गोरखपुर: ये शिवाजी का दौर था और हिंदू साम्राज्य की स्थापना का सपना, लेकिन समस्या थी जातिवाद और छुआछूत. इसकी वजह से हिंदू एक नहीं हो पा रहे थे, ताकि मुगलों और निजामों के खिलाफ खड़े हो सकें. ऐसे ही समय में शिवाजी महाराज ने महाराष्ट्र भर में गणपति की झांकियां निकलवाईं, जिसमें ब्राह्मण और गैर ब्राह्मण एक साथ गणपति की स्थापना करते थे.
जब जातिवाद मिटाने घरों से निकल सड़कों पर आए बप्पा
भारत समेत दुनिया के कई हिस्सों में बड़े धूमधाम से मनाए जाने वाले गणेशोत्सव की शुरुआत महाराष्ट्र की सांस्कृतिक राजधानी पुणे से हुई थी. यूं तो पुणे का गणेशोत्सव पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है. इस उत्सव की शुरुआत शिवाजी महाराज ने जातिवाद और छुआछूत दूर करने के लिए की.
जब सड़कों पर उतरे बप्पा मोरया
पेशवाओं के दौर में गणपति महोत्सव मराठा साम्राज्य का राजकीय पर्व रहा. यही वह दौर था जब घरों में पूजे जाने वाले गणेश गणपति बप्पा मोरया के जयकारों के साथ सड़कों पर उतर आए. शिवाजी जो खुद भी महाराष्ट्र की नीची जातियों से आते थे ने जातिवाद और छुआछूत को दूर करने के लिए भगवान श्रीगणेश की शरण ली. इसका असर भी दिखा और लोगों में मराठा होने का भाव जगा.
लोगों ने लिया बढ़चढ़ कर हिस्सा
शिवाजी महाराजा के बाद पेशवाओं ने गणेशोत्सव में बढ़ चढकर हिस्सा लिया. पेशवाओं के महल शनिवार वाड़ा में पुणे के लोग हर साल इस उत्सव को धूमधाम से मनाते थे. इस उत्सव के दौरान महाभोज का आयोजन भी कराया जाता था. गरीबों और असहायों में मिठाई और पैसे बांटें जाते थे. इतना ही नहीं शनिवार वाड़ा में सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाता था.