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Bhima Koregaon Case: SC ने महेश राउत को जमानत देने के HC के आदेश के खिलाफ NIA की याचिका स्वीकारी, सुनवाई 5 अक्टू को

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Sep 27, 2023, 4:00 PM IST

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने भीमा कोरेगांव मामले के आरोपी महेश राउत को बॉम्बे हाई कोर्ट द्वारा जमानत दिए जाने के खिलाफ एनआईए की याचिका स्वीकार कर ली है. इस मामले में अब 5 अक्टूबर को सुनवाई होगी.

Supreme Court
सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने बुधवार को भीमा कोरेगांव मामले में आरोपी महेश राउत को जमानत देने के बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली एनआईए की याचिका स्वीकार कर ली. बता दें कि राउत (35) को 6 जून 2018 को गिरफ्तार किया गया था और वह नवी मुंबई की तलोजा सेंट्रल जेल में बंद है.

मामले में न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने जमानत आदेश पर बॉम्बे उच्च न्यायालय द्वारा दी गई रोक को 5 अक्टूबर को सुनवाई की अगली तारीख तक बढ़ा दिया. अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (ASG) एसवी राजू ने एनआईए का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील कनु अग्रवाल के साथ अदालत से हाई कोर्ट द्वारा दी गई रोक को बढ़ाने का अनुरोध किया. पीठ ने कहा कि वह याचिका स्वीकार करेगी और मामले की सुनवाई 5 अक्टूबर को करेगी. वहीं राउत का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील ने कहा कि उनके मुवक्किल को साढ़े पांच साल बाद जमानत दी गई है जबकि वह टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज में फेलो थे. और यह मामला पूरी तरह से वर्नोन गोंजाल्विस के केस में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के दायरे में आता है.

नवंबर 2021 में विशेष एनआईए अदालत द्वारा उनकी जमानत याचिका खारिज करने के बाद गढ़चिरौली क्षेत्र में काम करने वाले भूमि अधिकार कार्यकर्ता राउत ने 2022 नियमित जमानत की मांग करते हुए हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. हाई कोर्ट में राउत का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने बताया था कि वह प्रतिबंधित सीपीआई (माओवादी) का सदस्य नहीं है और बताया था कि वह प्रधानमंत्री ग्रामीण विकाल फेलोशिप का प्राप्तकर्ता है. वकील ने दलील दी कि मामले में सुनवाई शुरू नहीं हुई है और इसमें काफी समय लगेगा क्योंकि एनआईए ने मामले में 336 गवाहों को सूचीबद्ध किया है.

वहीं जमानत का विरोध करते हुए एनआईए ने हाई कोर्ट के समक्ष तर्क दिया था कि सह-अभियुक्त के कंप्यूटर पर पाए गए पत्रों के अनुसार, राउत भारत की एकता, अखंडता और संप्रभुता पर सीधा प्रभाव डालने वाली माओवादी गतिविधियों में शामिल था. गौरतलब है कि 28 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि केवल साहित्य का कब्ज़ा, भले ही उसकी सामग्री हिंसा को प्रेरित या प्रचारित करती हो, अपने आप में गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम 1967 के अध्याय IV और VI के तहत कोई अपराध नहीं माना जा सकता है. फलस्वरूप 2018 में भीमा कोरेगांव मामले में वर्नोन गोंसाल्वेस और अरुण फरेरा को जमानत दे दी थी.

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