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अपराध नहीं बीमारी है आत्महत्या

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Published : Sep 15, 2020, 11:34 AM IST

Updated : Sep 16, 2020, 9:55 AM IST

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आत्महत्या ()

अपराध की श्रेणी में गिनी जाने वाली आत्महत्या को मनोचिकित्सक अपराध नहीं बल्कि एक बीमारी मानते हैं, जिसे थोड़ी देखभाल के साथ ठीक किया जा सकता है. पिछले कुछ महीनों में बड़ी संख्या में घटी 'सेलिब्रिटी सुसाइड' की घटनाओं के चलते सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर एक नए तरह का ट्रेंड शुरू हुआ. सुसाइड प्रिवेंशन हेल्पलाइन का. लेकिन क्या यह हेल्पलाइन वाकई जिंदगी से निराश हो चुके लोगों में वापस उम्मीद की किरण जगाने में मददगार साबित होती है. इस बारे में मनोचिकित्सक डॉ. वीणा कृष्णन ने विस्तार से जानकारी दी.

यूं तो अखबारों में आए दिन हम खुदकुशी की खबरें पड़ते रहते हैं, जिन्हें हम सामान्य खबरों की ही भांति जल्दी भूल जाते है. लेकिन पिछले कुछ महीनों में मशहूर शख्सियतों के आत्महत्या करने की खबरों ने लोगों का ध्यान आकर्षित किया है. मानसिक तनाव या अवसाद किस हद तक पीड़ित को एकांकी बना सकता है की वह अपनी जान देने पर मजबूर हो जाए. इस बात की गंभीरता को समझते हुए देश भर में कई चिकित्सीय और गैर चिकित्सीय संगठनों ने सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर अलग-अलग तरह की मुहिम शुरू की है. जहां अवसाद ग्रस्त लोग बात या चैट करके अपनी समस्या को बांट सकते है और मदद भी प्राप्त कर सकते है.

लेकिन क्या इस तरह के प्रयास सही में जरूरतमंद लोगों की मदद कर पाएंगे? इस तरह की मुहिम की सफलता तथा किस तरह से हम आत्महत्या से प्रेरित हो रहे लोगों की मदद कर उन्हें उम्मीद की राह पर वापस ला सकते है, ETV भारत सुखीभवा टीम ने वरिष्ठ मनोचिकित्सक तथा आत्महत्या को लेकर चलाए जा रहे विभिन्न सरकारी व गैर सरकारी अभियानों की अग्रणी सदस्य तथा पदाधिकारी डॉ. वीणा कृष्णन से बात की.

आत्महत्या के कारण

डॉ. कृष्णन बताती है की हमारे कानून में आत्महत्या को अपराध माना जाता है. लेकिन यह अपराध नहीं एक बीमारी है. जिसका यदि सही ढंग से इलाज हो, तो बीमार व्यक्ति को पूरी तरह से ठीक किया जा सकता है. आत्महत्या के कारणों पर चर्चा करते हुए डॉ. कृष्णन ने बताया की जब व्यक्ति का अवसाद इस अवस्था तक पहुंच जाता है की उसे अपना भविष्य अंधकार में नजर आने लगता है, जीवन में कोई उम्मीद नहीं रहती और जीवन से बेहतर मृत्यू लगने लगती है, तब वह आत्महत्या जैसे कदम के बारे में सोचता है.

हर साल हमारे देश में इम्तेहानों में असफल होने पर, बीमारी, प्रेम संबंधों में नाकाम होने पर, बेरोजगारी या व्यापार में घाटे के चलते लाखों लोग आत्महत्या जैसे कदम उठाते है. आंकड़ों की मानें तो पहले आत्महत्या करने वाले लोगों में 15 से 30 वर्ष के लोगों की संख्या अधिक रहती थी. लेकिन चिंता की बात यह है की अब यह उम्र घट गई है. आजकल तो 10 से 13-14 साल के बच्चों की आत्महत्या करने की घटनाएं सुनने में आ जाती है.

कितनी मददगार होती है सुसाइड प्रिवेंशन हेल्पलाइन सुविधा

डॉ. कृष्णन बताती है आत्महत्या को रोका जा सकता है, जरूरी है सही समय पर सही कदम उठाने की. यूं तो फिलहाल हमारे देश में बहुत सी ऐसी हेल्पलाइन सुविधायें चलाई जा रही है, जो ऐसे लोगों की मदद के लिए शुरू की गई है, जो अवसाद से ग्रस्त हो, आत्महत्या को लेकर प्रेरित हो रहें हो. लेकिन अधिकांश मामलों में वह ज्यादा मददगार साबित नहीं हो पा रही है. जिसका कारण है अनुभवी मददगारों और पथप्रदर्शकों की कमी.

जब एक व्यक्ति इस स्तर तक पहुंचा हो की वह अपनी जान लेने के बारे में सोच रहा हो, तो इसका मतलब है की वह बहुत ही संवेदनशील अवस्था से गुजर रहा है. ऐसे में बहुत जरूरी है की उसे सलाह या काउंसलिंग देने वाला व्यक्ति या तो मनोचिकित्सक हो या फिर प्रशिक्षित हो और उसे पता हो की किस तरह से बीमार व्यक्ति की मदद की जा सकती है.

आस पास के लोगों से संवाद बनाए रखें

यदि आपको लगता है की आपका कोई करीबी अवसाद ग्रस्त है और आत्महत्या के बारे में सोच सकता है, तो उससे बात करें, उसे जिंदगी की अहमियत समझाने का प्रयास करें और किसी मनोचिकित्सक की मदद लें. ऐसे बहुत से लक्षण है, जिन्हें समझ कर यह पता लगाया जा सकता है की व्यक्ति में निराशा हावी हो रही है और वह आत्महत्या की ओर आगे बढ़ रहा है. ज्यादातर मामलों में पीड़ित स्वयं आगे आकर मदद नहीं मांगता है. ऐसे में जरूरत है, तो उन लक्षणों को समझने की, और पीड़ित की मदद करने की. जरूरी है की हम अपने परिजनों, दोस्तों और सहकर्मियों को लेकर थोड़ी संवेदनशीलता बरतें, उनसे संवाद बनाए रखें. जिससे उनके व्यवहार में परिवर्तन और तनाव को जान कर उनकी मदद की जा सकें.

आत्महत्या के लिए प्रेरित करने वाले कारक

डॉ. कृष्णन बताती हैं की अवसाद ग्रस्त होने के बाद भी आत्महत्या जैसा फैसला सरल नहीं होता है. यदि वर्तमान परिद्रश्य की बात करें तो, कुछ मशहूर व्यक्तियों के स्वयं की जान लेने की घटनाओं ने कई ऐसे लोगों को अपनी जान देने के लिए प्रेरित किया, जो किसी ना किसी कारण से अपने जीवन से बहुत हताश और निराश थे. डॉ. कृष्णन इस तथ्य की पुष्टि करते हुए बताती है की लगातार टीवी, सोशल मीडिया या अन्य माध्यमों पर लगातार प्रसारित हो रही खबरों ने बहुत से लोगों के दिमाग पर असर और प्रेरित किया है.

Last Updated :Sep 16, 2020, 9:55 AM IST

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