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पोस्ट कोरोना न्यूरोसाइकाइट्रिक विकारों ने बढ़ाई चिकित्सकों की चिंता( भाग 2)

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Published : Nov 11, 2020, 4:30 PM IST

Updated : Nov 12, 2020, 10:13 AM IST

अपनी लगातार बदलती संरचना, लक्षण और शरीर पर पड़ने वाले असर में लगातार परिवर्तन के चलते कोविड-19 चिकित्सकों के लिए एक सिरदर्द बन गया है. वहीं इस समय चिकित्सकों के सामने चिंता की बात यह भी है कि कोविड-19 से ठीक हो चुके मरीजों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर दीर्घकालीन यानी लंबे समय तक पड़ने वाले असर भी देखने और सुनने में आ रहे हैं.

post covid effect on brain
मस्तिष्क पर पोस्ट कोविड प्रभाव

कोरोनावायरस से ठीक हो चुके मरीजों में न्यूरोसाइकाइट्रिक विकारों तथा अन्य परेशानियों के बढ़ने की समस्या ने चिकित्सकों के माथे पर चिंता की लकीरें खींची हुई हैं. ऐसे मरीजों में हेपेटिक एन्सेफ्लोपैथी, एन्सेफलाइटिस तथा रक्त प्रवाह तंत्रिकाओं में खून के थक्के बनने की समस्या देखने में आ रही है. यहां तक कि ऐसे मरीजों को भी स्ट्रोक जैसी समस्या का सामना पड़ रहा है, जिनमें कोरोना काल से पहले मधुमेह, हाई ब्लड प्रेशर या स्ट्रोक जैसी समस्या का कोई भी पारिवारिक इतिहास नहीं था. इस संबंध में विस्तार से जानकारी लेने के लिए ETV भारत सुखीभवा की टीम ने अपोलो हॉस्पिटल तथा मेगना न्यूरोलॉजी, हैदराबाद में न्यूरोलॉजिस्ट श्रीकांत वेमुला से बात की.

मरीजों में बढ़ी मानसिक विकार संबंधी समस्याएं

डॉक्टर वेमुला बताते हैं की कोरोनावायरस के शरीर पर असर के चलते ऐसे व्यक्ति जो कि इस बीमारी से ठीक भी हो चुके हैं, उनमें बहुत से मानसिक विकार देखने में आ रहे हैं. यह विकार से तनाव और अवसाद से ही नहीं जुड़े हैं, बल्कि यह रोगी के शारीरिक स्वास्थ्य, उसकी कार्य करने की क्षमता तथा उसकी इंद्रियों पर भी असर डाल रहे हैं. कोरोना से ठीक हो चुके ज्यादातर मरीजों में माइग्रेन जैसी लगातार तीव्र सिरदर्द की समस्या देखने में आ रही है, जिसके साथ-साथ लगातार मितली यानी जी मिचलाना, नोशिया, तीव्र रोशनी तथा तेज आवाज को बर्दाश्त ना कर पाना, लंबे समय तक स्वाद को या सुगंध को सही तरह से महसूस ना कर पाने जैसी समस्याएं भी देखने में आ रही हैं.

डॉ. श्रीकांत बताते हैं कि बच्चों में भी ठीक होने के बाद तीव्र सिर दर्द की समस्या देखने में आ रही है. उन्होंने बताया उनके पास 13 और 14 साल के दो बच्चों के मामले सामने आए हैं, जिनमें कोरोना से ठीक होने के बाद सिर दर्द की समस्या देखने में आ रही है. यह सर दर्द क्षणिक होता है, लेकिन बहुत ज्यादा तीव्र और बर्दाश्त से बाहर होता है. यह एक ऐसा पैटर्न है, जो अभी तक संज्ञान में नहीं आया था.

इसके अलावा बच्चों में अचानक मूड में बदलाव जैसे गुस्सा, चिड़चिड़ापन, बेचैनी तथा तनाव की स्थिति देखने में आ रही है. वहीं ऐसे लोग जिन्हें पहले ही किसी प्रकार का मानसिक विकार या अस्वस्थता रही हो, उनके लिए परिस्थितियां ज्यादा चिंतनीय हो रही हैं.

