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Gucchi in Himachal: सराज के कुथाह मेले में जमकर हुआ गुच्छी का व्यापार, PM नरेंद्र मोदी भी हैं इसके दीवाने

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Published : Jun 7, 2023, 5:18 PM IST

Updated : Jun 7, 2023, 6:01 PM IST

सराज विधानसभा क्षेत्र के जिला स्तरीय कुथाह मेले में जमकर गुच्छी का व्यापार किया गया. अभी तक व्यापारियों द्वारा ग्रामीणों से गुच्छी की खरीद की जा रही है. 10 से 30 हजार किलो बिकने वाली गुच्छी पीएम नरेंद्र मोदी की पंसदीदा सब्जियों में से एक है. हिमाचल के घने जंगलों में यह पहाड़ी गुच्छी पाई जाती है.

Gucchi trade in Kuthah Fair in Seraj.
सराज के कुथाह मेले में जमकर हुआ गुच्छी का व्यापार.

हिमाचल के जंगलों में पाई जाती है गुच्छी.

सराज: जिस जंगली गुच्छी के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दिवाने हैं, उस गुच्छी का आजकल मंडी जिले के सराज विधानसभा क्षेत्र के जिला स्तरीय कुथाह मेले में अच्छा व्यापार किया जा रहा है. गुच्छी जिसे पहाड़ी भाषा में डुंघरू भी कहा जाता है, उसका सराज के जिला स्तरीय कुथाह मेले में जमकर व्यापार किया जा रहा है. चार से पांच गुच्छि व्यापारी मेले के खत्म होने के बाबजूद भी देवदार के पेड़ों के नीचे बैठकर ग्रामीणों से गुच्छी खरीद रहे हैं. बताया जा रहा है कि इसी कुथाह मेले में 600 से 700 किलो गुच्छी का व्यापार किया जा चुका है. इसके अलावा कुछ व्यापारी घर-घर, गांव-गांव जाकर भी गुच्छी की खरीददारी कर चुके हैं.

जगलों में पाई जाती है गुच्छी: औषधीय गुणों से भरपूर गुच्छी स्वाद में भी बेजोड़ होती है. ये हिमाचल के जंगलों में पाई जाती ह. माना जाता है कि ये सबसे महंगी सब्जियों में सबसे अव्वल नंबर आती है. 10 से 30 हजार प्रतिकिलो की दर गुच्छी की बिक्री होती है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी गुच्छी के गुणों के कायल हैं. गुच्छी जिसे जंगली मशरूम भी कहा जाता है, औषधीय गुणों से भरपूर होती है. इसका औषधीय नाम मार्कुला एस्क्यूपलेटा है. यह स्पंज मशरूम के नाम से देश भर में मशहूर है. यह गुच्छी स्वाद में बेजोड़ और कई औषधियों गुणों से भरपूर हैं. स्थानीय भाषा में इसे छतरी, टटमोर और पहाड़ी भाषा में डुंघरू कहा जाता है.

जगलों में पाई जाती है गुच्छी. (फाइल फोटो)

क्या है गुच्छी: गुच्छी को एक प्रकार का पहाड़ी या हिमाचली मशरूम कहा कहा जाता है. गुच्छी सिर्फ पहाड़ी इलाकों के जंगलों में पाई जाती है. जंगलों में भी गुच्छी घास और झाड़ियों के बीच ठंडी जगहों में ही पाई जाती है. बारिश के दिनों में जब आसमानी बिजली चमकती है तो कुदरती रूप से गुच्छी उगती है. इसका कोई बीच नहीं होता है. गुच्छी सेहत की दृष्टि से बेहद लाभदायक होती है और औषधीय गुणों से भरपूर होती है.

