काबुल:अफगानिस्तान की सत्ता पर तालिबान के काबिज होने के बाद कई समस्याएं खड़ी हो गई हैं. इनमें स्वास्थ्य व्यवस्था का चरमराना भी शामिल है. तालिबान के आने से पहले जो दिक्कतें थीं, वे अब बढ़ गई हैं और देश में स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करने वालों को नए निजाम के साथ तालमेल बैठाने में कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है.
राजधानी के बाहर मीरबाचा कोट जिला अस्पताल की स्थिति इसका जीवंत उदाहरण है. तालिबान ने 22 वर्षीय मोहम्मद जावीद अहमदी को इस अस्पताल की जिम्मेदारी सौंपी है जिससे वहां के डॉक्टर मायूस हैं. अहमदी से उसके वरिष्ठों ने पूछा था कि वह क्या काम कर सकता है. अहमदी ने बताया कि उसका सपना डॉक्टर बनने का था, लेकिन गरीबी के कारण वह मेडिकल कॉलेज में दाखिला नहीं ले पाया. इसके बाद तालिबान ने उसे मीरबाचा कोट जिला अस्पताल का जिम्मा सौंप दिया. अहमदी ने पिछली सरकार की समस्याओं को याद करते हुए कहा, 'यदि कोई ज्यादा अनुभवी व्यक्ति यह जिम्मेदारी संभालने को तैयार है तो यह अच्छा होगा, लेकिन बदकिस्मती से अगर ऐसे किसी व्यक्ति को यह पद मिलेगा तो कुछ समय बाद वह भ्रष्ट हो जाएगा.'
अहमदी अपने काम को गंभीरता से लेता है लेकिन उसके और 20 बिस्तरों वाले अस्पताल के स्वास्थ्य कर्मियों के बीच तालमेल नदारद है. डॉक्टर पिछले बकाया वेतन की मांग कर रहे हैं और इसके साथ ही दवाओं, ईंधन तथा भोजन की भी भारी कमी है. अहमदी की प्राथमिकता, अस्पताल के भीतर एक मस्जिद बनाना, लिंग के आधार पर कर्मियों का कार्य विभाजन करना और उन्हें नमाज पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करना है. उसका कहना है की बाकी चीजें अल्लाह की इच्छाओं के अनुरूप अपने आप हो जाएंगी. यही हाल अफगानिस्तान के समूचे स्वास्थ्य क्षेत्र का है. सत्ता पर तालिबान के कब्जे के बाद अमेरिका ने अफगानिस्तान के अमेरिकी खाते फ्रीज कर दिए और अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध लगा दिए गए. इससे देश की बैंकिंग व्यवस्था चरमरा गई. अंतरराष्ट्रीय मौद्रिक संगठन पहले अफगान सरकार के 75 प्रतिशत खर्च का भार उठाते थे, लेकिन बाद में उन्होंने धन देना बंद कर दिया.
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