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उत्तराखंड की मंत्री रेखा आर्य ने शुरू की कांवड़ यात्रा, 'मुझे भी जन्म लेने दो' है संकल्प

सावन की शिवरात्रि के मौके पर कैबिनेट मंत्री रेखा आर्य ने हरकी पैड़ी पर गंगा पूजन किया. उसके बाद उन्होंने 'मुझे भी जन्म लेने दो' संकल्प के साथ हरकी पैड़ी से कांवड़ उठाई. यहां से कांवड़ उठाने के बाद रेखा आर्य पैदल यात्रा पर ऋषिकेश के लिये निकल गई हैं. वहां वीरभद्र महादेव मंदिर में संकल्प को पूरा करने की प्रार्थना के लिए जल चढ़ाएंगी.

हरिद्वार
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Published : Jul 26, 2022, 11:18 AM IST

हरिद्वार: "मुझे भी जन्म लेने दो" के संकल्प के साथ मंत्री रेखा आर्या ने हरकी पैड़ी से कांवड़ उठाई. इस दौरान उन्होंने प्रदेश में बेटियों का लिंग अनुपात बेटों के बराबर करने का संकल्प भी लिया. इससे पहले कैबिनेट मंत्री ने अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद अध्यक्ष श्रीमहंत रविन्द्र पुरी और महामंत्री हरिगिरि के साथ गंगा पूजन किया. यहां से कावड़ उठाने के बाद रेखा आर्य पैदल यात्रा पर ऋषिकेश के लिये निकल गई हैं. वहां वह वीरभद्र महादेव मंदिर में संकल्प को पूरा करने की प्रार्थना के लिए जल चढ़ाएंगी.

कैबिनेट मंत्री रेखा आर्य ने उठाई कांवड़: आज शिवरात्रि के पर्व पर हरकी पैड़ी पर महिला सशक्तिकरण एवं बाल विकास मंत्री रेखा आर्य गंगा ने गंगा पूजन किया. इस मौके पर मंत्री रेखा आर्य ने कहा कि आज सावन की शिवरात्रि है. भगवान शिव ने बताया है कि वे शक्ति के बिना अधूरे हैं और शक्ति उनके बिना. ठीक इसी प्रकार भ्रूण हत्या को खत्म किये जाने और इस प्रदेश को देवों की नगरी के साथ-साथ देवियों की नगरी से भी जाना जाए, ऐसे प्रयास किये जाने चाहिए.

रविंद्रपुरी ने रेखा आर्य को बताया उत्तराखंड की अहिल्याबाई: उन्होंने कहा कि कन्या के जन्म लेने के अधिकार को छीनने का किसी को अधिकार नहीं है. उसको जन्म लेने के अधिकार के संकल्प के लिए ही उनके द्वारा यह कांवड़ उठाई जा रही है. इस अवसर पर अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष श्रीमहंत रविन्द्र पुरी ने कैबिनेट मंत्री को उत्तराखंड की अहिल्याबाई की संज्ञा देते हुए उनके संकल्प की सराहना की.

उत्तराखंड की मंत्री रेखा आर्य ने शुरू की कांवड़ यात्रा.

25 किमी पैदल कांवड़ यात्रा करेंगी रेखा आर्य: मंत्री रेखा आर्य कांवड़ियों के साथ करीब 25 किमी पैदल यात्रा करेंगी. जिसके बाद करीब 1300 वर्ष पुराने अंतिम पड़ाव वीरभद्र मंदिर में मुख्यमंत्री के साथ भगवान शिव के जलाभिषेक के साथ संकल्प लिया जाएगा. मंत्री रेखा आर्य को विश्वास है कि इससे प्रदेश की रजत जयंती पर उत्तराखंड में लिंगानुपात समान होगा और देवियों की भूमि से एक संकीर्ण मानसिकता का विनाश होगा.
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इस मौके पर अखाड़ा परिषद के महामंत्री हरिगिरि ने कहा कि रेखा आर्य द्वारा लिया गया संकल्प जरूर पूर्ण हो, वो ऐसी कामना करते हैं. उनका मानना है कि उत्तराखंड ही नहीं पूरे विश्व से भ्रूण हत्या जैसा पाप खत्म होना चाहिए. उन्होंने कहा कि मां गंगा खुद एक महिला हैं, जिनको पृथ्वी पर आने से रोकने के लिए बहुत से दानवों ने प्रयास किये लेकिन भगवान शिव के आशीर्वाद से वे आईं. ठीक उसी प्रकार से कन्याओं को जन्म लेने से कोई नहीं रोक पायेगा.