हिमाचल की इन जगहों में होती है गुच्छी: गुच्छी मंडी जिला के सराज विधानसभा क्षेत्र के साथ-साथ सभी ऊंची चोटीयों और चंबा, कुल्लू, शिमला, मनाली सहित प्रदेश के कई जिलों के जंगलों में पाई जाती हैं. आज के दौर में अधिकतर लोग गुच्छी के गुणों से अनजान हैं. इसलिए इसका पूरा फायदा नहीं उठाया जा रहा है. गुच्छी ऊंचे पहाड़ी इलाके के घने जंगलों में कुदरती रूप से पाई जाती है. जंगलों के अंधाधुंध कटान के कारण यह अब काफी कम मात्रा में मिलती है. यह सबसे महंगी सब्जी है. इसका सेवन सब्जी के रूप में किया जाता है. हिमाचल से बड़े होटलों में ही इसकी सप्लाई होती है.

प्रधानमंत्री मोदी की सेहत का राज है गुच्छी: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने एक बार कुछ पत्रकारों को बताया था कि उनकी सेहत का राज हिमाचल प्रदेश का मशरूम है. प्रधानमंत्री इसे बहुत पसंद करते हैं. दरअसल पीएम मोदी एक पार्टी कार्यकर्ता के रूप में लंबे समय तक हिमाचल में रह चुके हैं, यहां उनके कई मित्र हैं. पीएम मोदी को ये खास मशरूम इसलिए भी पसंद है, क्योंकि पहाड़ों पर शाकाहारी लोगों को काफी प्रोटीन और गर्म तासीर वाले खाद्य पदार्थों की जरूरत होती है. वैसे तो पीएम मोदी रोज इसका सेवन नहीं करते हैं, लेकिन उन्होंने कहा है कि गुच्छी उन्हें काफी पसंद है. इसमें बी कॉम्प्लेक्स विटामिन, विटामिन डी और कुछ जरूरी एमीनो एसिड पाए जाते हैं. इसे लगातार खाने से दिल का दौरा पड़ने की संभावनाएं बहुत ही कम हो जाती हैं. इसकी मांग सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि यूरोप, अमेरिका, फ्रांस, इटली और स्विट्जरलैंड जैसे देशों में भी है.

10 से 30 हजार रुपये किलो बिकती है गुच्छी. (फाइल फोटो)

10 से 30 हजार रुपये किलो बिकती है गुच्छी: 30 हजार रुपये प्रति किलो बिकने वाली गुच्छी को स्पंज मशरूम भी कहा जाता है. यह सब्जी हिमाचल, कश्मीर और हिमालय के ऊंचे पर्वतीय इलाकों में ही होती है. यह गुच्छी बर्फ पिघलने के कुछ दिन बाद ही उगती है. इस सब्जी का उत्पादन पहाड़ों पर बिजली की गड़गड़ाहट और चमक से निकलने वाली बर्फ से होता है. प्राकृतिक रूप से जंगलों में उगने वाली गुच्छी शिमला जिले के लगभग सभी जंगलों में फरवरी से लेकर अप्रैल माह के बीच तक ही मिलती है.

लोगों की आर्थिक को मजबूत करती है गुच्छी: गुच्छी की तलाश में हिमाचल के ग्रामीण इन जंगलों में जाते हैं. झाड़ियों और घनी घास में पैदा होने वाली इस गुच्छी को ढूंढने के लिए पैनी नजर के साथ ही कड़ी मेहनत की जरूरत होती है. ऐसे में अधिक मात्रा में गुच्छी हासिल करने के लिए ग्रामीण सबसे पहले इन जंगलों में आते हैं और सुबह से ही गुच्छी को ढूंढने के में जुट जाते हैं. आलम यह है कि गुच्छी से मिलने वाले अधिक मुनाफे के लिए कई ग्रामीण इस सीजन का बेसब्री से इंतजार करते हैं. कई परिवारों के आर्थिक मजबूती के लिए गुच्छी वरदान‌ से कम नहीं है.

