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Independence Day: अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाने वाली एक ऐसी महिला, जिसे अंग्रेजी अफसर की मौत के बाद दी गई थी फांसी

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Published : Aug 15, 2023, 12:24 PM IST

Updated : Aug 16, 2023, 8:05 AM IST

देशभर में लोग आज आजादी का जश्न मना रहे हैं. लेकिन, आजादी दिलाने के लिए कई लोगों को अंग्रेजी हुकूमत के हाथों अपनी जान गंवानी पड़ी. कई महिलाओं ने भी अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाई. इनमें से एक नाम है बुलबुल. भले ही बुलबुल एक तवायफ थी, लेकिन आज भी बुलबुल की बहादुरी के किस्से सुने-सुनाए जाते हैं. (panipat bulbul tawaif)

panipat bulbul tawaif
पानीपत के बुलबुल तवायफ की कहानी

पानीपत: अंग्रेजी हुकूमत और अंग्रेजो से नफरत करने वाली भारत की बुलबुल ने अंग्रेजों के खिलाफ बगावत की आवाज उठाई थी. बुलबुल उस समय देश की इकलौती ऐसी महिला थीं, जिन्होंने ब्रिटिश हुकूमत के एक जिला कलेक्टर की पीट-पीट कर हत्या कर दी थी. बुलबुल देश की पहली ऐसी महिला थीं, जिसे अंग्रेजों ने फांसी दी थी. पानीपत शहर के सुभाष बाजार को एक समय था जब बुलबुल बाजार नाम से ही जाना जाता था. इस बाजार के पुराने कोठे आज भी उस समय की गवाही देते हैं.

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लखनऊ में हुआ बुलबुल का जन्म: आजादी की लड़ाई में भारतीय महिलाओं ने भी समय-समय पर अपनी बहादुरी और साहस के जोहर की ऐसी बेजोड़ मिसाल कायम की है जो आज भी लोगों में प्रेरणा स्रोत बनी हैं. ऐसे ही एक मिसाल पेश की बुलबुल नाम की महिला ने. दरअसल 1850 में लखनऊ के पुराने सिया मोहल्ले में पैदा हुई बुलबुल की कहानी आज भी काफी चर्चित है. लखनऊ में पिता मुमताज हसन की मौत के बाद अपनी मां और छोटी बहन गुरैया के साथ बुलबुल पानीपत में आकर बस गईं.

बुलबुल ने जिला कलेक्टर के हाथ पांव बांधकर सीढ़ियों से नीचे फेंक दिया था.

बुलबुल के दीदार के लिए दूर-दूर से पहुंचते थे लोग: बचपन में बुलबुल ने अंग्रेजों के काफी जुर्म सहे. इस बीच पेट की आग और घर की जरूरत पूरी करने के लिए बुलबुल की मां मुसलमानों वेश्या बनने पर मजबूर हुई. उसने पानीपत के बाजार में कोठा चलाना शुरू कर दिया. अब बुलबुल को अभी इस कोठे पर जाना निश्चित हो गया. थोड़े ही समय में बुलबुल के दीदार के लिए लोग दूर-दूर से पहुंचने लगे.

बुलबुल की कहानी इतिहासकार की जुबानी: इतिहासकार रमेश पुहाल कहते हैं कि, अंग्रेजों की जुर्म की दास्तान से बुलबुल काफी खफा रहती थीं. यही वजह है कि बुलबुल अंग्रेजों से नफरत किया करती थीं. सन 1888 में जिला करनाल के अंग्रेज कलेक्टर बुलबुल के कोठे पर जा पहुंचे. बुलबुल ने पूछा श्रीमान जी की तारीफ? तो कलेक्टर ने टूटी-फूटी हिंदी में जवाब में बताया कि मैं जिला कलेक्टर पीटर स्मिथ जोहन हूं और मैं तुम्हें चाहता हूं. क्या मुझे आप खुश कर सकते हैं और आज रात मैं तुम्हारे कोठे पर ही ठहरूंगा.

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जिला कलेक्टर पर बोल दिया था हमला: इतिहासकार रमेश पुहाल कहते हैं कि, आसमान में उड़ते परिंदे को पहचानने वाली तवायफ बुलबुल अंग्रेज की इस मंशा को समझ गई. उसने अपने कोठे पर मौजूद लड़कियों को इशारा करते हुए एक जगह पर इकट्ठा होने के लिए कहा और कपड़े धोने वाले डंडों से जिला कलेक्टर पर हमला बोल दिया. उसके हाथ पांव बांधकर सीढ़ियों से नीचे फेंक दिया. जिससे कलेक्टर की मौत हो गई. इसके बाद पुलिस वहां पहुंची और बुलबुल को गिरफ्तार कर लिया गया.

1989 में बुलबुल को सुनाई गई मौत की सजा: इतिहासकार रमेश पुहाल के अनुसार, पानीपत के रहने वाले लोग वकील पर वकील बुलाते रहे लेकिन कोई भी बुलबुल को इस केस से बाहर नहीं निकाल पाया. 4 वकीलों ने अंग्रेज पुलिस और पुलिस के नकली गवाहों को अदालत में झूठा साबित कर भी दिया. अंग्रेज सेशन जज विलियम हडसन ने बुलबुल को 10 मार्च सन 1889 दिन रविवार अदालत लगाकर मौत की सजा सुनाई. कहते हैं कि बुलबुल इसके बाद भी मायूस नहीं हुईं.

बुलबुल तवायफ को यहां पर दी गई थी फांसी.

8 जून 1989 को दी गई बुलबुल को फांसी: अंग्रेज सरकार ने 8 जून सन 1889 को पानीपत के संजय चौक पर जहां आज हैदराबादी अस्पताल है. वहां अंग्रेजी जल्लादों के हाथ फांसी पर लटका दिया. डॉक्टरों की जांच पड़ताल के बाद सिया इधर का इमामबाड़ा कब्रिस्तान जहां आज ईदगाह कॉलोनी है. वहां अंग्रेजी पुलिस की सख्त पहरेदारी में दफन कर दिया. उसके बाद उस वेश्या बाजार का नाम बुलबुल बाजार पड़ गया. आज उस बाजार को सराफा और सुभाष बाजार के नाम से भी जाना जाता है.

Last Updated : Aug 16, 2023, 8:05 AM IST

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