चंडीगढ़: आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 2023 धूमधाम से मनाया जा रहा है. इस दिन महिलाओं को उनके जज्बे और सशक्तिकरण के लिए नवाजा जाता है. इस मौके पर हम आपको बताएंगे चंडीगढ़ में तैनात आईएएस नितिका पवार के बारे में. जिन्होंने अपने पिता के सपने को साकार करते हुए भारतीय सिविल सर्विस में करियर बनाया. जमीन से जुड़े हुए उन्होंने अपने 10 साल के सर्विस जीवन में सादगी और निर्मलता को अपनी ढाला बनाया. ईटीवी भारत से बातचीत में नितिका पवार ने बताया कि वो दिल्ली की रहने वाली हैं, क्योंकि उनके पिता दिल्ली में ही सरकारी क्लर्क के तौर पर काम करते थे.
वो अक्सर घर में आकर सभी अफसरों के बारे में बारीकी से चर्चा करते थे. वो बताते थे कि कौन सा अधिकारी अच्छा काम करता है और कौन सा अधिकारी काम नहीं करता. वहीं से ही लोगों के लिए और देश के लिए एक भावना पनपने लगी. उनके पिता भी चाहते थे कि परिवार में से कोई बच्चा सिविल सर्विस को ज्वाइन करें. उन्होंने बताया कि मैं इंजीनियरिंग बैकग्राउंड से हूं, तो मैंने अपने पहले ही अटेंप्ट में इस एग्जाम को पास कर लिया. इससे सबसे ज्यादा खुशी मेरे पिता को हुई. निकिता ने बताया कि 10 सालों की सर्विस में मैंने कई उतार-चढ़ाव देखें, लेकिन परिवार के सहयोग के साथ में इन सभी को पार कर पाई.
उन्होंने बताया कि चंडीगढ़ आने से पहले उनकी पोस्टिंग अंडमान निकोबार में हो गई थी. वो अक्सर सिविल सर्विस में मुश्किल पोस्टिंग माना जाता है, लेकिन अंडमान निकोबार में रहते हुए उन्हें कई ऐसे काम करने को मौका मिला. जिनके बारे में सोचा भी नहीं था. 4 साल के दौरान वहां पर फैलने वाली प्लास्टिक की गंदगी को दूर करने की कोशिश की. अंडमान निकोबार में आम चीजों से संबंधित मैन्युफेक्चरिंग नहीं की जाती. वहां पर आने वाली हर चीज जो आम लोगों के इस्तेमाल में लाई जाती हैं, वो शिप के जरिए ही लाई जाती हैं. ऐसे में एक टापू होने के कारण वहां प्लास्टिक को खत्म करने का कोई जरिया नहीं होता.
जिसके कारण उस गंदगी को पानी में ही गिराना पड़ा था. जिसके कारण अंडमान निकोबार में मछली पालन में दिक्कत आने लगी थी. उन्होंने बताया कि क्योंकि मेरे पास फिशरीज डिपार्टमेंट था. लोग पहले से मछली उत्पादन में मंदे दौर से गुजर रहे थे. लोगों की समस्या को देखते हुए उन्होंने मछली पालन को एक बार फिर उजागर किया. बढ़ती गंदगी के कारण जो समस्या मछली पालन करने वाले लोगों को आ रही थी. उसको दूर किया. कर्नाटक के साइस इस्ट्रीट और वहां आने वाली शिप की मदद से कचरे को ट्रांसफर किया और मछली पालन को सुरक्षित करते हुए लोगों को लाभ पहुंचाया.