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Natural Farming of Apple: देश-दुनिया को सेहत बांट रहा हिमाचल का नेचुरल सेब, तमिलनाडु से गुजरात तक मची केमिकल फ्री एप्पल की धूम

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Published : Jun 13, 2022, 8:20 PM IST

हिमाचल प्रदेश के दस हजार से अधिक बागवान अब नेचुरल तरीके से सेब उगा रहे हैं. हिमाचल में इस नेचुलर फार्मिंग को दिशा दे रहे आईएएस अधिकारी राकेश कंवर का कहना है कि बागवानों को प्राकृतिक तरीके से सेब उगाने के (Natural Farming of Apple In Himachal) लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है. इस तरीके से उत्पादन में लागत कम और मुनाफा अधिक मिलता है. नेचुरल तरीके से उगाए गए सेब में कोई कैमिकल स्प्रे नहीं होती है. इसमें जीवामृत का प्रयोग किया जाता है. रसायनिक तरीके से बागवानी के मुकाबले इसमें लागत न के बराबर है. नेचुरल फार्मिंग में बागवानों को बताया जाता है कि कैसे आसपास की घास, वनस्पतियों के साथ गुड़, बेसन आदि के मिश्रण से जीवामृत व घोल आदि तैयार किए जाते हैं.

Natural Farming of Apple
हिमाचल में सेब की नेचुरअल फार्मिंग

शिमला: भारत का एप्पल बाउल हिमाचल प्रदेश अब देश-दुनिया को नेचुरल सेब का स्वाद चखा रहा है. सालाना ढाई से चार करोड़ पेटी सेब उत्पादन करने वाले हिमाचल में अब बागवान नेचुरल फार्मिंग के जरिए केमिकल फ्री एप्पल पैदा कर रहे हैं. हिमाचल प्रदेश के दस हजार से अधिक बागवान अब नेचुरल तरीके से सेब उगा रहे हैं. पिछले सीजन में हिमाचल के नेचुरल एप्पल ने देश के दक्षिण राज्यों सहित महानगरों के पांच सितारा होटलों में अपने स्वाद की धूम मचाई है. नेचुरल तरीके से उगाए गए सेब से न केवल ग्राहकों को सेहत की सौगात मिल रही है, बल्कि बागवानों को कम लागत में शानदार दाम मिल रहे हैं. इससे बागवानों की लागत में 43 फीसदी की कमी आई है और उन्हें केमिकल वाले सेब के मुकाबले 27 फीसदी अधिक दाम मिल रहे हैं.

पिछले सेब सीजन में ऊपरी शिमला की बागवान शकुंतला शर्मा जब स्थानीय मार्केट में अपने बागीचे के नेचुरल तरीके से उगाए गए सेब लेकर पहुंची तो एक आढ़ती ने हाथों-हाथ सारे सेब खरीद लिए. इसी तरह रोहड़ू के सुभाष चौहान ने भी कर्नाटक और गुजरात की मंडियों में नेचुरल फार्मिंग वाले सेब बेचकर बेहतर मुनाफा कमाया. दिल्ली, मुंबई, अहमदाबाद और चेन्नई में फाइव स्टार होटलों में ब्रेक फास्ट में हिमाचली नेचुरल फार्मिंग एप्पल की धूम है. इस सीजन में हिमाचल का कृषि विभाग बागवानों के लिए मार्केटिंग का इंतजाम भी करेगा.

हिमाचल में सेब की नेचुरअल फार्मिंग

हिमाचल में इस नेचुलर फार्मिंग को दिशा दे रहे आईएएस अधिकारी राकेश कंवर का कहना है कि बागवानों को प्राकृतिक तरीके से सेब उगाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है. इस तरीके से उत्पादन में लागत कम और मुनाफा अधिक मिलता है. नेचुरल फार्मिंग का ये (Natural Farming of Apple In Himachal) मॉडल डॉ. सुभाष पालेकर से प्रेरित है. हिमाचल में 2019 में इसे लेकर अभियान की शुरुआत की गई थी. बागवानों को प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है. नेचुरल तरीके से उगाए गए सेब में कोई केमिकल स्प्रे नहीं होती है. इसमें जीवामृत का प्रयोग किया जाता है. रसायनिक तरीके से बागवानी के मुकाबले इसमें लागत न के बराबर है.