उत्तराखंड में अभी इतना है लिंगानुपात: प्रदेश सरकार ने बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान को वृहद स्तर पर चलाया है. आज उत्तराखंड में लिंगानुपात का आंकड़ा 1000 बालकों पर 950 बालिकाओं का है. जिस पर अब लक्ष्य रखा गया है कि प्रदेश की रजत जयंती के अवसर पर यह आंकड़ा 1000 पर 1000 का हो और उत्तराखंड से एक सन्देश जाए कि यह मात्र देवों की ही नहीं बल्कि देवियों की भूमि भी है.

उत्तराखंड की कैबिनेट मंत्री हैं रेखा आर्य:रेखा आर्य उत्तराखंड की एकमात्र महिला मंत्री हैं. उनके पास महिला सशक्तिकरण एवं बाल विकास विभाग है. इसके साथ ही रेखा आर्य के पास खाद्य, नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता मामले के साथ खेल और युवा कल्याण विभाग की जिम्मेदारी भी है. रेखा आर्य उत्तराखंड बीजेपी की तेज तर्रा नेता मानी जाती हैं. रेखा आर्य अल्मोड़ा जिले की सोमेश्वर विधानसभा सीट से विधायक हैं.

क्या है कांवड़ यात्रा:हर साल श्रावण मास में लाखों की तादाद में कांवड़िये सुदूर स्थानों से आकर गंगा जल से भरी कांवड़ लेकर पदयात्रा करके अपने गांव वापस लौटते हैं इस यात्राको कांवड़ यात्रा बोला जाता है. श्रावण की चतुर्दशी के दिन उस गंगा जल से अपने निवास के आसपास शिव मंदिरों में शिव का अभिषेक किया जाता है. कहने को तो ये धार्मिक आयोजन भर है, लेकिन इसके सामाजिक सरोकार भी हैं. कांवड़ के माध्यम से जल की यात्रा का यह पर्व सृष्टि रूपी शिव की आराधना के लिए है. पानी आम आदमी के साथ साथ पेड़ पौधों, पशु-पक्षियों, धरती में निवास करने वाले हजारों, लाखों तरह के कीड़े-मकोड़ों और समूचे पर्यावरण के लिए बेहद आवश्यक वस्तु है. उत्तर भारत की भौगोलिक स्थिति को देखें तो यहां के मैदानी इलाकों में मानव जीवन नदियों पर ही आश्रित है.

नदियों से दूर-दराज रहने वाले लोगों को पानी का संचय करके रखना पड़ता है. हालांकि मानसून काफी हद तक इनकी आवश्यकता की पूर्ति कर देता है, तदापि कई बार मानसून का भी भरोसा नहीं होता है. ऐसे में बारहमासी नदियों का ही आसरा होता है. और इसके लिए सदियों से मानव अपने इंजीनियरिंग कौशल से नदियों का पूर्ण उपयोग करने की चेष्टा करता हुआ कभी बांध तो कभी नहर तो कभी अन्य साधनों से नदियों के पानी को जल विहीन क्षेत्रों में ले जाने की कोशिश करता रहा है. लेकिन आबादी का दबाव और प्रकृति के साथ मानवीय व्याभिचार की बदौलत जल संकट बड़े रूप में उभर कर आया है.

धार्मिक महत्व: धार्मिक संदर्भ में कहें तो इंसान ने अपनी स्वार्थपरक नियति से शिव को रूष्ट किया है. कांवड़ यात्रा का आयोजन अति सुन्दर बात है. लेकिन शिव को प्रसन्न करने के लिए इन आयोजन में भागीदारी करने वालों को इसकी महत्ता भी समझनी होगी. प्रतीकात्मक तौर पर कांवड़ यात्रा का संदेश इतना भर है कि आप जीवनदायिनी नदियों के लोटे भर जल से जिस भगवान शिव का अभिषेक कर रहे हैं, वे शिव वास्तव में सृष्टि का ही दूसरा रूप हैं. धार्मिक आस्थाओं के साथ सामाजिक सरोकारों से रची कांवड़ यात्रा वास्तव में जल संचय की अहमियत को उजागर करती है. कांवड़ यात्रा की सार्थकता तभी है जब आप जल बचाकर और नदियों के पानी का उपयोग कर अपने खेत खलिहानों की सिंचाई करें और अपने निवास स्थान पर पशु पक्षियों और पर्यावरण को पानी उपलब्ध कराएं तो प्रकृति की तरह उदार शिव सहज ही प्रसन्न होंगे.

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