हैदराबाद :बैंक पहले से ही बड़े पैमाने पर विलय के कारण संपत्ति गुणवत्ता की पीड़ा और व्यवधानों से जूझ रहे हैं. ऐसे में महामारी के बीच नहीं टाले जा सकने वाले खराब ऋणों (बैड लोन) में हुई बढ़ोतरी की चपेट में आ गए हैं. बैंक से कर्ज लेने वाले बहुत सारी चुनौतियों के साथ अभूतपूर्व वित्तीय संकट से जूझ रहे हैं. भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के छह महीने तक कर्ज स्थगन के बाद वर्ष 2020 के अगस्त में कर्ज की देनदारी शुरू हो गई है और कर्ज लेनेवालों को अपनी गतिविधियों को फिर से शुरू करने के लिए नकदी की जरुरत है.
बैंक कर्ज लेने वालों के पास चुनने के लिए विकल्प सीमित हैं. वे कर्ज को लौटाने के विकल्प की जगह जो थोड़ी-बहुत नकदी है उसे आर्थिक गतिविधियों को फिर से शुरू करने में लगाने का विकल्प चुनेंगे. वे आरबीआई की योजनाओं के तहत जब तक ऋण सुविधाओं के पुनर्गठन के लिए पात्र नहीं होंगे, वे कर्ज नहीं चुकाने वाले (डिफाॅल्टर) के रूप से बच नहीं सकते. करीब 40 फीसद बैंक से कर्ज लेने वालों ने कथित तौर पर मोहलत का लाभ उठाया है जो कि जैसे ही स्टैड स्टील क्लॉज (इस क्लाॅज के तहत बैंक को रिजाॅल्यूशन प्लान तैयार करने, दिशानिर्देशों के तहत गठित निगरानी समिति को रिपोर्ट पेश करने और इसे लागू करने के लिए सक्षम करने की अनुमति है. बैंकों को आम तौर पर संदर्भ तिथि से 90 दिनों के भीतर निगरानी समिति को प्रस्ताव पेश करना चाहिए) कर्जों के वर्गीकरण को खराब ऋणों से वापस ले लिया जाएगा उसका भुगतान बकाया हो जाएगा. ऐसी अभूतपूर्व प्रतिकूल परिस्थितियों में बैंकों के खराब ऋणों में वृद्धि वर्ष 2021-22 में एक नई ऊंचाई पर पहुंच सकता है और इसका खराब प्रभाव वर्ष 2022-23 तक रह सकता है.
खराब कर्ज का आकार
खराब ऋण को गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (एनपीए) के रूप में बताया जाता है, क्योंकि बैंक कर्ज लेने वालों से ब्याज नहीं कमाता हैं. यदि कर्जदार ब्याज या कर्ज की किश्त 90 दिनों की अवधि के दौरान भुगतान नहीं करता है तो कर्ज खराब होकर एनपीए हो जाता है. एनपीए को दो रूपों में दर्शाया गया है. ग्रॉस एनपीए (जीएनपीए) बैंकों की कुल संपत्ति के कुल एनपीए के अनुपात का प्रतिनिधित्व करते हैं. जब विवेकपूर्ण मानदंड (प्रूडेंशियल नॉर्म्स) के अनुसार उनके खिलाफ किए गए प्रावधानों को जीएनपीए से घटा दिया जाता है, तो शुद्ध एनपीए (एनएनपीए) पर काम होता है. एनएनपीए बैंकिंग प्रणाली के लिए खतरा बने हुए हैं. वास्तव में महामारी की शुरुआत से ठीक पहले बैंकों का जीएनपीए मार्च 2019 में 9.1 प्रतिशत से मार्च 2020 तक 8.2 तक गिरकर सुधार दिखाना शुरू कर दिया था और सितंबर 2020 तक 7.5 प्रतिशत तक गिर गया था. लेकिन महामारी के बाद अर्थव्यवस्था में बदलाव आया और उधारकर्ता संकट में पड़ गए.
जोखिम लेने की क्षमता कम न हो
आरबीआई ने जून 2020 की अपनी वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट (एफएसआर)-अनुमान लगाया था कि गंभीर दबाव की स्थिति में मार्च 2021 तक एनपीए 14.7 फीसद और बेस लाइन परिदृश्य में 12.5 फीसद तक बढ़ सकता है. लेकिन संकट की स्थिति को देखते हुए बैंकों को दबावपूर्ण परिस्थितियों में आरबीआई के अनुमानों से आगे जाकर भी एनपीए के स्तर को संभालने के लिए कमर कसनी चाहिए. बैंकों को अपनी उधार देने की क्षमता में सुधार करते हुए संपत्ति की गुणवत्ता के प्रबंधन में लंबी दौड़ के लिए तैयार रहना चाहिए. कोविड की वजह से संकट की असाधारणता को महसूस करते हुए बैंकों को अगले दो साल या उससे अधिक तक ज्याद एनपीए के साथ रहना होगा. लेकिन नहीं टाले जा सकने वाले संपत्ति की गुणवत्ता के संकट को बैंकों के कामकाज पर हावी नहीं होने देना चाहिए और विश्वास करने के जोखिम की भूख को कम नहीं करना चाहिए. ऐसा करना अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए नुकसानदेह होगा.
एनपीए का संकट नया नहीं है