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ब्रिस्क वॉकिंग से बढ़ सकती है याददाश्त

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Published : Jul 21, 2021, 2:49 PM IST

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ब्रिस्क वॉकिंग से बढ़ सकती है याददाश्त ()

बढ़ती उम्र के साथ जो सबसे बड़ी समस्या लोगों को आती है वह है याददाश्त कम होने की तथा जोड़ो में परेशानी की। हाल ही में हुए एक सर्वे में सामने आया है की यदि नियमित तौर पर ब्रिस्क वॉकिंग यानी तेज चलने का अभ्यास किया जाय तो काफी, हद इन समस्याओं में राहत मिल सकती है।

कोलोराडो यूनिवर्सिटी के हाल ही में हुए एक शोध का नतीजों में सामने आया है की हफ्ते में तीन दिन 40-40 मिनट तक ब्रिस्क वॉक करने पर दिमाग में मौजूद दिमागी सेल्स को जोड़ने वाला व्हाइट मैटर तरोताजा होने के साथ बेहतर अवस्था में आने लगता है। नतीजतन 60 साल या उससे ज्यादा उम्र में भी याददाश्त और सोचने-समझने की क्षमता सुधरने लगती है।

250 बुजुर्गों पर हुआ शोध

न्यूरोइमेज में प्रकाशित इस अध्धयन के स्टडी के मुताबिक डांस और एक्सरसाइज की तुलना में ब्रिस्क वॉक से सहरीर ज्यादा सक्रिय रहता है और याददाश्त को बेहतर रखने में मदद मिलती है। कोलोराडो स्टेट यूनिवर्सिटी में न्यूरोसाइंस एंड ह्यूमन डेवलपमेंट की प्रोफेसर एग्निज्का बर्जिंस्ंका और उनकी टीम ने 60 से 80 उम्र वाले ऐसे 250 बुजुर्ग पुरुष-महिलाओं को विषय के रूप में चुना जो शारीरिक रूप से ज्यादा सक्रिय नहीं थे।

शोध के दौरान इन सभी बुजुर्गों का विभिन्न अभ्यासों के माध्यम से एरोबिक फिटनेस और संज्ञानात्मक कौशल का परीक्षण लैब में किया गया। जिसके उपरांत एमआरआई स्कैन के जरिए इनके दिमाग में व्हाइट मैटर की सेहत और कामकाज को भी मापा गया।

शोध में सभी प्रतिभागियों को तीन समूह में बांटा गया। इनमें पहले समूह को स्ट्रेचिंग और बैलेंस ट्रेनिंग दी गई , दूसरे समुह को सप्ताह में तीन बार 40 मिनट ब्रिस्क वॉक और तीसरे को डांस और ग्रुप कोरियोग्राफी के लिए निर्देशित किया गया ।

छह महीने तक इनकी यही दिनचर्या रखी गई। जिसके उपरांत आए नतीजों में यूं तो तीनों ही समूहों के दिमागी और शारीरिक स्थिति में सुधार दिखाई दिया। वॉक और डांस करने वालों की एरोबिक फिटनेस भी पहले से बेहतर हुई थी । लेकिन ब्रिस्क वॉक करने वालों की सेहत में अपेक्षाकृत ज्यादा सुधार नजर आया। महत्वपूर्ण बात यह है कि उनके दिमाग में मौजूद व्हाइट मैटर नया लग रहा था। उन्होंने मेमोरी टेस्ट में भी अन्य समूहों से बेहतर प्रदर्शन किया।

गतिहीन रहने पर ज्यादा सक्रिय होता है व्हाइट मैटर

गौरतलब है की मस्तिष्क की वायरिंग में व्हाइट मैटर एक बेहद अहम हिस्सा है और इसमें किसी भी प्रकार की गड़बड़ी का प्रभाव भावनाओं व सोचने की क्षमता पर पड़ सकता है। व्हाइट मैटर ऐसा टिशू है जो दिमाग और रीढ़ की हड्‌डी को नर्व फाइबर से जोड़ता है। व्हाइट मैटर दिमाग में मौजूद ग्रे मैटर जितना ही महत्वपू्र्ण है। आमतौर पर अवसाद ग्रस्त लोगों के व्हाइट मैटर की सघनता में कमी देखी गई है, जो सामान्य मानव मस्तिष्क में नहीं देखा जाता है।

प्रो. बर्जिंस्का बताती हैं की शोध के नतीजे दिमाग की गतिशीलता के बारे में काफी हद तक स्पष्ट आँकलन देते हैं। हमारे शरीर की निष्क्रियता और सक्रियता के अनुसार हमारे मस्तिष्क के टिशू यानी तन्तुओ की संरचना भी बदलती रहती हैं। शारीरिक तौर पर ज्यादा सक्रिय होने से बढ़ती उम्र में भी मस्तिष्क में व्हाइट मैटर का दोबारा निर्माण शुरू हो सकता है, जबकि गतिहीन रहने पर दिमाग में इसकी कमी होने लगती है और इसकी गुणवत्ता भी घटती है।

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