत बताया. हाई कोर्ट ने कहा कि किसी वादी को अपनी इच्छानुसार एक ही मामले में असंगत, विरोधाभासी और बदलते रुख अपनाने की अनुमति नहीं दी जा सकती. किसी वादी को यह अनुमति नहीं है कि वह अदालत द्वारा फैसला सुनाए जाने के बाद भी बार-बार उस पर पुनर्विचार करता रहे, ताकि एक ही आधार पर उसकी कई बार समीक्षा की जा सके.
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