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मंडी के राजा को सपने में दिखे थे बाबा भूतनाथ, फिर करवाया मंदिर का निर्माण, रहस्यों से भरा है इसका इतिहास

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Published : Feb 17, 2023, 10:40 PM IST

हिमाचल प्रदेश की छोटी काशी मंडी में शिवरात्रि महोत्सव 19 फरवरी से शुरू हो रहा है. यहां पर शिवरात्रि में प्राचीन बाबा भूतनाथ मंदिर में काफी संख्या में श्रद्धालु आते हैं. क्या आप बाबा भूतनाथ मंदिर के इतिहास के बारे में जानते हैं? अगर नहीं तो जानने के लिए पढ़ें पूरी खबर...

बाबा भूतनाथ मंदिर.
बाबा भूतनाथ मंदिर.

मंडी:काशी के बाद यदि भगवान शिव के सबसे ज्यादा मंदिर कहीं है तो वह है हिमाचल प्रदेश के मंडी शहर में, इसीलिए मंडी शहर को छोटी काशी के नाम से जाना जाता है. इस शहर में अनेकों ऐतिहासिक शिव मंदिर हैं. ये शिव मंदिर इस शहर के इतिहास व संस्कृति को संजोए रखे हुए हैं. इन शिव मंदिरों में सबसे प्रचलित मंदिर है बाबा भूतनाथ मंदिर. बाबा भूतनाथ मंदिर को मंडी शहर का अधिष्ठाता कहा जाता है.

1527 ई. में हुआथा मंदिर का निर्माण-बाबा भूतनाथ के मंदिर निर्माण के बाद ही यहां पर मंडी शहर की स्थापना हुई है. 1500 ई. में मंडी शहर ब्यास नदी के दूसरी तरफ होता था और आज जहां पर शहर है वहां पर सिर्फ घना जंगल हुआ करता था. एक ब्राह्मण की गाय रोजाना इस जंगल में आकर एक स्थान पर अपना दूध छोड़ दिया करती थी. एक दिन तत्कालीन राजा अजबर सेन उस ब्राह्मण के साथ गाय का पीछा करते हुए इस स्थान पर आए. उन्होंने अपनी आंखों से इस दृश्य को देखा और वापस चले गए.

छोटी काशी मंडी का प्राचीन बाबा भूतनाथ मंदिर.

उसी रात को राजा को स्वप्न में यहां पर बाबा भूतनाथ का मंदिर बनाने का आदेश हुआ. 1527 ई. में राजा अजबर सेन ने इस मंदिर का निर्माण करवाया और उसके बाद ही नए मंडी नगर की स्थापना भी हुई. बाबा भूतनाथ मंदिर में यूं तो वर्ष भर श्रद्धालुओं का आना जाना लगा रहता है, लेकिन शिवरात्रि के दौरान लोगों की आवाजाही थोड़ी बड़ जाती है. इस मंदिर में शिवरात्रि से एक महीना पहले ही शिवरात्रि मनाना शुरू हो जाता है.

माखन के लेप से दर्शाते हैं विभिन्न स्वरूप-तारारात्रि की रात को यहां शिवलिंग पर माखन का लेप चढ़ाना शुरू हो जाता है और यह प्रक्रिया शिवरात्रि तक निरंतर जारी रहती है. रोजाना शिवलिंग पर माखन का लेप चढ़ाया जाता है और माखन के इस लेप पर प्रतिदिन भगवान शिव के विभिन्न रूपों की आकृतियां बनाई जाती है. माखन के इस लेप को घृत कंबल कहा जाता है. श्रद्धालू हर रोज मंदिर आकर भगवान शिव के घृत कंबल पर बनी आकृतियों के माध्यम से भोले बाबा के विभिन्न स्वरूपों के दर्शन करते हैं.

1527 ई. में बनाया गया था बाबा भूतनाथ मंदिर.

जन्म और मरन से जुड़ा है ये मंदिर-घृतकम्बल श्रृंगार की रस्में रियासत काल से ही चली आ रही हैं, जिनका निर्वहन आज भी उन्हीं रीति-रिवाजों के साथ किया जा रहा है. वहीं, इस मंदिर के प्रति लोगों की अटूट आस्था है. शहर के लोग रोजाना बाबा भूतनाथ मंदिर में आकर माथा टेककर आशीर्वाद लेना नहीं भूलते. मनुष्य के जन्म लेने के बाद से लेकर उसके अंतिम संस्कार तक की रस्मों की परंपरा भी इस मंदिर जुड़ी हुई है. जब बच्चा पैदा होता है तो जन्म की शुद्धि के बाद उसे बाबा भूतनाथ के दर्शन करवाए जाते हैं. वहीं, मृत्यु के बाद अंतिम संस्कार के लिए धुने की भभूति, शेष, शंख व घंटी भी बाबा भूतनाथ के मंदिर से ही लेकर जाते हैं.

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