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Danger! हिमाचल में सेब पर मंडरा रहा खतरे का बादल, मौसम में बदलाव के चलते घटा उत्पादन

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Published : May 25, 2023, 10:54 PM IST

Updated : May 26, 2023, 3:43 PM IST

देश-दुनिया में हो रहे जलवायु परिवर्तन का असर हिमाचल प्रदेश के बागवानी पर भी पड़ रहा है. मौसम परिवर्तन की वजह से हिमाचल में सेब की खेती क्षेत्र बढ़ने के बावजूद उत्पादन में भारी गिरावट दर्ज की जा रही है. क्लाइमेट चेंज के साथ कई अन्य कारण भी हैं, जो सेब की खेती को प्रभावित कर रहे हैं. पढ़िए पूरी खबर....

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हिमाचल में सेब पर मंडरा रहा खतरे का बादल.

हिमाचल में सेब उत्पादन घटा

कुल्लू:हिमाचल में बीते कुछ सालों से सेब का उत्पादन गिर रहा है. साल 2022-23 की आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार जहां हिमाचल में सेब की खेती क्षेत्र में वृद्धि हुई है. इसके बावजूद बीते एक दशक में सेब की वार्षिक उपज में गिरावट आई है. साल 2010-11 में 8.92 लाख मीट्रिक टन से अधिक सेब की उच्चतम वार्षिक उपज दर्ज की गई थी, लेकिन उसके बाद सेब की उपज प्रदेश में इस आंकड़े को पार नहीं कर पाई है. सेब की कुल उपज 2011-12 में घटकर 2.75 लाख मीट्रिक टन और 2018-19 में 3.68 लाख मीट्रिक टन रह गई. बीते साल की अगर बात करे तो प्रदेश में सेब का उत्पादन 6.11 लाख मीट्रिक टन ही था.

इस साल 6.74 लाख मीट्रिक टन उत्पादन:सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार पहाड़ी राज्य में इस साल 6.74 लाख मीट्रिक टन से अधिक सेब की कुल उपज दर्ज करने की उम्मीद है, जो पिछले साल की तुलना में काफी अधिक है. हिमाचल के कुल फल उत्पादन में सेब का हिस्सा लगभग 85% है. सेब की फसल राज्य में फलों की खेती के तहत कुल भूमि क्षेत्र का लगभग आधा हिस्सा है. राज्य में सेब की खेती का रकबा 1950-51 में 400 हेक्टेयर से बढ़कर साल 2021-22 में 1,15,016 हेक्टेयर हो गया है. साल 2007-08 में सेब की खेती के तहत क्षेत्र में 21.4% की वृद्धि दर्ज की गई. उसके बाद से प्रदेश में सेब के उत्पादन में कोई खास बढ़ोतरी नहीं हुई.

सेब उत्पादन में आई भारी गिरावट: सेब उत्पादकों और विशेषज्ञों के अनुसार सेब का उत्पादन घटने के पीछे मुख्य कारण जलवायु परिवर्तन है. मौसम में आये बदलाव के कारण हिमाचल प्रदेश में सेब बेल्ट लगभग 1,000 फीट ऊंचाई तक स्थानांतरित हो गयी है. पहले समुद्र तल से 4000 से 5000 फीट की ऊंचाई पर अच्छी गुणवत्ता वाले सेब मिलते थे, लेकिन इतनी ऊंचाई पर गुणवत्ता के साथ-साथ अब मात्रा भी प्रभावित हुई है. अब अच्छी गुणवत्ता वाला सेब केवल 6,000 फीट से ज्यादा की ऊंचाई पर मौजूद पेड़ों पर ही उग रहा है.

हिमाचल में सेब पर मंडरा रहा खतरे का बादल!

तापमान वृद्धि से सेब उत्पादन पर असर: पहाड़ी इलाको के तापमान में हो रही बढ़ोतरी के कारण यह सेब पट्टी हिमालय के अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों तक सिमट रही है. इसके अलावा बरसात के चक्र और इसके स्वरूप में बदलाव के साथ तापमान में बढ़ोतरी से फल उत्पादन पट्टी ऊपर की ओर खिसक रही है. इससे सेब के उत्पादन में उतार-चढ़ाव देखने को मिला है. सर्दियों में भी गर्म तापमान जैसे प्रतिकूल जलवायु परिवर्तनों के कारण हिमाचल प्रदेश में सेब की उत्पादकता में काफी गिरावट हुई है.

कम ठंड पड़ने से सेब की गुणवत्ता पर असर: सर्दियों के दौरान ठंड कम होने से कुल उत्पादन के साथ-साथ सेब की गुणवत्ता पर भी असर पड़ा है. सर्दियों के दौरान असामान्य रूप से गर्म मौसम, बेमौसम बारिश या बिल्कुल भी बारिश नहीं होना देखा जा रहा है. सेब के घटते उत्पादन में ये सभी जलवायु गड़बड़ी एक प्रमुख कारक रहे है. रॉयल डिलीशियस जैसी पुरानी सेब किस्मों को 7 डिग्री सेल्सियस से कम तापमान के 1200-1400 चिलिंग घंटों की आवश्यकता होती है. वहीं, नई किस्मों को ठीक से फूलने और फल देने के लिए 300-500 चिलिंग आवर्स की आवश्यकता होती है.

