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तालिबान की 'गैर समावेशी' सरकार का आस्तित्व में बने रहना मुश्किल : विलियम डैलरिम्पल

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Published : Sep 12, 2021, 4:44 PM IST

लेखक व इतिहासकार विलियम डैलरिम्पल के अनुसार अफगानिस्तान की नई सरकार, तालिबान के ढांचे में भी बेहद गैर समावेशी है. उन्होंने कहा कि एक ऐसी सरकार, जिसमें सभी रूढ़िवादी पुरुष पश्तून और मुल्ला हैं, का अधिक दिनों तक टिके रहना मुश्किल है.

Dalrymple
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नई दिल्ली : लेखक एवं इतिहासकार विलियम डैलरिम्पल ने नई तालिबान सरकार पर कहा है कि यह ज्यादा दिनों तक नहीं टिक पाएगी. डैलरिम्पल ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि तालिबान ने समावेश की बात तो की लेकिन उसे वास्तविकता से परे जाकर उस तरह पेश भी नहीं कर पाए जैसा करना चाहिए था.

उन्होंने कहा कि नई सरकार ने न तो पश्चिमी दानकर्ताओं से अपील की और न ही 60 प्रतिशत अफगानों या देश की महिलाओं से जो जनसंख्या की आधी आबादी का प्रतिनिधित्व करती हैं. डैलरिम्पल ने फोन पर दिए साक्षात्कार में कहा कि यह आश्चर्यजनक है.

हालांकि उन्होंने (पूर्व राष्ट्रपति) हामिद करजई या पिछली सरकार के किसी व्यक्ति को ऊंचा पद नहीं दिया है या उन्होंने केवल कुछ महिलाओं को छोटे-मोटे पद दिए हैं. पिछले महीने से वह जितना दिखावा कर रहे हैं उसके आधार पर उनसे अधिक आशाएं थीं.

अमेरिका नीत सेनाओं ने 2001 में तालिबान को सत्ता में बेदखल कर दिया था लेकिन पिछले महीने विदेशी सेनाओं की वापसी के दौरान तालिबान ने तेजी से सत्ता पर पुनः कब्जा कर लिया. इस सप्ताह तालिबान ने अफगानिस्तान की नई कार्यवाहक सरकार के प्रमुख के तौर पर मोहम्मद हसन अखुंद को नियुक्त किया.

मंत्रिमंडल के सभी सदस्य पुरुष हैं और इसमें समूह के पुराने कद्दावर शामिल हैं. डैलरिम्पल ने कहा कि सरकार न केवल गैर समावेशी है बल्कि यह तालिबान के ढांचे में भी बेहद असमावेशी है. इसमें सभी पुरुष हैं जो अति रूढ़िवादी पश्तून मुल्ला हैं.

सरकार का यह स्वरूप निराशाजनक और संकीर्ण मानसिकता से भरा हुआ है. उन्होंने कहा कि यह एक तरह से अच्छा संकेत है क्योंकि इस प्रकार की सरकार के सफलतापूर्वक अफगानिस्तान पर शासन करने की संभावना बहुत कम है.

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डैलरिम्पल रिटर्न ऑफ ए किंग- द बैटल फॉर अफगानिस्तान के लेखक हैं जो प्रथम एंग्लो-अफगान युद्ध (1839-42) पर आधारित है. यह युद्ध में ब्रितानी साम्राज्य और अफगानिस्तान के बीच लड़ा गया था जिसमें ब्रिटेन की करारी हार हुई थी.

(पीटीआई-भाषा)

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