ऑटोइम्यून निमोनिया वाले लक्षण

डॉक्टर वेमुला बताते हैं कि कुछ निमोनिया ऑटोइम्यून होते हैं, जिनमें हमारा शरीर विपरीत परिस्थितियों में स्वयं प्रतिक्रिया देता है. इस अवस्था में हमारे मस्तिष्क के सबसे संवेदनशील हिस्सों के आसपास के इलाके की तंत्रिकाओं पर असर पड़ता है. कोविड-19 के मरीज की मानसिक अवस्था पर पड़ने वाले प्रभावों को लेकर किए जा रहे विभिन्न शोधों में यह बात सामने आ रही है कि ऐसे ही ऑटोइम्यून निमोनिया के लक्षण कोविड-19 से जंग जीत चुके मरीजों में भी देखने में आ रहे हैं. ज्यादातर मामलों में मस्तिष्क तथा तंत्रिका तंत्र पर पड़ने वाले यह नुकसान हमारे मानसिक स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक हो सकते हैं.

मायलिन में कमी

मायलिन हमारी तंत्रिका तंत्र तथा मस्तिष्क में मौजूद तंत्रिकाओं के लिए एक आवरण की तरह काम करता है, लेकिन कुछ खास परिस्थितियों में यह कम होने लगता है, जिसे हमारी तंत्रिकाओं की कार्य क्षमता में कमी आ जाती है. इसके परिणाम स्वरूप प्रभावित क्षेत्र क्षीण तथा कमजोर हो जाता है. इस रोग का असर कोरोनावायरस से ठीक हो चुके रोगियों में भी नजर आ रहा है, जिसके चलते कई रोगियों में मल्टीपल सिरोसिस जैसी समस्याएं देखने में आ रही हैं.

डॉक्टर वेमुला बताते हैं कि हमारा तंत्रिका तंत्र हमारे मस्तिष्क को रीढ़ की हड्डी या स्पाइनल कॉर्ड से जोड़ते हैं तथा हमारे शरीर की संवेदनाएं, हरकतों और विभिन्न अंगों के बीच के सामंजस्य को नियंत्रित करने में मदद करता हैं. लेकिन इन विशेष परिस्थितियों के चलते हमारे तंत्रिका तंत्र पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभावों के कारण लोगों में मसल्स में दबाव, नसों में खिंचावट तथा पाव में कमजोरी जैसी समस्याएं देखने में आ रही हैं.

पुराने दौर की महामारी में मानसिक रोगों का इतिहास

महामारी चाहे किसी भी दौर में रही हो, लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर उसका असर हमेशा से ही देखा जाता रहा है. कई बार यह असर मानसिक अस्वस्थता तक ही सीमित रहता है और कई बार सामान्य तथा गंभीर मानसिक विकारों के रूप में होता है. हालांकि साक्ष्यों के अभाव में कई बार इन अवस्थाओं को साबित नहीं किया जा सका है. बीसवीं सदी के दौरान सन् 1916 से 1930 के बीच 'एन्सेफेलाइटिस लथारजीका' नामक महामारी फैली थी, जिसमें लोगों के तंत्रिका तंत्र पर काफी प्रभाव पड़ा था. जिसके चलते उनमें पार्किंसन जैसे रोग के लक्षण नजर आने लगे थे. इससे पहले के सालों में भी फैली महामारी के दौरान इन लोगों में एन्सेफेलाइटिस तथा सोने में समस्या यानी इनसोम्निया जैसी समस्याओं के लक्षण नजर आए थे.

हालांकि समय के साथ लोगों ने कोरोनावायरस के साथ जीना सीख लिया है, लेकिन इससे यह नहीं भूलना चाहिए कि अभी भी हमारे वातावरण में कोरोनावायरस फैला हुआ है, जिसका भविष्य में हमारे शरीर पर किस तरह का असर होगा, इस बारे में भविष्यवाणी करना संभव नहीं है. इसलिए जरूरी है कि तमाम जरूरी दिशा निर्देशों और सावधानियों का पालन करते हुए जहां तक संभव हो, इस रोग से बचने का प्रयास किया जाए. यदि ज्यादा थकान, चक्कर आने और लगातार सिरदर्द जैसी समस्या महसूस कर रहे हो, तो तुरंत चिकित्सक की सलाह लें.

Last Updated : Nov 12, 2020, 10:13 AM IST

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