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Forest Research Center ने की सिंबिडियम लैंसिफोलियम पुष्प की खोज, पश्चिमी हिमालय में पहली बार मिला ये आर्किड

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Published : Jul 21, 2023, 2:18 PM IST

Uttarakhand Forest Research Center उत्तराखंड वन अनुसंधान केन्द्र ने एक बार फिर अपना लोहा मनवाया है. दरअसल केन्द्र ने अत्यंत दुर्लभ सिंबिडियम लैंसिफोलियम पुष्प की पश्चिमी हिमालय में नई खोज की है. भारत में सिंबिडियम जीनस की लगभग 29 प्रजातियां पाई गई हैं. जिनमें से 8 पहले पश्चिमी हिमालय से रिपोर्ट की गई थीं.

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हल्द्वानी (उत्तराखंड): उत्तराखंड वन अनुसंधान केंद्र दुर्लभ वनस्पतियों के संरक्षण और जैव विविधता के क्षेत्र में अपनी कई उपलब्धियों के लिए पूरे विश्व में पहचान बना चुका है. इसी के तहत अनुसंधान केंद्र द्वारा एक अत्यंत दुर्लभ और स्थलीय आर्किड प्रजाति, सिंबिडियम लैंसिफोलियम नाम के पुष्प को पहली बार पश्चिमी हिमालय क्षेत्र से खोजा गया है. यह उल्लेखनीय खोज जुलाई, 2022 में चमोली जिले की चोपता घाटी और उसके आसपास 1761 मीटर की ऊंचाई पर उत्तराखंड वन विभाग के अनुसंधान विंग द्वारा किए गए पौध अन्वेषण सर्वेक्षण के दौरान हुई.

पहली बार पश्चिमी हिमालय में मिला सिंबिडियम लैंसिफोलियम पुष्प

सिंबिडियम लैंसिफोलियम के आबाद होने की घटना के आधार पर यह इस प्रजाति का सबसे पश्चिमी भौगोलिक वितरण हो सकता है. चोपता घाटी में सिंबिडियम लैंसिफोलियम की खोज एक बार फिर उत्तराखंड की समृद्ध जैव विविधता और इन दुर्लभ और सुंदर प्रजातियों की रक्षा के लिए संरक्षण प्रयासों के महत्व को उजागर करती है. टीम में जूनियर रिसर्च फेलो मनोज सिंह, ज्योति प्रकाश जोशी और रेंज ऑफिसर हरीश नेगी और राजेंद्र प्रसाद जोशी शामिल थे. भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण संस्थान देहरादून के संयुक्त निदेशक डॉ. एसके सिंह ने प्रजातियों की पहचान में सहायता की. इस उपलब्धि को प्रतिष्ठित जर्नल 'द इंडियन फॉरेस्टर' खंड 149 (5): 578-580, 2023 में प्रकाशित किया गया है. इससे पहले, सिंबिडियम लैंसिफोलियम केवल भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों और भूटान में रिपोर्ट किया गया था.

सिंबिडियम लैंसिफोलियम पुष्प

भारत में पाई जाती है सिंबिडियम जीनस की 29 प्रजातियां:भारत में सिंबिडियम जीनस की लगभग 29 प्रजातियां पाई गई हैं. जिनमें से 8 पहले पश्चिमी हिमालय से रिपोर्ट की गई थीं. सिंबिडियम ऑर्किड दुनिया भर में बड़े पैमाने पर खेती की जाने वाली सबसे लोकप्रिय ऑर्किड प्रजातियों में से एक है. बागवानी में इन्हें अत्यधिक महत्व दिया जाता है और लंबे समय तक टिकने वाले फूलों, रंगों की विस्तृत श्रृंखला और सुंदर उपस्थिति के कारण व्यावसायिक पैमाने पर इन्हें आमतौर पर कटे हुए फूलों और गमले वाले पौधों के रूप में बेचा जाता है, जिससे वे इनडोर और आउटडोर सजावट दोनों के लिए एक पसंदीदा विकल्प बन जाते हैं.

पुष्प प्रजातियों की खोज की यह चौथी उपलब्धि:हाल के वर्षों में उत्तराखंड वन विभाग की अनुसंधान विंग द्वारा पश्चिमी हिमालय/भारत से पुष्प प्रजातियों की खोज की यह चौथी उपलब्धि है. इससे पहले, (1) पश्चिमी हिमालय से लिपारिस पाइग्मिया का एक नया वितरण रिकॉर्ड, 2020 में रिसर्च विंग की टीम द्वारा सप्तकुंड ट्रेक के दौरान पाया गया था (यह आर्किड प्रजाति भारत में 124 वर्षों के अंतराल के बाद रिपोर्ट की गई थी) और खोज में प्रकाशित किया गया था प्रतिष्ठित फ्रांसीसी पत्रिका 'रिचर्डियाना'. (2) सेफलेनथेरा इरेक्टा संस्करण रिसर्च विंग की टीम द्वारा 2021 में चमोली जिले की मंडल घाटी से ओब्लांसोलाटा रिकॉर्ड किया गया.
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वन संरक्षक संजीव चतुर्वेदी ने बताया कि यह भारत की वनस्पतियों के लिए एक नया रिकॉर्ड है और यह खोज 'नेलुम्बो' (बीएसआई जर्नल) में प्रकाशित हुई थी. इससे पहले पश्चिमी हिमालय के दुर्लभ मांसाहारी पौधे यूट्रीकुलरिया फुर्सेलाटा का एक नया रिकॉर्ड 2022 में अनुसंधान विंग द्वारा खोज को प्रतिष्ठित 'जर्नल ऑफ जापानी बॉटनी' में प्रकाशित किया गया था.
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