हिमाचल प्रदेश में इस समय 10 हजार से अधिक बागवान नेचुरल फार्मिंग के जरिए सेब उगा रहे हैं. हिमाचल में वैसे चार लाख बागवान परिवार हैं. अभी अधिकांश बागवान रसायनिक तरीके से प्रोडक्शन कर रहे हैं. इसमें कीटनाशकों व अन्य दवाइयों का प्रयोग होने के कारण ये महंगी पड़ती है. उत्पादन बेशक अधिक होता है, लेकिन अब लोग नेचुरल तरीके से उगाए गए फल व सब्जियों को अधिक प्राथमिकता देते हैं. वहीं, मझोले और सीमांत बागवान लागत का इतना खर्च नहीं उठा पाते इसलिए वे नेचुरल फार्मिंग की तरफ आकर्षित हुए हैं. हिमाचल सरकार इसमें इच्छुक बागवानों की मदद कर रही है.

हिमाचल में सरकार ने प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना शुरू की है. इस योजना में डॉ. सुभाष पालेकर की प्राकृतिक खेती विधि को अपनाया (Natural Farming Method of Subhash Palekar) गया है. हिमाचल प्रदेश में सेब उत्पादन एक प्रमुख सेक्टर है, लिहाजा उक्त मॉडल को बागवानी में भी लागू किया गया है. हिमाचल में इस समय शिमला, कुल्लू, मंडी, चंबा और सिरमौर जिले के दस हजार से अधिक किसान अपने बागीचों में इस मॉडल को अपना कर सेब उगा रहे हैं. प्रदेश में जिन बागवानों के पास एक बीघा से लेकर 55 बीघा के बागीचे हैं, ऐसे दस हजार से अधिक बागवान नेचुरल फार्मिंग से लाभ कमा रहे हैं. कुछ समय पहले शिमला में 8 जिलों से आए बागवानों ने एक कार्यशाला में अपने अनुभव सांझा किए थे. परियोजना निदेशक राकेश कंवर का कहना है कि अभी तक इस विधि से 10 हजार से अधिक बागवान और सवा लाख किसान जुड़ चुके हैं.

हिमाचल में सेब की नेचुरअल फार्मिंग
राज्य सरकार इस सेब सीजन के दौरान एचपीएमसी की मंडियों में प्राकृतिक तरीके (Natural Apple of Himachal) से उगाए गए सेब की मार्केटिंग के लिए अलग से काउंटर खोलेगी. उन्होंने बताया कि इस विधि को लेकर शोध में पाया गया है कि इससे बागवानों की उत्पादन लागत में केमिकल विधि के मुकाबले 43 प्रतिशत लागत कम आई है. डॉ. पालेकर के मॉडल से सेब बागीचों में मारसोनिना और स्कैब का प्रकोप भी कम देखा गया है. डॉ. वाईएस परमार यूनिवर्सिटी ऑफ हॉर्टिकल्चर एंड फॉरेस्ट्री के वैज्ञानिक भी नेचुरल फार्मिंग पर बागवानों को नवीनतम शोध के बारे में जानकारी देते हैं.
नेचुरल फार्मिंग में बागवानों को बताया जाता है कि कैसे आसपास की घास, वनस्पतियों के साथ गुड़, बेसन आदि के मिश्रण से जीवामृत व घोल आदि तैयार किए जाते हैं. इसके लिए गाय का गोबर, गोमूत्र, खट्टी लस्सी, गुड़ के साथ ही स्थानीय वनस्पतियों की जरूरत होती है. इससे लागत बहुत कम आती है. साथ ही बागवानों को कीटनाशक स्प्रे, रसायनिक खाद आदि खरीदने से बच जाते हैं. इस तरीके से उगाया गया सेब सेहत के लिए बहुत लाभदायक साबित होता है. यही कारण है कि इसकी मांग महानगरों में निरंतर बढ़ रही है. ऊपरी शिमला की सुषमा चौहान भी दो साल से इसी तरीके से अपना बागीचा चला रही हैं. उनका कहना है कि नेचुरल सेब के दाम मंडियों में अधिक मिलते हैं.

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