हिमाचल में 2 लाख परिवार सेब खेती पर निर्भर: सेब उत्पादकों के अनुसार एक अन्य प्रमुख कारण सेब की पुरानी किस्मों का उखड़ना था. हिमाचल प्रदेश में अभी भी सेब की पुरानी वैरायटी लगी हुई है. जिन पर सेब का उत्पादन पूरी तरह से मौसम पर निर्भर करता है. सेब के उत्पादन का कम होने का एक और कारण पुराने पेड़ों की जगह नई किस्मो के सेब के पेड़ लगाना भी है. हिमाचल में करीब 10 लाख परिवार खेती से जुड़े हुए हैं. इनमें से 2 लाख परिवार ऐसे हैं, जो सेब की खेती करते हैं.

हिमाचल के जीडीपी में सेब का योगदान: राज्य की जीडीपी में भी इसका 13 फीसदी से ज्यादा का योगदान रहता है. ऐसे में सेब का घटता उत्पादन बागवानों और राज्य सरकार दोनों के लिए अच्छे संकेत नहीं दे रहा है. बहरहाल सेब उत्पादकों और विशेषज्ञों का मानना है की अब प्रदेश के बागवानों को सेब की पुरानी किस्मों के पेड़ों के स्थान पर नई किस्म के पेड़ लगाने शुरू करने चाहिए. जिन पर मौसम का खासा प्रभाव नहीं पड़ता है. जिससे प्रदेश में सेब के उत्पादन को बल मिलेगा.

घटते सेब उत्पादन से बागवान भी परेशान:बागवान टीकम ठाकुर ने कहा सेब का घटता उत्पादन परेशानी का विषय है. प्रदेश में सेब की खेती रकबा तो बढ़ा है, लेकिन उत्पादन में भारी कमी आई है. उत्पादन कम होने का कारण यह है कि प्रदेश में अभी भी रेड डिलीशियस वैरायटी के पेड़ लगाए गए हैं. जो पूरी तरह मौसम पर निर्भर है. जिसकी वजह से मौसम खराब होने पर पोलिनेशन सही से न होने से सेब के उत्पादन में कमी आ रही है. दूसरा मुख्य कारण न्यूट्रिशन मेनेजमेंट का भी अच्छा नहीं होना है.

वैज्ञानिक तरीके से सेब की खेती की जरूरत: बागवानों को अब वैज्ञानिक तरीके से सेब की खेती करने की जरूरत है. वही, दूसरी तरफ सेब को सही मौसम की भी जरूरत है. इस साल प्रदेश में मौसम के बिगड़े मिजाज के चलते सेब का उत्पादन प्रभावित होगा. मई के महीने में उपरी इलाकों में बर्फबारी हो रही है, जो सेब की फसल के लिए अच्छे संकेत नहीं है. अब सेब में नयी नई किस्मे आ चुकी है. जिनसे 3 से 4 हजार फीट की ऊंचाई पर अच्छा सेब उत्पादन हो रहा है.

कीटनाशकों का अंधाधुंध प्रयोग से भी उत्पादन प्रभावित: फ्रूट ग्रोवर एसोसिएशन के अध्यक्ष महेंद्र उपाध्याय ने बताया कि प्रदेश में सेब के उत्पादन में कमी होने का मुख्य कारण जलवायु परिवर्तन है. वही, दूसरा कारण कीटनाशकों का अंधाधुंध प्रयोग भी है. जसकी वजह से पोलिनेटर और पोलिनेशन में कमी आई है. बागवानों द्वारा जंगलों में आग लगाना भी एक प्रमुख कारण है. जिसके चलते जंगली मधुमक्खी और जंगली तितलिया अब बागों में नहीं आती हैं. इससे भी सेब का उत्पादन प्रभावित हुआ है. सेब के ट्रेडिशनल पेड़ के लिए 120 से 140 घंटे चिलिंग हावर्स चाहिए होते हैं, लेकिन अब चिलिंग हावर्स उतने नहीं मिल पा रहे हैं. जिससे सेब का उत्पादन कम हो रहा है. अब सेब 6000 फीट से ज्यादा की ऊंचाई पर ही हो रहा है, जो पहले निचले इलाकों में भी हुआ करता था.

पुरानी किस्म के पेड़ से सेब की खेती प्रभावित: उपनिदेशक उद्यान विभाग कुल्लू बीएम चौहान के अनुसार उत्पादन कम होने का कारण मौसम में आया बदलाव और प्रदेश के बगीचों के सेब की पुरानी किस्म है. रॉयल सेब की वैरायटी उपरी इलाकों की तरफ जा रही है. सर्दियों में बर्फ पर्याप्त मात्रा में नहीं पड़ रही है. मौसम में बदलाव के चलते सेब के पौधों को चिलिंग हावर्स नहीं मिल पा रहे हैं. सेब के पेड़ अब काफी पुराने हो चुके हैं. अब बागवान इन्हें उखाड़ कर नए पेड़ भी लगा रहे है. निचले इलाकों में सेब के पेड़ की जगह अन्य फलों के पेड़ लगा रहे हैं. अगर भविष्य में जलवायु में इस तरह के परिवर्तन होते रहे तो यह खासकर बागवानी के लिए अच्छे संकेत नहीं होंगे.
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Last Updated :May 26, 2023, 3:43 PM IST

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