बाहरी देशों में रहती है गुच्छी की मांग: इस महंगी दुर्लभ और फायदेमंद सब्जी को बड़ी-बड़ी कंपनियां और होटल हाथों-हाथ खरीद लेते हैं. ग्रामीणों से बड़ी कंपनियां 10 से 15 हजार रुपये प्रति किलो गुच्छी खरीद लेते हैं, जबकि बाजार में इस गुच्छी की कीमत 25 से 30 हजार रुपये प्रति किलो तक है. यह सब्जी केवल भारत में ही नहीं, बल्कि अमेरिका, यूरोप, फ्रांस, इटली और स्विट्जरलैंड जैसे देशों में भी इसकी भारी मांग है. इस गुच्छी को बनाने की विधि में सूखे मेवा और घी का इस्तेमाल किया जाता है. गुच्छी की सब्जी बेहद लजीज पकवानों में गिनी जाती है.

औषधीय गुणों से भरपूर है गुच्छी. (फाइल फोटो)

हृदय रोग के लिए लाभदायक है गुच्छी: यह सब्जी औषधीय गुणों से भरपूर है और इसके नियमित सेवन से दिल की बीमारियां नहीं होती हैं. यहां तक कि हृदय रोगियों को भी इसके उपयोग से लाभ मिलता है. गुच्छी के सेवन से कई घातक बीमारियां दूर होती हैं. गुच्छी में विटामिन बी, सी, डी व के की प्रचुर मात्रा मोटापा, सर्दी, जुकाम से लडने की क्षमता बढ़ाने में सहायक होती है. प्रोस्टेट व स्तन कैंसर की आशंका को कम करना, ट्यूमर बनने से रोकना, कीमोथेरेपी से आने वाली कमजोरी दूर करने में सहायक, सूजन दूर करने में भी गुच्छी लाभदायक है.

इस मौसम में पाई जाती है गुच्छी: फरवरी से मार्च के महीने में प्राकृतिक रूप से पैदा होने वाली इस गुच्छी की जहां पैदावार कम होने से इसके ग्रामीणों को अच्छे दाम मिलते हैं. वहीं, कई बीमारियों की दवाइयों के लिए भी इसकी काफी मांग है. इसे कई बड़े-बड़े होटलों में खास ऑर्डर पर स्पेशल डिश के रूप में भी पेश किया जाता है. हालांकि, गुच्छी आसानी से उपलब्ध नहीं होती है और इसे जंगलों में तलाशना भी काफी कठिन होता है. हिमाचल के ऊपरी क्षेत्रों में पाई जाने वाली इस गुच्छी की कीमत 10 हजार से लेकर करीब 30 हजार रुपए प्रति किलो तक होती है.

आसमानी बिजली की गर्जना से उगती है गुच्छी.

आसमानी बिजली की गर्जना से उगती है गुच्छी: विज्ञान अभी तक झाड़ियों और जंगलों में पाए जाने वाली जंगली मशरूम गुच्छी का कोई बीज नहीं निकाल पाया है. माना जाता है कि आसमान में जब बिजली की गर्जना से पैदा होती है तो गुच्छी अपने आप ही जंगलों में उगती है.

सर्दियों में इकठ्ठा कर सुखाई जाती है गुच्छी:दिसंबर माह से अप्रैल के बीच इन गुच्छियों को इकठ्ठा कर उन्हें एक हार बनाकर सुखा कर रखा जाता है. सराज विधानसभा क्षेत्र के हजारों परिवार और ग्रामीण लोग गरीबी के कारण आज भी साल भर की जरूरतों को पूरा करने के लिए इसी पर आश्रित रहते हैं. यहां के ग्रामीण स्तर के लोग ज्यादातर जंगलों में प्राकृतिक तौर पर उगने वाली संपदा बुरांस, बनक्शा, काफल सहित गुच्छियों को एकत्रित कर अपनी रोजी कमाते हैं.

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Last Updated : Jun 7, 2023, 6:01 PM IST

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