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18 बेटों की मौत से दुखी होकर राजा ने श्री कृष्ण को सौंप दिया था राजपाठ...जानिए पूरी कहानी

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Published : Feb 26, 2020, 10:07 AM IST

international shivratri festival in mandi
राज देवता माधव राय

अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव अपने आप में कई कहानियों और परंपराओं को संजोए हुए हैं. छोटे काशी मंडी की देव परंपरा और राज देवता माधव राय के प्रति प्रगाढ़ श्रद्धा को आज भी शिवरात्रि महोत्सव में साक्षात देखा जा सकता है.

मंडी: अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव अपने आप में कई कहानियों और परंपराओं को संजोए हुए हैं. छोटी काशी मंडी की देव परंपरा और राज देवता माधव राय के प्रति प्रगाढ़ श्रद्धा को आज भी शिवरात्रि महोत्सव में साक्षात देखा जा सकता है. यह विदित है कि राज देवता माधव राय को ही मंडी का पालक माना जाता है.

मंडी रियासत के राजा सूरज सेन ने उन्हें अपनी रियासत सौंप दी थी और खुद एक सेवक के रूप में काम करने लगे थे. इसके पीछे एक बेहद ही रोचक कहानी है. ईटीवी भारत के संवाददाता कमलेश भारद्वाज ने राज देवता माधव राय के पुजारी हर्ष कुमार से विशेष बातचीत की. इस दौरान उन्होंने राज देवता की मूर्ति के निर्माण और राजा से जुड़ी हुई रोचक कहानी के बारे में विस्तार से जानकारी दी.

विशेष बातचीत के दौरान उन्होंने कहा कि 17वीं सदी के दौरान मंडी रियासत के राजा सूरज सेन के सभी 18 पुत्रों की मौत हो गई थी और उन्होंने अपना राजपाठ भगवान श्रीकृष्ण के रूप यानी राज माधव राय के नाम कर दिया और खुद सेवक बन गए. राज देवता माधव राय की मूर्ति भीमा सुनार ने बनाई थी. तब से इन्हें मंडी रियासत का राजा माना गया था.

जब भी इस महोत्सव की शुरूआत होती है तो सीएम सबसे पहले राज माधव राय की पूजा करते हैं. इनकी पालकी को शोभायात्रा में सबसे आगे चलाया जाता है. शिवरात्रि महोत्सव में आने वाले सभी देवी-देवता पहले राज माधव राय मंदिर में आकर हाजरी देते हैं. इसके बाद शिवरात्रि महोत्सव में शामिल होते हैं.

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मंडी शिवरात्रि महोत्सव में आज भी राज दरबार सजता है और आज भी मंडी जनपद के सभी देवी देवता शिवरात्रि महोत्सव में पहुंचते ही राज दरबार में हाजिरी भरते हुए शीश नवाते हैं. समय के साथ शिवरात्रि महोत्सव में बदलाव होते रहे हैं. राजाओं के दौर से प्रशासन के हाथ में अब कमान चली गई है. अब जिला प्रशासन मेला कमेटी के माध्यम से इससे मेले का आयोजन करता है. पहले किराए के कहार कुलदेवता माधव राय की पालकी को उठाते थे लेकिन अब देवता के देवलू इस कार्य को कर रहे हैं.

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