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हरियाणा की राजनीति में मशहूर हुए नारों की ये है असली कहानी

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Published : Apr 25, 2019, 8:31 AM IST

हरियाणा की पहली गैर कांग्रेसी सरकार बनाने वाले राव बिरेंद्र 21 मार्च से 2 नवंबर 1967 तक यानी 224 दिन सीएम रहे. उनके राज में किसानों के फसलों के बेहतर दाम मिले. इसीलिए राव आया, भाव लाया का नारा चला था.

प्रतीकात्मक फोटो

चंडीगढ़: प्रदेश की राजनीति में नारों और जुमलों की खास भूमिका रही हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में तो हुड्डा सरकार के खिलाफ इनेलो ने गुलाबी गैंग जुमला चलाया था.

राव आया-भाव लाया
हरियाणा की पहली गैर कांग्रेसी सरकार बनाने वाले राव बिरेंद्र 21 मार्च से 2 नवंबर 1967 तक यानी 224 दिन सीएम रहे. उनके राज में किसानों के फसलों के बेहतर दाम मिले. इसीलिए राव आया, भाव लाया का नारा चला था.

आया राम-गया राम
1967 में हसनपुर से विधायक गया लाल ने एक दिन में तीन बार दलों की अदला-बदली की. पहले कांग्रेस से यूनाइटेड फ्रंट में गए, फिर कांग्रेस में लौटे और फिर नौ घंटे के अंदर यूनाइटेड फ्रंट में शामिल हो गए. तब राव बिरेंद्र ने चंडीगढ़ में कहा था ‘गया राम, अब आया राम है.

मास्टरों की मरोड़
बतौर सीएम बंसीलाल की छवि सख्त प्रशासक की थी. 1985 में जब दूसरी बार मुख्यमंत्री बने तो कई शिक्षकों की नेतागिरी से परेशान थे. बार-बार आंदोलन की धमकी मिलती और शिक्षक नेताओं के काम न करने की शिकायतें भी मिलतीं. इस पर बंसीलाल ने शिक्षकों के घर से कम से कम 20 किलोमीटर दूर तबादले कर दिए. इसके विरोध की आवाज दिल्ली कांग्रेस हाईकमान तक भी बात पहुंची, लेकिन सरकार रुख पर कायम रही. तभी बंसीलाल के बारे में यह कहावत चली कि मास्टरों की मरोड़ और सड़कों के मोड़ निकाल दिए. बंसी सरकार में नहरों-सड़कों और बिजली पर काफी काम हुआ.

हरियाणा के मशहूर सियासी नारों के बनने की रोचक कहानी



राव-भाव से लेकर सड़कों की मोड़ तक के जुमलों के पीछे निगेटिव बैकग्राउंड ये नारे राज्य ही नहीं देश के दूसरे प्रदेशों में भी प्रचलिए हुए, यहां नारों पर कब्जे की भी सियासत है चर्चा में



पानीपत. हरियाणा की राजनीति में नारों व जुमलों का खास रोल रहा है और रहता है। पिछले विधानसभा चुनाव में तो हुड्डा सरकार के खिलाफ इनेलो ने गुलाबी गैंग जुमला चलाया था। दिलचस्प बात यह है कि प्रदेश जितने भी नारे मशहूर हुए हैं, उनकी निगेटिव पृष्ठभूमि रही है और बनने की कहानी बेहद रोचक है। आज उन्हीं नारों की कहानी पढ़िए।

 



राव आया-भाव लाया



विशाल हरियाणा पार्टी के बैनर तले 1967 में हरियाणा की पहली गैर कांग्रेसी सरकार बनाने वाले राव बिरेंद्र 21 मार्च से 2 नवंबर 1967 तक यानी 224 दिन सीएम रहे। उनके राज में किसानों के फसलों के बेहतर दाम मिले। इसीलिए राव आया, भाव लाया का नारा चला था। दिलचस्प है कि उसी दौरान राव के नजदीकियों पर अनाज की ब्लैकमेलिंग कर कमाई करने के आरोप भी लगे। इसी तरह फसलों के दामों को लेकर कई बार नारे व जुमले बने हैं। हुड्डा राज में निर्यात की वजह से चावल के अच्छे मिले तो उनके समर्थकों ने नारा दिया-हुड्डा तेरे राज में जीरी गई जहाज में। समर्थक यह जुमला भी देते थे-चौटाला तेरे राज म्हं जीरी गई ब्याज में और पराली गई लिहाज में।



आया राम-गया राम



1967 में हसनपुर से विधायक गया लाल ने एक दिन में तीन बार दलों की अदला-बदली की। पहले कांग्रेस से यूनाइटेड फ्रंट में गए, फिर कांग्रेस में लौटे और फिर नौ घंटे के अंदर यूनाइटेड फ्रंट में शामिल हो गए। तब राव बिरेंद्र ने चंडीगढ़ में कहा था ‘गया राम, अब आया राम है।’ हालांकि, गया लाल के बेटे एवं होडल से कांग्रेस विधायक उदयभान इससे नकारते रहे हैं। उनका तर्क है कि उनके पिता ने दल नहीं बदला बल्कि हालात के अनुसार दूसरे दलों का समर्थन किया। संसद में उमा शंकर दीक्षित ने पहली बार ‘आया राम, गया राम’ बोला, जिसे मेरे पिता से जोड़ दिया गया। यह तो लोहारू के विधायक रहे हीरानंद आर्य पर फिट बैठता है, जिन्होंने 7 बार दल बदला।

 



लोकराज लोकलाज से...



यह नारा ताऊ देवीलाल की देन थी। चौटाला परिवार के दोनों दल इनेलो व जजपा अब इस नारे पर कब्जे के लिए प्रयासरत हैं। राजद के लालू प्रसाद भी कई मौकों पर नारे का जिक्र करते रहे हैं। इसकी कहानी दिलचस्प है। देवीलाल दो किस्तों में सवा 4 साल हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे। उनका पहला कार्यकाल 21 जून 1977 से 28 जून 1779 दिन यानी 738 दिन रहा। इस कार्यकाल में जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं की गैर अनुशासित हरकतों से सरकार की छवि पर असर पड़ा। देवीलाल के अपने भी बेलगाम रहे। इसी वजह से ताऊ ने लोकराज लोकलाज से चलता का सूत्र वाक्य दिया जो प्रदेश की राजनीति का नारा बन गया। 



मास्टरों की मरोड़



बतौर सीएम बंसीलाल की छवि सख्त प्रशासक की थी। 1985 में जब दूसरी बार मुख्यमंत्री बने तो कई शिक्षकों की नेतागिरी से परेशान थे। बार-बार आंदोलन की धमकी मिलती और शिक्षक नेताओं के काम न करने की शिकायतें भी मिलतीं। इस पर बंसीलाल ने शिक्षकों के घर से कम से कम 20 किलोमीटर दूर तबादले कर दिए। इसके विरोध की आवाज दिल्ली कांग्रेस हाईकमान तक भी बात पहुंची लेकिन सरकार रुख पर कायम रही। तभी बंसीलाल के बारे में यह कहावत चली कि मास्टरों की मरोड़ और सड़कों के मोड़ निकाल दिए। बंसी सरकार में नहरों-सड़कों और बिजली पर काफी काम हुआ।


Conclusion:

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